Thursday, March 28, 2013

परोक्ष दोष की सजा

परोक्ष दोष की सजा
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एक विद्रोह की परिस्थिति बनना .नियंत्रण में कुछ लोगों का मारा जाना . प्रतिक्रिया में एक प्रमुख की हत्या फिर प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया में सैकड़ों हत्याएं यह संक्षिप्त विवरण पिछली शताब्दी के एक दुखद घटनाक्रम का है .जिससे  देश में चला आ रहा  भाईचारा को खतरा उत्पन्न हुआ  . देश के प्रमुख सम्प्रदाय में से दो जिनमें अटूट सौहाद्र एवं प्रेम का इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा था . एकबारगी आपसी संघर्ष की राह पर आ गए . एक दिन में प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया में देश के विभिन्न हिस्सों में हुई सैकड़ों हत्याओं में निर्दोष और मासूम सम्मिलित थे . निर्ममता में मारे गए  हमारे देश के भाई /बेटे जिन परिवारों के सदस्य थे , जिनके रिश्तेदार और आत्मीयजन थे वे गहन मातम में पहुँच गए थे .एक पूरा सम्प्रदाय एकाएक हुए इन अत्याचारों से गहरे मानसिक आघात में था . पूरे देश के शांतिप्रिय जन भी इन हत्याओं और अत्याचार से व्यथित था . वह चाह कर भी उस सम्प्रदाय से सम्वेदना और उनके दुखों को बाँटने में असमर्थ था . आपसी विश्वास इस बुरी तरह प्रभावित हुआ था .
इतने बुरे दिनों को काट लेना अत्यंत कठिन था . पर वाह मेरे देश के संस्कार , सहनशीलता , सहिष्णुता और शांतिप्रियता की समूचे विश्व में मिसाल नहीं मिलेगी .  विश्व आश्चर्यचकित था , जिस तीव्रता से देश का आम जीवन सहज हो गया था .
लेकिन मारे गए निर्दोषों के आत्मीय जन कैसे इतनी सरलता से विछोह भूल सकते थे . मनुष्य जीवन इतना आसान थोड़े ही होता है ,पा लेना . जिनके साथ होने से किसी को अपनी दुनिया आबाद लगती है .दुनिया में उनका ना होना और वह भी किसी के द्वारा मार दिए जाने का कटुतम करतूत के कारण . दुनिया ही लुट गई होती है .जिन दुर्भाग्यशाली परिवारों के साथ ऐसा हुआ उसकी वास्तविक असहनीयता को कोई और अनुभव कर ले संभव नहीं है .
ऐसे में प्रतिक्रिया में उनके ह्रदय में बदले का विषबीज उत्पन्न हो जाए ,अस्वाभाविक नहीं होता . इस प्रतिक्रिया को कभी सतह पर लेखों , आव्हानों और कभी हिंसक रूप में देखा जाना भी अस्वाभाविक नहीं है . हमें ,उनको हुई मानवीय क्षति का कुछ प्रतिशोध भुगतना ही होगा .बहुत मात्रा में इसे विस्मृत करने की महानता उन्होंने दर्शायी है पर यदाकदा अभी भी इसे देखा जाता है . हमने यद्यपि किसी हिंसा में हिस्सा नहीं लिया ,उसका दोष हम पर प्रत्यक्षः नहीं है .पर परोक्ष दोष इसलिए हम पर है , क्योंकि  हम इन हत्याओं और हत्यारों को रोक नहीं सके .
इस हमारे दोष के लिए पीड़ित परिजनों के अभिशाप और कोसे जाने वाले शब्दों ,किये जाने वाले अपमान पूर्ण व्यवहार को हमें सहन कर लेना होगा .ऐसे अपमान के बीच भी हमें उनके अश्रु पोंछने के भाव ही रखने होंगे . उनके मानसिक और ह्रदय के शूल देते घावों को आत्मीय व्यवहार की मलहम  भी हमें लगानी ही होगी .
हम मनुष्य होकर क्यों मानवता को उस शीर्ष पर स्थापित नहीं कर सके ? जहाँ मनुष्य के प्राण  इस तरह जोर जबरदस्ती में लेने का अन्यायपूर्ण विचार किसी के ह्रदय में ना आता हो .
जब तक हम ऐसा ना कर सकेंगे ,हमें कभी अपनों की और कभी अन्यों की बारी से इस तरह अकाल मौत के घाट उतारे जाने की विवशता झेलनी होगी . (वैसे मनुष्य साथी को अन्य  मानना भी दोषपूर्ण है अगर कोई मनुष्य है तो वह गैर नहीं हमारा अपना होता  है ,यह सच्ची मानवता है .) . मानव हनन तो घोर अमानवीयता है ही  .
हर ऐसे दुखद घटनाक्रम के बाद हिंसा पिछले की तुलना में कम करना हमारा लक्ष्य हो . किसी भी अन्य वैज्ञानिक उन्नति या किसी भी हमारे स्वप्नीय उपलब्धि के पहले  हम मनुष्य "शून्य जन हत्या"  के स्तर का सुख की अनुभूति कर सकें  . ऐसा मानवता का इतिहास यह मानव  समाज रच सके  . हमारी सर्वप्रथम कामना यह हो .

 

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