Friday, March 8, 2013

कष्टमय जीवन को आमंत्रण


कष्टमय जीवन  को आमंत्रण
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तहसील मुख्यालय के छोटे नगर (वारासिवनी म .प्र  .) की आज से 30-35 वर्ष की सच्ची घटना है . एक बाबा एक दिन वहां पहुंचे . थोड़े अभावों और  कम पढ़े लिखे मौहल्ले में अपना ढेरा  जमाया . अंधविश्वासों के कारण कुछ लोग बाबा के पास जुटने लगे . उन्हें भोजन और मान मिलने लगा .वे चमत्कारों की बातें करते . लोगों का कौतुहल जागा .बाबा ने एक रात बताया वे सुबह चारपाई उड़ा कर दिखायेंगे . दूसरे दिन सुबह सड़क पर एक खटिया सहित 10-15 लोग बाबा के साथ इकठ्ठे हुए . बाबा ने खाट के चारों पाँव को चार भिन्न व्यक्तियों  के कंधे के ऊपर हथेली पर रखवाया . कुछ मन्त्र उच्चारित किये . फिर कहा देखो खटिया उड़ रही है . खाट हथेली पर रखे लोगों ने कहना आरम्भ किया हां उड़ रही है और एक दिशा में वे और खाट लिए  बाबा के पीछे  दौड़ने लगे . बाबा ने दौड़ते अन्य लोगों को भी बारी बारी खटिया हथेली पर रख खटिया के उड़ने को अनुभव करने कहा . सभी ऐसा करते ,पुष्टि करने लगे . खटिया उड़ रही है . उन्हें आगे दिशा में चला रही है . उस दिन 200-250 मीटर दूर तक अन्य लोगों ने दृश्य अपने घर-दूकान से देखा . कुछ चमत्कार से सहमत और कुछ कोरी अंध-श्रध्दा  कहे सुनते देखे गए .
इस तरह दूसरे दिन भी बाबा ने यह चमत्कार दिखाया उस दिन भीड़ में 80-90 लोग शामिल थे . तीसरे दिन चर्चा ज्यादा बड़ी सुन हरिशंकर जी भी भीड़ में पहुंचे , उन्हें देख कुछ और पढ़े लिखे लोग भी आ जुटे . बाबा को ससम्मान अभिवादन करने से हरिशंकर जी से बाबा प्रसन्न हुए . उन्होंने खटिया का एक पैर हथेली पर रखने हरिशंकर जी को दिया . और तीन अन्य साथियों के साथ हरिशंकर जी ने भी अनुभव किया . खटिया के साथ वे भी खटिया उड़ रही है कहते दौड़ने लगे . बाकि तीन पावों  से तो लोग बारी-बारी बदल खटिया का उड़ना परिक्षण करते रहे पर हरिशंकर जी का उत्साह बना हुआ था . वे सामने वाले खटिया के पाँव के नीचे बने हुए थे .

आज दूरी भी ज्यादा हो गई और खटिया का उड़ना जारी था . देखने वाले आश्चर्य कर रहे थे , हरिशंकर जी जैसे समझदार को क्या हुआ है . व्यर्थ बातों में आ गए हैं . खैर खटिया उड़ते हुए 1 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय करते बाबा के साथ पुलिस थाने के द्वार से अन्दर पहुँच थम गई थी . हरिशंकर जी ने रिपोर्ट दर्ज करा ढोंगी बाबा को पुलिस के हवाले किया . और अंध-श्रध्दा के बाबा के खेल को विराम लगा .

यह घटना स्मरण करने की वजह है वह है ...

देश में व्यभिचार ,सिध्दांत -नैतिकता विहीन धन अर्जन , स्वार्थ-परस्ती और छल-कपट की खाट के नीचे बहुसंख्यक इकठ्ठे हो रहे हैं . कहते जा रहे हैं हम उन्नति कर रहे हैं , आधुनिक हो रहे हैं . हम उन्नति कर रहे हैं , आधुनिक हो रहे हैं  के नाम पर प्रचलित मर्यादाओं ,परिवार संस्कृति और परहित भाव को ताक पर रख दिया है . इस छद्म आधुनिकता की दिशा में देश बढते हुए कहाँ तक अनैतिक हो जाएगा इससे  वैयक्तिक लालसाओं और सुविधा सम्मोहन और व्यस्त जीवन शैली में हम में अधिकांश बेपरवाह होकर अपने मनुष्य जीवन को बेमोल गवां रहे हैं . इतना होता तो चिंता नहीं थी पर हम अनायास अपने आगामी सन्तति के  आज से अधिक कष्टमय जीवन  को आमंत्रण दे रहे हैं ...

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