Saturday, March 16, 2013

कालजयी रचना

कालजयी रचना
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सूरज तुम उदित हो रहे प्रतिदिन
तुम से ग्रहण कर सकूं आलोक इतना 
कर सकूं आलोकित उनकी दुनिया 
जो होते हुए सूरज तुम्हारे भी 
विडम्बना भोगते जीवन अँधियारा 

गर मै ऐसा ना कर सकूं तो 
मुझे शिकायत होगी स्व-प्रतिभा से 
अगर तुम नहीं बना सकती मुझे सामर्थ्यवान तो 
क्यों मिला मुझे अधूरा  सा मनुष्य रूप यह 

सहायता करो हे सूरज और प्रतिभा मेरी 
मै उठा रहा लेखनी प्रतिदिन 
सामर्थ्य दो इस लेखनी में मेरी 
कर सकूं रचित रचना ऐसी 
कालजयी रचना  निमित्त बने जो  
 
जिससे ज्ञान चक्षु बनें योग्य इतने  सबके 
देख सकें जो पर वेदनाओं को भी 
जो दिखने लगे करुण दृश्य यह आज का 
तब ही तो होगें सही उपाय, व्यवस्था 
मुझे विश्वास यह मनुष्य प्रतिभा पर ...


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