Saturday, March 9, 2013

कृष्णा

कृष्णा

 4 जून 1978 - ज्ञानचंद आज दुखी, किस्मत को कोस रहे हैं। 3 पुत्रियों के कल तक पिता थे। आज पत्नी को प्रसव वेदना हुई, अस्पताल ले जाते वक़्त वे पुनः पुत्री जन्म से आशंकित थे। ऑपरेशन कक्ष से दरवाजा खुलने पर नर्स को निकलते देख ज्ञानचंद की चिंता चरम पर पहुंची। किसी तरह कंठ से बोल निकले पूछा। डिलेवरी नार्मल हुई ना? बेरुखी से नर्स ने कहा, हां, आप के बेटी जन्मी है। लगा कानों में किसी ने गरम शीशा उड़ेला हो। ज्ञानचंद, लोक लाज वश भी भाव-भंगिमा में प्रसन्नता नहीं दर्शा सके, उन्हें सदमे से उबरने में 10-15 मिनट लगे। तीन दिन बाद अस्पताल से पत्नी और नवजात बेटी को घर लाते समय तक वह साधारण आर्थिक परिस्थिति के गृहस्थ काफी हद तक सामान्य हो चुके थे। परिवार में ज़िन्दगी सामान्य ढर्रे पर चलना आरम्भ हो चुकी थी। रीति से पुत्री का नामकरण करते हुए नाम रखा गया "कृष्णा"। कृष्णा, अपनी बड़ी तीन बहनों (एक पाँच, दूसरी तीन और तीसरी दो वर्षीया ) के कौतुक का विषय हो गई। तीनों उसे गोद में लेने, हंसाने और खिलाने की कोशिश करतीं। माँ का ध्यान अपनी अपेक्षा कृष्णा पर ज्यादा देख अपनी उपेक्षा से रूठती भी थीं। 

समय धीमे धीमे बीत रहा था दो-ढाई वर्ष की वय में ही कृष्णा दूसरे बच्चों से ज्यादा समझदार प्रतीत होने लगी। बाल सुलभ उसकी हरकतें, सामान्य माँ-पिता को अत्यंत प्रिय लग सकती थी किन्तु ज्ञानचंद और उसकी पत्नी, पुत्र ना होने तिस पर चार पुत्रियों के होने से दुखी रहते, उन्हें यह देख भी प्रसन्नता ना होती। 

अभाव ग्रस्त भारतीय परिवार में जिस तरह बच्चे पलते हैं, वैसा लालन-पालन कृष्णा और उसकी बहनों का होता रहा। यद्यपि स्कूल में कुशाग्रता के कारण कृष्णा अपनी शिक्षिकाओं और सखियों में शीघ्र चहेती हो गई। घर में अपनी ओर माँ-पिता की बेध्यानी और अभाव के बाद भी शिक्षिकाओं और सखियों के स्नेह में बिना विशेष पीड़ा के कृष्णा कक्षा और उम्र में बढ़ने लगी। 16-मई 96 को कृष्णा के बारहवीं के परिणाम की पूर्व संध्या पर भोपाल से फोटोग्राफर और अखबार टीम कृष्णा का इंटरव्यू लेने आई। किसी को इसका कारण कुछ समझ नहीं आया था। दूसरे दिन समाचार पत्र में इंटरव्यू के साथ कृष्णा के मेरिट में प्रदेश में द्वितीय स्थान के प्रकाशित समाचार से, पहली बार कृष्णा को लेकर घर में प्रसन्नता देखने मिली थी। ये प्रसन्नता कृष्णा के लिए ज्यादा दिन नहीं रही। उसकी चिकित्सा विज्ञान में रुचि को अनदेखा कर माँ-पिता ने दकियानूसी सोच रख, उसे बाहर भेज कर शिक्षा दिलाने की मनाही कर दी। कृष्णा में जागृत हुई अनायास महत्वाकांक्षा, वहीं दमित हो गई। अभाव में प्रसन्नता से समझौते की अभ्यस्त किशोरी छिन्दवाड़ा में ही, कला संकाय में पढ़ते हुए अच्छे अंकों से स्नातक परीक्षा पास करने में सफल हुई। और पोस्ट ग्रेजुएट के लिए प्रवेश लिया। 

