Sunday, March 31, 2013

भ्रामक प्रसार से बचना

भ्रामक प्रसार से बचना
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जब हम ज्यादा प्रकाशित स्थान से कम प्रकाश (अँधेरे ) में पहुँचते हैं . या कमरे के प्रकाश-पुंज को बुझाते हैं तो उस अल्प प्रकाश में अचानक हो जाने से जितना संभव है उतना देखने के लिए हमारी आँखों को अभ्यस्त होने में कुछ पल लगते हैं . जब तक कम उजाला है . हम कामचलाऊ स्थिति ही देखने और समझने का यत्न करते हैं . रोशनी वापिस आने पर हम पुनः स्पष्ट देख ने लगते हैं .

इसी तरह जिस विषय -वस्तु का हमें ज्ञान नहीं है... . उसमें आने पर हमें कुछ समय लगता है , जब हमें कुछ समझ आना आरम्भ हो पाता है . और अभ्यास और प्रयत्न बढ़ने पर हमें ज्यादा सच्चा ज्ञान होना प्रारम्भ होता है . जब तक दक्षता नहीं है ,कामचलाऊ ज्ञान से आगे बढ़ना होता है .

व्यस्तता के आज के युग में हम अधीर हो ,ज्यादा अभ्यास नहीं करते . कामचलाऊ ज्ञान किसी विषय का हमें होता है . उससे निष्कर्ष निकालते हैं . उसी से कहना और तर्क कर प्रसार करते हैं . हमारा किसी भी बारे में पूर्ण ज्ञान ना होने पर ऐसा करना भ्रम का प्रसार करना होता है . और भ्रामक सामग्री पढ़ देख दूसरे दिग्भ्रमित होते हैं . इस तरह हम अनायास एक बुरा कार्य करते हैं . भ्रमपूर्ण धारणाएं अगर किसी के मन में स्थापित हो जाएँ . तो उन्हें बदलना ज्यादा श्रम और समय मांगता है जिसकी कमी सभी ओर है . हमारे पास फेसबुक है हम कुछ भी लिख सकने और प्रसारित करने में समर्थ हैं . इसलिए हमें ज्यादा सतर्क व्यवहार इस पर करना चाहिए . जिससे इस पर व्यय किया जाने वाला हमारा समय समाज उपयोगी हो . समाज और मानवता के हित में हो . हम कितने भी धनी क्यों ना हों . दूसरों का सहयोग की हमारी क्षमता सीमित ही होगी . पर दूसरों से सच्चे ज्ञान का आदान-प्रदान , विचार-विमर्श के माध्यम से जो सहयोग और भलाई की जा सकती है . उसकी कोई सीमा नहीं है . इसे हम समझें और गंभीरता समझ अपनी लेखनी से जितना बन सके भलाई प्रसारित करें . आज इसकी आवश्यकता बहुत है .. 

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