Monday, March 25, 2013

मनुष्य ,मानवता और भगवान

मनुष्य ,मानवता और भगवान 
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सभी मनुष्य में भगवान होने की क्षमता है . हम दूसरे भगवान की उपासना में उनके ,उल्लेख और चर्चा में अपना समय लगाते हैं .भगवान में मनुष्य की श्रध्दा सहज स्वाभाविक है . लेकिन उसमें इतनी लीनता जिससे हम अपने में विद्यमान भगवान की पहचान न करें . उचित नहीं है . मनुष्य जन्म के उपरांत समुचित बौध्दिक विकास और सांसारिक अनुभव मिलने तक तो अपने भगवान को तराशना संभव नहीं है . पर जीवन के कुछ वर्षों बाद हमें यह योग्यता मिलने लगती है जब हम स्वयं में भगवान तराश सकते हैं . योग्यता होने पर भी प्रयोग नहीं किये जाने से हम मनुष्य जीवन व्यर्थ करते हैं .

भगवान तराशा जाना  आरम्भ करना और भगवान बन पाना शेष रहना मानवता है . इस तरह मानवता वह पथ है जिस पर चलकर मनुष्य से भगवान का स्वरुप प्राप्त हो सकता है .

भगवान बन जाना कठिन तो नहीं पर भगवान ना भी बने तो प्रयास में हम मानवता के पथ पर चलते हैं . जो मनुष्य समाज हित का कारण तो है ही ...
(किसी की मान्यता ,श्रध्दा को आहत करना लेख का अभिप्राय नहीं है . ऐसा लगे तो सूचित करें तो लेख रिमूव किया जायेगा )


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