उधर नागपुर में हेमंत जिसके पिता, राजनीतिक दबदबा रखते थे ने 3 वर्ष पूर्व समाचार पत्र में छपे इंटरव्यू तथा कृष्णा के फोटो से प्रभावित हो, कृष्णा को अपने सपनों में बसा लिया था। इस वर्ष जब हेमंत के पिता दिवाली बाद, उसका विवाह करने के लिए गंभीर दिखे तो हेमंत ने कृष्णा से, अपने विवाह की इच्छा प्रकट कर दी। 

31 जुलाई 99 को लड़के वालों और वह भी राजनीतिक दबदबे वाले प्रतिष्ठित घराने से, स्वयं विवाह का प्रस्ताव, कृष्णा के पिता को दूरभाष पर मिला तो खुशियों का स्तर कृष्णा के मेरिट में आने वाले दिन से भी ऊँचा जा पहुंचा था। 

आमंत्रण अनुसार, आज 9 अगस्त को कृष्णा और पिता, हेमंत के परिवार और निकट सम्बन्धियों से मिलने जा रहे हैं। जिससे दिवाली बाद विवाह तय करने को दिशा मिल सके। सुबह घर से रवाना होते समय बरसात और मौसम के रुख से पिता चिंतित थे। बस जो उन्हें मिली वह भी बहुत ठीक नहीं थी। अन्य यात्री भी असुविधा अनुभव कर रहे थे। बरसते पानी में धीमे गति से बस सौंसर पहुंची थी। बस यात्रियों की असुविधा और बढ़ गई जब पता चला कि आगे नदी में बाढ़ से नागपुर रोड अभी बंद है। 

आधे घंटे खड़े रहने के बाद जब बारिश कुछ थमी तो ड्राईवर ने इस आशा से की अब बाढ़ उतरने के आसार हो रहे हैं, बस आगे बढ़ाई थी। बस जब जाम नदी पर पहुंची तो पानी का स्तर उतरता दिख रहा था। कुछ देर खड़े रहने पर जब पानी रोड पर लगभग दो फुट ही रहा तो आगे के कुछ वाहनों ने पुल पार करना आरम्भ कर दिया। कुछ को पार कर लेने के बाद, इस बस के ड्राईवर ने भी यात्रियों के भयभीत होने पर भी बस पुल पर उतार दी थी। कृष्णा आगे जीवन की कल्पनाओं में खोई कुछ जागी कुछ सोई थी। ड्राइवर की जल्दबाजी से असहमत थी। पर कुछ ना कर सकी। 

"बस के पानी में उतरते ही हिचकोले अनुभव कर उसका कलेजा मुँह को आता है। आधे पुल पर पहुँचने पर एक धड़ की आवाज के साथ बस पानी तरफ झुकती है। चीख पुकार मचती है। कृष्णा को चारों तरफ पानी का अहसास होता है। आँख बंद हो जाती है सांस लेने में कठिनाई होती है। जागी आँखों में चल रहे सपने गुम हो जाते हैं। छटपटाहट कुछ देर रहती है फिर कृष्णा की चेतना लुप्त हो जाती है। "

खोजियों और गोताखोरों को अगले दिन अन्य यात्रियों के साथ कृष्णा का शव (पानी में फूला हुआ ) मिलता है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के हृदय में उमंग, भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और जीवन सपनों की सुखद कल्पना होती है। जिसे तमाशबीन कृष्णा के शव को देखते हुए समझ नहीं सके थे कि किन अपूर्ण कामनाओं को अपने सीने में लिए, मासूम यह युवती अचानक दुनिया से चली गई थी। 


(नोट -  9 अगस्त 1999 को हुई छिन्दवाड़ा म प्र जिले की ह्रदय विदारक बस दुर्घटना में एक भी यात्री जीवित ना बच सका था। 14 वर्ष पूर्व अपने तब की जीवन दृष्टि और कल्पना से बस में मारे गए यात्रियों के अकाल गमन से अधूरे उनके जीवन स्वप्न को, कृष्णा के काल्पनिक पात्र को माध्यम से चित्रित करने का मैंने प्रयास किया था। कृष्णा, अगर ऐसी अकाल मौत का शिकार ना होती तो कृष्णा का आगामी जीवन क्या हो सकता था, यह कल्पना भी मेरी डायरी में लिपिबद्ध है। आज जब में इसे, की-इन कर रहा हूँ तो उसमें अपने 14 वर्ष के और जीवन अनुभव से कुछ संशोधन कर प्रस्तुत कर रहा हूँ। यथार्थ को पलटते हुए कृष्णा की बस दुर्घटनाग्रस्त नहीं होती है।) आगे - 


