Sunday, June 29, 2014

सुखी जीने की कला

सुखी जीने की कला
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जीवन में बहुत कुछ ना पाकर भी
और बहुत अधिक कुछ खोकर भी
सुखी जीने की कला सीखी जिसने
गया वह सार्थक जीवन जीकर ही

ज्यों जीवन है बढ़ता जाता
त्यों अंग प्रत्यंग खोता जाता *
यों तो अर्जित करता ज्ञान धन
किन्तु आयु कर्म घटता जाता

रूप मिला वह नहीं सधता कभी
जब उपाय साधने के करते सभी
ज्यों ज्यों जीवनक्रम बढ़ता जाता
पाना-खोना सब यों ही चलता है

आयु साथ जो बढ़ती है
मित्र, वह एक ही वस्तु है
परोपकार करने की आदत
मनुष्य जीवनभर सजती है

खूब करें हम नेकी सब
जीवन ख़ुशी बाँटे सब
बुराई समाज घटाने को
संकल्प सभी अब लेलें सब

जीवन में बहुत कुछ ना पाकर भी
और बहुत अधिक कुछ खोकर भी
सुखी जीने की कला सीखी जिसने
गया वह सार्थक जीवन जीकर ही

--राजेश जैन
30-06-2014

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