Wednesday, June 4, 2014

कन्यादान?

कन्यादान?
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दान तो किसी वस्तु का मालिक अन्य किसी को वह वस्तु दे दे उसे कहते हैं।

क्या बेटी के माँ अथवा पिता , उसके मालिक होते हैं जो उसे दान करते हैं ? और क्या विवाह के बाद पति या ससुराल पक्ष उस पत्नी/बहु  (जो कल तक बेटी थी ,अब यह भी होती है ) का मालिक हो जाता है ?

अगर ऐसा है तब हमारी मान्यता अनुचित है। और नहीं तो  यह कन्यादान शब्द का गलत संधि विग्रह मात्र है।

कन्यादान निश्चित ही उस विवाह रस्म का नाम है , जिसमें अपनी प्रिय बेटी को , उसके सम्मान ,सुरक्षा और उससे पुत्रीवत स्नेह  और धर्मपत्नी के सभी अधिकार देने के लिए वधुपक्ष (सामान्यतः पिता ) , वर के माँ-पिता / वर को सौंपता है।

दहेज़ भी बाध्यता में देना या बाध्य कर लेना , अनुचित प्रचलन है।  आवश्यकता रीति रस्मों में आई खराबियों के  सुधार के साथ ,नारी-पुरुष दोनों के चरित्रवान होने की है।  और सुरक्षित सेक्स के नाम पर विज्ञापनों में दुष्प्रेरित करते प्रचार के झाँसे में नहीं आने की है।
ये स्वछंदता वास्तव में भारत के बाहर की खराबी है, छूत का रोग है जो पाश्चात्य समाज को दीमक की भाँति चट कर रहा है ,जिसे आधुनिक (MODERN ) कहलाने के नाम पर हम अंगीकार कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति और समाज के लिये यह आत्मघाती सिध्द होगा। हम अपनी भारतीय पहचान रखना चाहते हैं और इस भव्य अपनी संस्कृति का लाभ शेष विश्व को भी दिलाना चाहते हैं , तो हमें उनकी अपसंस्कृति को नहीं अपनाना होगा . अपितु अपने आत्मविश्वास और समाज हित कारी दृढ आचरण से उन्हें प्रभावित करना होगा।

राजेश जैन
05-06-2014

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