Thursday, July 11, 2013

जीता (यमक अलंकार प्रयोग "जीता" के दो अर्थ )


 जीता (यमक अलंकार प्रयोग "जीता" के दो अर्थ )
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खेल ,पढाई में कोई ट्राफी वह नहीं जीता था
आलस्य , संकोचों में मौन जीवन जीता था
देखता सुनता यह जीता वह जीता रहता था
निरंतर देख ये बढ़ रहे संकोचों में जीता था

प्रश्न स्वयं से किया क्यों नहीं कुछ वह जीता
उत्तर मिला लगन बिना न कभी कोई जीता
बीती बिसार नहीं पछताया क्यों वह न जीता
सच्ची राह का ले संकल्प वह अब जीता था

सश्रम कर्तव्य निभाते साथी-विश्वास अब जीता
मिले इस विश्वास से आत्मविश्वास से वह जीता
कई डिगते बिन डिगे सदमार्ग वह चलता जाता
दिखता अकेला, ओढ़ समाज दायित्व को जीता

अनुभव सदमार्ग से जो मिले जीवन में जीते
लिपिबध्द करते हुए सादे शब्दों में अब जीता
होती बातें पर-आलोचना की वह न ऐसा करता
स्वतः अपना आलोचक बन अब जीवन जीता

असफलता पर जो स्वतः कभी धिक्कारता था
खेल ,पढाई में कोई ट्राफी वह जब ना था जीता
मिटी शिकायत जब लाया समक्ष लिख कविता
जिन्होंने पढ़ा उनका हार्दिक आशीर्वाद वह जीता

कोई करोड़ तो कोई कार या ट्राफी तो कई जीते
बिरले अब जो दुआ और विश्वास सबका जीतते
वह जीतना क्या जीतना जो अनेकों ने जीता था
जो मिलता परहित के लिए जीते वह बिरले जीतते

धन ट्राफी कार जीत आलीशान घर स्वयं बनाता
किन्तु विरक्त देख अभावों में समाज कैसे जीता है
सबको लगता वह हारा जब उसे लगता मै जीता 
मशीन बनते मनुष्य वह तब मनुष्य जीवन जीता      


कल्पित शील्ड उसकी जो लाये मनुज में मानवता
निस्वार्थ इक्छा देखे जीतते किसी को जीवन जीते

--राजेश जैन 
11-07-2013

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