Sunday, March 17, 2013

मानवता और समाज हित

मानवता और समाज हित
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प्रदर्शनी में विभिन्न स्टाल लगे होते हैं .दुनिया को एक प्रदर्शनी रूप में देखें . प्रदर्शनी में कुछ स्टाल पर भीड़ आकृष्ट होती है . जबकि कुछ ऐसे होते हैं जहाँ बिरले ही पहुँचते हैं और रूचि लेते हैं .

आज की दुनिया का प्रदर्शनी रूप ये है . स्टाल के नाम निम्न हैं ...

* अनाप -शनाप धन अर्जन अतिशीघ्र
* समाज में उच्च प्रतिष्ठा स्थान अतिशीघ्र
* स्वयं के प्रति अन्यों की अंधश्रध्दा
* हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ "__________" (ऐसे लगभग 20 , रिक्त स्थान पर विभिन्न धर्म के नाम )
* हमारी भाषा सर्वश्रेष्ठ "_____________" (ऐसे लगभग 200 , रिक्त स्थान पर विभिन्न भाषा के नाम )
* हमारी मनुष्य नस्ल श्रेष्ठ "_____________" (ऐसे 2 , रिक्त स्थान पर विभिन्न शब्द )
* विपरीत लिंग प्रति आकर्षण बढ़ाना

और भी ऐसे कुछ हैं

इन सारों पर भीड़ भरपूर है .

कुछ स्टाल जहाँ स्थान तो बहुत है . पर इक्के दुक्के ही कभी दृष्टव्य होते हैं ... उन स्टाल पर से साइन बोर्ड तक अब नहीं बचे हैं .

मैंने आज उस प्रदर्शनी में प्रवेश किया ... निर्जन से पड़े स्टाल की और कदम उठे .. वहां से खड़े हो जब भीड़ वाले स्टालों की ओर निहारा ... आपाधापी के दृश्य (और संघर्ष ) देख पीड़ा हुई ह्रदय रोता सा लगा .

कहीं आपाधापी के बीच हास्य के दृश्य भी पैदा हो रहे थे .. देख हँसी सी आ रही थी उनकी व्यग्रता उस वस्तु पर देख जिनसे उन्हें बहुत हासिल होने का भ्रम होने वाला था . जबकि वहां हासिल नहीं कुछ गवां देना "कटु सत्य" है .
मुझे ना रोना पसंद है और ना ही दूसरों की दुर्दशा पर हँसना ही पसंद है .
उपरोक्त "दुनिया प्रदर्शनी" पर एक ही विचार ह्रदय में कौंधता है .
"हम देखादेखी किसी भीड़ का हिस्सा ना बनें . भीड़ में स्वयं सोच-विचार की शक्ति कुंठित हो जाती है . हम भीड़ से अलग खड़े होने का आत्मविश्वास स्वयं में पुष्ट करें . जब हम भीड़ से अलग खड़े हो सोचते और देखते हैं तो हमें भीड़ क्या खराबी कर रही है दृष्टिगोचर हो सकता है . फिर हम भीड़ को चाहें तो वह रास्ता बताने की हिम्मत कर सकते हैं कि क्या देश,समाज और मानव उन्नति और कल्याण के लिए उचित है . हालांकि भीड़ की सोच से अलग विचार रखने में एक खतरा अवश्य हो सकता है .भीड़ को विपरीत विचार या बात रुचिकर नहीं लगने पर हमारे पर पथराव हो सकता है हमारे कपडे फाड़े जा सकते हैं . हमारे प्राण तक लिए जा सकते हैं . लेकिन मानवता की रक्षा समाज के हित के लिए किसी भी इस तरह की आशंका और खतरों से निराश और हतोत्साहित हमें नहीं होना चाहिए "
हम किसी का विरोध नहीं करते . हमारा एकमात्र विरोध बुराई से है .....
--राजेश जैन
17-03-2013

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