Friday, March 8, 2013

अपनी संतानों के अपराधी


अपनी संतानों के अपराधी
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देश में लड़कियों ,युवतियों और महिलाओं पर कई किस्म के शोषण नित प्रतिदिन होते देखे सुने जाते हैं . पढने जाने वाली बेटियां घर से स्कूल और कॉलेज तक इन चर्चाओं में पढ़ती हैं . उन्हें हर समय अपने ऊपर जोर जबरदस्ती न हो भय रहता है . इस भयभीत दशा में बीतता समय उनकी कार्यक्षमता और आत्मविश्वास को बुरी तरह प्रभावित करता है . यह देश आज 25-30 करोड़ किशोरियों का देश है . आज की यह किशोरियां कल की पीढ़ी की जननी हैं . इनका सही विकास ,सही नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा और घर के बाहर सुरक्षित विचरण यदि हम उपलब्ध नहीं करा सके तो आगामी पीढ़ी जो इन की गोद में पलेगी के सही संस्कार और शिक्षा की सुनिश्चितता अपेक्षा नहीं की जा सकेगी .

देश को मिलने वाले आगामी नागरिक सच्चे नहीं होंगे तो देश का भविष्य आज से बेहतर नहीं हो सकेगा . 

अगर हम अपने देश के वातावरण को आज से अच्छा बनते देखना चाहते हैं तो हमें भारतीय नारी जो हमारी अपनी माँ ,बहन या बेटी है के प्रति अपनी दृष्टि निर्मल करनी होगी . जहाँ भी यह हमारे साथ है वहां अपने आचार -व्यवहार से उसे पूर्ण सुरक्षित होने का विश्वास दिलाना होगा . तब नारी का भारतीय पवित्र और पूज्य रूप भविष्य में मिल सकेगा . जो अपने त्याग ,करुणा और दुलार के लिए प्रसिध्द रहा है .

दूरदर्शन पर डेली सोप और फिल्मों में आधुनिकता प्रदर्शित करने के लिए वे चरित्र नहीं दिखाए जाने चाहिए जो ना तो नारी का पूर्ण पाश्चात्य रूप है और ना ही भारतीय रूप है . बल्कि आधा अधूरा (भ्रमित )कन्फ्यूज्ड रूप है . जो कभी इस और कभी उस ओर झुक जाता है .

फिल्म और डेली सोप निर्माता धन कमाने के इस उपाय और लोभ से बचें . वे विश्वास करें ,हमारे संस्कृति और समाज की मर्यादा से संस्कारित नारी का भव्य रूप ही घर-परिवार ,समाज, देश और मानवता की दृष्टि से उत्तम है .

बाकि के विश्व में धन की बाहुलता से मानव जीवन जितना ही सुविधा पूर्ण हो पर वहां का परिवार और उनमे स्नेह और त्याग का बोध और बंधन  हमसे बहुत कम है . अय्याशी में जीवन बिताने वाले वहां के स्त्री पुरुष के मध्य सम्बन्ध बहुत अस्थाई बनते जा रहे हैं . स्त्री पुरुष के कुछ माहया वर्ष में  सम्बन्ध विच्छेद से उनकी संतान उनका आदर उतना नहीं कर पाती है ,जितना भारतीय माँ-पिता और बड़ों को मिलता है .

अचरज होता है . नक़ल अच्छी बात की नहीं , अपने से ख़राब वस्तु की कर क्यों हम अपनी अच्छाई खोते जा रहे हैं ? बेख्याली में थोड़े से मन बहलावे की कीमत पर हम अपना जो बुरा कर रहे हैं उसको हम ही भुगतेंगें सोच परे भी रखें तो  हमारे कर्म आचरण अनुचित ही  हैं  .
हम अपनी संतानों के अपराधी बन रहे हैं जिन्हें अपने स्वार्थ में सही जीवन पथ पर बढ़ाने के स्थान पर हम उन्हें इस पथ  से विमुख कर दे रहे हैं .  अभी विवेक-बुध्दि उनकी अपने भले बुरे को पहचान की पहचान की नहीं है . लेकिन जब हो जायेगी धिक्कारेंगे वे हमें ऐसे स्वार्थी माता पिता की संतान होने के लिए .


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