Friday, July 12, 2013

Bad Impression (हिंदी ) ?

Bad Impression (हिंदी ) ?
------------------------------
फेसबुक पर कई हिंदी साहित्य समूह में सक्रिय सदस्यों पर दृष्टिपात करने पर उसमें अधिकाँश अस्सी के दशक के पूर्व जन्मे ही मिलते हैं . फिर पिछले लगभग सवा वर्षों पर फेसबुक पर आने के बाद हिंदी में लेख ,कथा और काव्य रूप में भारतीय परम्पराओं ,संस्कृति और भारतीय विभिन्न धर्म अनुमोदित आचरण को प्रमुख करते विभिन्न समूह (साहित्य के अतिरिक्त ) अपनी पोस्ट /स्टेटस नियमित लगाता रहा हूँ . उन्हें पढ़ने वालों की संख्या... और  उनकी आयु वर्ग को देखते हुए लेखक (और कदाचित साहित्यकार समूह भी ) कुछ विचार करने की आवश्यकता समझता है ..

आधुनिक विषयों की पाठ्य पुस्तक अंग्रेजी में थी (
लेखक ने भी कॉलेज , अँग्रेजी माध्यम से किया ) अपने बच्चों को  अँग्रेजी माध्यम से पढाया यह सत्य है . ज्ञान प्राप्ति के लिये और कई भाषाओँ का ज्ञान दोनों दृष्टि से इंग्लिश आना उचित ही थे .
पर जिस तरह अस्सी के दशक और बाद में जन्मे भारतीयों ने हिंदी के प्रति उपेक्षा और उदासीनता प्रदर्शित की है .वह हो सकता है किसी के लिए पूर्व कल्पित हो मुझे इसकी कल्पना नहीं थी .
यही नहीं जिन्हें इंग्लिश अच्छी आ गई है वे हिंदी बोलने लिखने में एक तरह हीनता अनुभव करने लगे हैं .उन्हें
यह संदेह होता है . हिंदी के उपयोग से उन्हें हलके से लिया जाएगा ( Bad impression ) और  उनके कहे लिखे का कम प्रभाव पड़ेगा .

वस्तुतः आधुनिक विषयों को लिखने वाले पश्चिम के विद्वान थे विज्ञान,कंप्यूटर और नई तकनीक वहां ज्यादा उन्नत हुई . यह सत्य है . अतः इन विषयों की पुस्तकें वहां की भाषा इंग्लिश में ज्यादा अच्छी थी (थोड़ी पुरानी बातें अब हिंदी में स्तरीय पुस्तकें आ गई हैं ) . इस दृष्टि से उन्हें रेफ़र करना अनुचित नहीं था . इस हेतु इंग्लिश का ज्ञान और प्रयोग भी कहीं अनुचित नहीं कहा जा सकता .

लेकिन युवाओं से एक बात जो उन्हें मालूम भी होगी . निवेदित करना चाहता हूँ . मानव सभ्यता ,मानवीय परम्परा ,अध्यात्म , धर्म और संस्कृति की दृष्टि से भारतीय समाज ज्यादा भव्य 
और अग्रणी था और है .चूँकि ये इस भूमि की धरोहर है अतः ये भारतीय भाषाओँ (संस्कृत , पाली ,दक्षिणी  और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ ) के साथ हिंदी में बहुत ही विस्तृत और प्रभावकारी स्वरूप में उपलब्ध होता है .अन्य देशों के विद्वानों ने भारत की भाषाओँ का अध्ययन कर यहाँ के वेद ,ग्रन्थ और शास्त्रों का अपने भाषा में अनुवाद कर अपने देशों में उपलब्ध कराया . तब वहाँ की मानव सभ्यता विकसित हुई .

युवाओं (और कुछ पिछली पीढ़ी में भी ) में जैसी उदासीनता ,उपेक्षा और हीनभावना हिंदी के प्रति प्रदर्शित हो रही है . उससे वे हिंदी में इस भव्य विरासत को कभी पढ़ ना पायेंगे .हमारे साहित्यकारों का प्रशंसनीय सृजन आगामी समय में निरर्थक तो जाएगा ही . दुःख इस बात का होगा जो भारतीय मर्यादाओं ,धर्म और संस्कृति को नहीं पढ़ पायेंगे वे भविष्य में नाम मात्र के भारतीय रह जायेंगे ..

अभी हिंदी लिखने बोलने और पढने में शर्मा रहे है ,ऐसा ना हो अगली सदी में युवाओं की आगामी (मेरी भी ) भारतीय मानने/ कहने में भी शर्माने लगे ..

अगर भारतीय होना गर्व की बात लगती है .तो भारतीय भाषाओँ ..अपनी मातृभाषा पर गर्व रखना होगा .. भले हम इंग्लिश के प्रकाण्ड विद्वान बनें . हमें हिंदी मंचों पर आना होगा .. हिंदी में लिखना ,बोलना और पढ़ना होगा ... फेसबुक पर हिंदी चलन बढ़ाना होगा .जो थोड़े युवा इस लेख को पढ़ लें . वे अपने आयुवर्ग में इस आवश्यकता पर अवश्य विचार विमर्श करें ..


--राजेश जैन 
13-07-2013

No comments:

Post a Comment