कृष्णा आगामी जीवन की कल्पनाओं में खोई कुछ जागी कुछ सोई थी। वह, ड्राइवर की जल्दबाजी से असहमत थी। पर कुछ ना कर सकी। (ऊपर वर्णित कहानी के अंतिम से पहले, पैराग्राफ के इस वाक्य को निम्न तरह संशोधन के साथ कहानी का यह भाग आगे यूँ बढ़ता है )


कृष्णा आगे जीवन की कल्पनाओं में खोई कुछ जागी कुछ सोई थी। ड्राइवर की जल्दबाजी से असहमत थी। उसने ड्राइवर से बस रोकने कहा। प्रत्युत्तर में

ड्राइवर -- सब तो निकाल रहे हैं, हम भी निकल लेंगे। 

कृष्णा -- अगर आप जाना चाहते हो तो हम सब को उतार दो। 

ड्राइवर बस किनारे कर रोक कर यात्रियों के तरफ प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारता है। 

ज्ञानचंद ने कृष्णा को इस दृढ़ रूप में पहले नहीं देखा था। वे अचंभित होते हैं। कुछ और यात्री भी कृष्णा से सहमति जताते हैं। ड्राइवर इस विरोध के कारण खिसियाया सा है। तब पीछे एक बस का हॉर्न सुनता है। उसका ड्राइवर अपनी बस आगे बढ़ाता हुआ इस बस ड्राइवर की तरफ कटाक्ष दृष्टि से देखता है। कृष्णा बस से उतर कर उस बस के सामने खड़ी हो, उसे भी नदी के पानी को पुल से नीचे के स्तर पर आ जाने की प्रतीक्षा करने कहती है। वह ड्राइवर नहीं मानता है। कृष्णा को सामने से हटने कहता है। ज्ञानचंद, कृष्णा का हाथ पकड़ सड़क से किनारे की ओर हटाते हैं। 

उस बस का ड्राइवर और कुछ यात्री, कृष्णा पर हँसते हुए, उन्हें पीछे छोड़ते हैं। वह बस आधे पुल पर जा कर डगमगाती है। फिर दुर्भाग्यपूर्ण तरिके से पलट कर नदी की तीव्र धार में क्रमश डूबते जाती है। पुल के दोनों ओर के यातायात रत लोगों को यह डरावना दृश्य दिखता है। वहां हाहाकार मचता है। कोई कुछ कर सकने में असमर्थ है। उपस्थित तैराक भी पानी के तीव्र वेग से भय खाते हैं। नदी में उतरने तैयार नहीं होते। 

देखते देखते बस में उपलब्ध 50-55 लोग, असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। कृष्णा कुछ ही पल पहले उनके हँसते मुख और अभी के डरावने दृश्य के तुलना से सदमे में पड़ बिलख कर रो पड़ती है। क्यों ना हो युवतियां स्वभावतः भावुक होती हैं। उधर इस बस के यात्री भयग्रस्त तो हैं पर चर्चा कर रहे हैं। कृष्णा ने पुल पर दुर्घटना का पूर्व आभास कर लिया था। उन्हें लग रहा है, इस मासूम सी लड़की ने आज, उनके प्राणों की रक्षा की है। इस बीच प्रशासनिक अमला आकर पुल पर यातायात रोकने का आदेश जारी कर राहत कार्य में व्यस्त हो जाता है। 

घर, वापिस आकर ज्ञानचंद, हेमंत के पिता को दूरभाष पर वृतांत सुनाते हैं। हेमंत का परिवार इसे सुन कृष्णा में, दैवीय शक्ति होना मानता है। मिलने का कार्यक्रम स्थगित किया जाता है। फिर दशहरे बाद एक दिन छिन्दवाड़ा पहुंच कर, हेमंत के परिवार वाले कृष्णा से, हेमंत के रिश्ते की स्वीकृति चाहते हैं। कृष्णा भी उन सब से प्रभावित होती है। 

