Saturday, March 2, 2013

मन को स्पर्श- मानवता


मन को स्पर्श- मानवता
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तन का स्पर्श भौतिक वस्तु है . भौतिक वस्तु की संख्या सीमित हैं . हर भौतिक वस्तु की भांति इसकी (तन का स्पर्श) सीमाएं हैं . पूरे जीवन में एक शरीर को दूसरे से स्पर्श चाहे वह हाथ मिलाये जाने ,आलिंगन ,ममता , सहयोग ,कामसुख या किसी भी प्रकार का हो कुछ संख्या तक ही पहुँचता है .
 
दूसरी और मन का सच्चे अर्थ में स्पर्श मानवता है . यह असीमित है . एक के मन को स्पर्श कोई तब ही कर सकता है , जब उसकी भलाई कोई कर सके .कोई भी  भलाई प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से  किया जाना संभव है . भलाई जीवन में और म्रत्यु पर्यन्त भी की जा सकती है . उदहारण के लिए देखें एक छायादार , फलदायी वृक्ष कोई लगाता है . अब वह जीवित है या नहीं ,पर ग्रीष्म में लू लपट से व्याकुल कोई पथिक उस वृक्ष की छाया में रूकता है , तो शीतल छाया और बयार के माध्यम से वृक्ष लगाने वाला उस व्यक्ति के मन को स्पर्श करता है . उसके फल जब किसी की उदर पूर्ती को उपलब्ध होते हैं . तब भी व्यक्ति के मन को स्पर्श किया जा सकता है .
 हम जीवन में दूसरों के भलाई के परोक्ष और अपरोक्ष बहुत से कर्म कर सकते हैं . जो हमारे जीवन में और उसके उपरान्त भी अनंत  प्राणी मन को स्पर्श कर सकते हैं . मनुष्य जीवन क्या है?  किस प्रकार सार्थक किया जा सकता है ? अगर हम सोच नहीं पा रहे हों तो इस दृष्टिकोण से देखें शायद जीवन दिशा मिल सके .
आज भौतिक चाह  के पीछे सब भागते हैं . जिनसे प्रेरणा ग्रहण की जा रही है या जिन्हें अपना आदर्श सब मान रहे हैं ,वे भौतिक से सम्मोहित हैं . स्वयं उसके पीछे भाग रहे अतः अपने पथगामी (followers) को भी दिग्भ्रमित कर उसी पथ पर चला रहे हैं . भौतिकता को पाने में परस्पर संघर्ष संभावित होता है . इस कारण मनुष्य समाज में संघर्षों को जहाँ तहां देखा और अनुभव किया जा रहा है . संघर्ष में सुख नहीं है .
सुख सहयोग में है . सहयोग के माध्यम से ही  मन को स्पर्श कर किया जा सकता है . सुख मानवता में है . मानवता को पुष्ट किया जाना आवश्यक है .
विचार आचरण और कर्मों की समीक्षा इस कसौटी पर स्वयं करें .
निश्चित ही आप स्वयं सुखी होंगें और दूसरों के सुख का कारण बन मानुष जीवन सार्थक कर सकेंगे . समाज हित का वातावरण बनाने में सहयोगी बन सकेंगे।

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