Monday, March 11, 2013

जीवन बुनियाद

जीवन बुनियाद
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कोई भी विशाल निर्माण (भवन , ब्रिज इत्यादि ) की मजबूती में सर्वप्रथम जो बात महत्वपूर्ण होती है .वह उसकी  बुनियाद पर निर्भरता है . अर्थात भूमि के ऊपर का दर्शित प्रत्यक्ष महल की आयु , वह भूमि के अन्दर जिस बुनियाद पर निर्मित है की गहराई तथा मजबूती पर निर्भर करता है .

यही बात वृक्ष में भी देखी जा सकती है . भूमि के ऊपर दिखने वाले कई प्रजाति के वृक्ष विशाल आकार के दिखते हैं . लेकिन हजारों वर्ष की आयु उन वृक्षों को मिलती है जिनकी जड़ भूमि के भीतर विशाल आकार और गहराई तक फैलती है . 

उपरोक्त उल्लेख को पढ़ सभी को यह प्रश्न उठेगा कि सर्वज्ञात इस लौकिक सत्य के माध्यम से कहा क्या जाने वाला है ? लेखक को ज्ञात है आज सभी का समय बहुत कीमती है , जिसे व्यर्थ व्यय करना सभी को बेहद अखरता है . अतः संक्षिप्त में वह बात रख रहा हूँ .

जीवन शैली में आई व्यस्तता के कारण हम किसी बात को गंभीरता से सोच नहीं पा रहे हैं . हम सभी उतावलेपन का शिकार होते चले जा रहे हैं . हम सभी को व्यग्रता शीघ्र धन उपार्जन की है . शीघ्र मान प्रतिष्ठा की है . शीघ्र अपनी विशाल कोठी और आरामदेह वाहन की है . शीघ्र ही विभिन्न लौकिक सफलताओं की हैं . हम किसी से कम बनने या रहना नहीं चाहते हैं .

इस उतावलेपन के कारण आसपास अन्य  सभी जो  करते हैं हम उस पर अंधाधुंध अनुकरण करने का प्रयत्न करने लगते हैं . इस कमजोरी या उतावली में हम बहुत सी बातों को महत्त्व नहीं देते .

हमारी योग्यता क्या है , हमारा परिवेश क्या है ,हमारे संस्कार क्या हैं , हमारे पारिवारिक ,सामाजिक ,राष्ट्रीय और मानवीय दायित्व क्या हैं . और हमारी व्यक्तिगत रूचि के विषय क्या हैं . ये सारे प्रश्न के सही उत्तर पाए बिना . हम  अंधाधुंध अनुकरण के साथ बिना ठीक जीवन बुनियाद के अपने जीवन को जीना चाहते हैं . फिर    जीवन में अवसाद झेलते हैं और सच अनुभव जब होता है तो विभिन्न अपराध बोधों में घिरे होते हैं . एक तरह की बेध्यानि में जीते 70-80 वर्ष के होते हैं , तो विभिन्न अपेक्षाओं की पूर्ति होते ना देख जीवन संध्या में निराश और पछतावे में होते हैं .

स्वतंत्रता को 65 वर्ष हो गए . स्वतन्त्र होने के पूर्व परतंत्रता ही प्रमुख समस्या लगती थी . उपरोक्त अनियोजित जीवन बुनियाद  और भ्रामक और छद्मता के अनुगामी हो आज जिस मंजिल पर देश और समाज आ पहुंचा है . कतई स्वस्थ नहीं है .

हम सतर्क हों . बुनियादी सुधार अभी संभव हैं . उसके लिए हममें से प्रत्येक को स्वयं की जीवन बुनियाद सुधार लेनी चाहिए . अन्यथा हम धराशाही हो सकते हैं . हमारा देश और समाज दूसरी अप-संस्कृति के हाथों पुनः परतंत्र हो सकता है .

हममें से प्रत्येक विभिन्न प्रतिभाओं के साथ जन्मा है . अपनी प्रतिभा को पहचाने . अपने कर्तव्यों को पहचाने . अपने आचरण और कर्मों में धीरे-धीरे सुधार लायें .
और याचक के रूप में शेष विश्व के समक्ष ना जाते हुए ,दूसरों को अपने उपहास का अवसर ना दें . लेखक ज्यादा कुछ सलाह नहीं दे सकता आप अपने विवेक और न्याय से ही सलाह करें ....


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