मनुष्य का मूल स्वभाव -अच्छाई
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आपसे में सहमत हूँ . लेकिन कुछ प्रकरण में सही प्रेरणा सफल हो सकती है और तब कोई अपनी बुराई अनुभव कर उन्हें दूर कर लेता है . बहुत कुछ ज़माने के ट्रेंड पर भी निर्भर करता है . जब पब या बार में जाना अच्छा नहीं माना जाता था , तब कोई भी हिचक के साथ छुपते वहां जाया करते थे . फिर कुछ के देखादेखी कुछ और जाने लगे तो जाने वालों की संख्या बढ़ने लगी .
वैसे ही बुराई अनुभव होने पर भी बुराई कोई ना छोड़ता दिखे तब दूसरा भी ऐसा ही करता है . लेकिन जब इसे छोड़ने वालों की संख्या बढ़ने लगे तो देखादेखी दूसरे प्रेरित हो ऐसा करने लगेंगे .
मुख्य प्रतिरोध किसी बात को प्रारम्भ कर पाने में होता है . आरम्भ हो चुकी बात जारी रखना उतना मुश्किल या चुनौती पूर्ण नहीं होता है .
पहले बुराई कम थी ,बुराई करते देखे जाने और उसका कोई ख़राब प्रतिफल नहीं मिलता देख यह हमारे समाज में बढ़ रही है .
लेकिन इसकी दिशा बदली जा सकी तो निश्चित ही बुराई छोड़ना आरम्भ और इस प्रकार बुराई कम होना देखा जा सकता है .
जब आदत हो जाती है तो बुराई मनुष्य सरलता से अपनाता है . आदत अभ्यास से बदली जा सकती है .दूसरे प्राणियों को तो मै कम जानता हूँ पर मनुष्य के बारे में जो मेरी समझ है वह यह है कि मनुष्य बुराई पर जाने के विकल्प को आरम्भ में बाध्यता में ही स्वीकार करता है .
अन्यथा मनुष्य को मूल स्वभाव अच्छाई का है जो उसे जन्मजात मिलता है . यह धारणा अपनी भ्रमपूर्ण भी है तो बुरी नहीं है . अन्यथा समस्या (बुराई ) के समक्ष हमारे झुक जाने की आशंका हो जायेगी . ऐसे में बुराई दूर करने के प्रयत्न और कम होते चले जाने की सम्भावना बनेगी जो मानवता और समाज हित की दृष्टि से ठीक संकेत नहीं होगा .
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आपसे में सहमत हूँ . लेकिन कुछ प्रकरण में सही प्रेरणा सफल हो सकती है और तब कोई अपनी बुराई अनुभव कर उन्हें दूर कर लेता है . बहुत कुछ ज़माने के ट्रेंड पर भी निर्भर करता है . जब पब या बार में जाना अच्छा नहीं माना जाता था , तब कोई भी हिचक के साथ छुपते वहां जाया करते थे . फिर कुछ के देखादेखी कुछ और जाने लगे तो जाने वालों की संख्या बढ़ने लगी .
वैसे ही बुराई अनुभव होने पर भी बुराई कोई ना छोड़ता दिखे तब दूसरा भी ऐसा ही करता है . लेकिन जब इसे छोड़ने वालों की संख्या बढ़ने लगे तो देखादेखी दूसरे प्रेरित हो ऐसा करने लगेंगे .
मुख्य प्रतिरोध किसी बात को प्रारम्भ कर पाने में होता है . आरम्भ हो चुकी बात जारी रखना उतना मुश्किल या चुनौती पूर्ण नहीं होता है .
पहले बुराई कम थी ,बुराई करते देखे जाने और उसका कोई ख़राब प्रतिफल नहीं मिलता देख यह हमारे समाज में बढ़ रही है .
लेकिन इसकी दिशा बदली जा सकी तो निश्चित ही बुराई छोड़ना आरम्भ और इस प्रकार बुराई कम होना देखा जा सकता है .
जब आदत हो जाती है तो बुराई मनुष्य सरलता से अपनाता है . आदत अभ्यास से बदली जा सकती है .दूसरे प्राणियों को तो मै कम जानता हूँ पर मनुष्य के बारे में जो मेरी समझ है वह यह है कि मनुष्य बुराई पर जाने के विकल्प को आरम्भ में बाध्यता में ही स्वीकार करता है .
अन्यथा मनुष्य को मूल स्वभाव अच्छाई का है जो उसे जन्मजात मिलता है . यह धारणा अपनी भ्रमपूर्ण भी है तो बुरी नहीं है . अन्यथा समस्या (बुराई ) के समक्ष हमारे झुक जाने की आशंका हो जायेगी . ऐसे में बुराई दूर करने के प्रयत्न और कम होते चले जाने की सम्भावना बनेगी जो मानवता और समाज हित की दृष्टि से ठीक संकेत नहीं होगा .
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