3 - दिसंबर को विवाह दिन तय होता है। विवाह हो जाता है। कृष्णा को मायके से अलग, ससुराल में पारिवारिक और आर्थिक पृष्ठभूमि सुदृढ़ मिलती है। कृष्णा, पढ़ाई आगे जारी रखती है। हिंदी साहित्य में शोध कर डॉक्टरेट करती है। उसके श्वसुर विधायक निर्वाचित होते हैं। कुछ वर्षों में मंत्री भी बनाए जाते हैं। कृष्णा को इस बीच एक पुत्र की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। 

हेमंत के सहयोग से प्रतिभावान कृष्णा को, स्व-व्यक्तित्व निर्माण का अवसर मिलने लगता है। समाज में नारी दशा पर स्वयं का अनुभव और आसपास नारियों की असमर्थता पर वह अत्यंत संवेदनशील होती है। 2007 में फेसबुक पर आकर, नारी में प्रेरणा और संबल बढ़ाने की दिशा में सक्रिय होती है। अपना समर्थन जुटता देख कृष्णा का उत्साहवर्धन होता है। वह फेसबुक पर 2013 में, एक पृष्ठ "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " निर्मित करती है। 

हेमंत के सहयोग से कृष्णा, एक मासिक हिंदी पत्रिका भी इसी नाम से प्रारम्भ करती है। प्रबुध्द पुरुष और जागरूक नारी का ओजस्वी लेखन "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " फेसबुक पृष्ठ और पत्रिका को लोकप्रिय बनाता है। इससे धीरे धीरे इस देश की और समाज की नारी का आत्म-विश्वास बढ़ता है। नारी की दशा धीरे-धीरे सुधरने लगती है। 

2023 आते आते देश की नारी में भारी बदलाव दृष्टिगोचर होने लगता है। कुछ दशक पूर्व की नारियों की प्रवृत्ति जिसके वशीभूत वह पाश्चात्य संस्कृति को आधुनिक और अनुकरणीय मान पाश्चात्य नारी बनने की दिशा में बढ़ती थी, बिलकुल बदल जाती है। देश और समाज को एक सशक्त नेतृत्व, कृष्णा के रूप में मिलता है। 

भारतीय गरिमा से पूर्ण नारी रूप आधुनिकता का प्रतीक बन जाता है। 2030 आते आते अकेले भारतीय ही नहीं शेष विश्व की नारी भी, इस आधुनिकता के पथ पर चलने लगती है। नारी अब भोग की वस्तु जैसी प्रयुक्त नहीं हो रही है। ना ही पुरुष इसे, इस हलके रूप में देखने की धृष्टता कर रहा है ना ही नारी अपने इस तरह के उपयोग (शोषण ) को अब तैयार है। 

कृष्णा 2032 तक विश्व की सबसे चर्चित महिला हो जाती है। विश्व चैनल पर दिए अपने इंटरव्यू में वह राज की बात बताती है। 

9 अगस्त 99 को बस दुर्घटना में वह स्वयं मर गई है, यह मानती हुई कृष्णा, अपने शेष जीवन को समाज की धरोहर मानने लगी थी। उसके बाद से उसे अपने स्वहित के लिए जीने की कोई इच्छा नहीं रह गई थी। कृष्णा अपने इष्ट ईश्वर, द्वारा इस अवसर को एक पुनर्जन्म लिया मानती है। ईश्वर का संकेत समझकर, अपने जीवन को, मानवता और समाज हित में प्रेरणा देने को समर्पित करने का संकल्प लेती है।  कृष्णा अपना जीवन इसी ध्येय में लगाये हुए है। आज की नारी की स्थिति को इस रूप में ले आ सकने का मूल कारण कृष्णा, यही बताती है। 

इसी तरह और 20 वर्ष सक्रिय रहते हुए, सन 2052 में साधारण परिवार में जन्मी, और 74 वर्ष के जीवन में असाधारण व्यक्तित्व में परिवर्तित कृष्णा की, जब मृत्यु  होती है, तो पूर्ण विश्व इसे अपनी व्यक्तिगत क्षति मान कर बिलखता है। । 

इस कृष्णा के काल्पनिक पात्र प्रेरणा से निर्मित "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " फेसबुक पेज का यूआरएल निम्न है। । 

https://www। facebook। com/narichetnasamman/

----राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

10-03-2013



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