Tuesday, March 12, 2013

परिवार संस्कृति

परिवार संस्कृति
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मनुष्य का परिवार में रहना , और परिवार को खुशहाल रखना मानवता है .
विवाह के पूर्व पुरुष या नारी अपने जीवन साथी में जिन गुणों की खोज और अपेक्षा करता है . विवाह उपरान्त कुछ वर्षों में हममें से कई युगल उन गुणों के प्रति परस्पर बेहद उदासीन हो जाते हैं . जबकि एक दूसरे के इन गुणों को परस्पर निखारने उन्हें अपने जीवनसाथी में प्रोन्नत करने में सहायता करना ,ना केवल जीवन-...साथी के लिए अच्छा है अपितु वह परिवार और स्वस्थ्य समाज के लिए भलाई का कारण होता है .
आज अपनी प्रवृत्ति बाह्य संस्कृति के प्रभाव में हम बेहद चंचल बना ले रहे हैं . और वैवाहिक सबंध को अपने मनमुटाव के बीच नीरस बनाते हैं . यह बहाना ले फिर उन गुणों की खोज और अपेक्षा दूसरों में करते हुए . अपने परिवार हितों को खतरे में डालते हुए समाज में बुराई बढ़ाते हैं . अनचाहे परिवार बिखरने के कारण जुट जाते हैं .
मृग-तृष्णा भांति भटकने लगते हैं .फुसला कर या जोर जबरदस्ती से अन्य से सम्बन्ध के यत्न किये जाते हैं . ऐसे विवाहोत्तर सम्बन्ध की कटु सच्चाई यह होती है . चंचल प्रवृत्ति का व्यक्ति जो अपने विवाहित साथी के प्रति ऑनेस्ट नहीं हुआ ,वह मनबहलाव के लिए उपयोग किये जा रहे किसी अन्य परिचित या व्यक्ति का कभी सगा नहीं हो सकता .

अति चंचल प्रवृत्ति समाज में कई बुराई और समस्या का कारण बन उभर रही है . हम अपनी इस कमजोरी पर नियंत्रण करें और मानवता को पुष्ट करें .

सिर्फ मनुष्य ही वह प्राणी है जो परिवार बना जीवन यापन करता है . परिवार संस्कृति बनाये रखना इसलिए मानवता को पुष्ट करने के लिए सर्वथा आवश्यक है ...

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