Tuesday, June 3, 2014

वास्तविक और वर्चुअल संसार

वास्तविक और वर्चुअल संसार
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सुबह हुई , स्वमेव कुछ तैयारी के बाद कदम प्रातः कालीन भ्रमण के लिए घर के बाहर को उठ जाते . उसकी नियमित दिनचर्या 14 वर्षों से ऐसी बन गई थी।  प्रायः  अकेला कभी सपत्नीक भ्रमण में रिज रोड पर पहुँच जाया करता , पत्नी को रसोई के कार्य होते अतः कुछ दूर साथ जाकर बीच से लौट जाया करती।  तब शेष भ्रमण में अकेला वह चलता फुटपाथ पर कुछ दृष्टि बाहर रख प्रायः अपने मन की गहराइयों में उतर जाया करता।

यहाँ उसे विवेक (स्व ) और कामना नाम का पति -पत्नी का जोड़ा मिलता।  विवेक वह अपने विचार क्षमता को कहता और कामना ,सभी जीवन लालसाओं ,चाहतों का नाम होता।  पत्नी की भाँति कामना उसे जीवन पथ पर प्रगति की ओर अग्रसर करती ( चलने को उकसाती )  . विवेक (पति) कामना को नैतिकता और न्यायसंगत शैली में नियंत्रित करता।

विवेक और कामना इस जोड़ी का साथ अनुभव करता उसका भ्रमण 6 कि मी का कब पूरा होता उसे पता नहीं होता और उसके कदम गृह में प्रवेश कर जाते। पिछले 2 वर्षों के ऊपर से उसने एक नई हॉबी बना ली थी।  पूर्व में फेसबुक को समय की व्यर्थता मानता था , अब उसको उसने उपयोगिता में शामिल कर लिया था।

पति -पत्नी द्वय (विवेक और कामना ) का साथ कर उसकी लेखनी कुछ लिपिबध्द कर देती।  और वह उसे फेसबुक पर पोस्ट कर देता।  कुछ उसके तरफ से पहल से और कुछ उसकी पोस्ट से आकृष्ट हो उसके मित्र बन गये थे। उनमें अधिकाँश वास्तविक संसार में उसके अपरिचित थे लेकिन इस वर्चुअल वर्ल्ड में उसके करीबी थे।

वह पूरे दिन वास्तविक और वर्चुअल संसार में स्विच करता रहता।  सुबह के किये विवेक और कामना के साथ से फेसबुक के मित्रों के साथ का संसार वर्चुअल था।  और कार्यालीन और परिवार दायित्व वास्तविकता थी।

आरम्भ में जिन बातों से शिकायत जिन व्यवहार को मूर्खता पूर्ण मान उत्तेजित हो , क्रोध में प्रतिक्रिया प्रगट करता और स्वयं और दूसरों को अप्रियता बाँटता था. अब अपने वर्चुअल संसार में जा वापस आकर उन्हीं परिस्थितियों में धीर गंभीर और संयत रहता , अब आवेशित अपने व्यवहार को ही मूर्खता मान स्वयं पर हँस लेता।

लोग कहते क्या जरुरत है 6 कि मी चल , एक  घंटे प्रतिदिन ख़राब करने , बच्चे सोचते क्या जरुरत बिना लाभ के घंटे -दो घण्टे फेसबुक पर व्यर्थ करने की। वह सोचता धूम्रपान में नहीं ,मदिरा सेवन में नहीं ,फ्यूल व्यर्थ करने में नहीं खर्च किये पैसे , इस वर्चुअल संसार से अपरोक्ष धन अर्जन ही था।

वह ,विवेक -कामना के बीच के मंथन से मिला इसे अमृत मानता था। जिसको बाँट मानवता और समाज हित पोषित करना अपना सामाजिक दायित्व मानता था। इसमें कोई जबरदस्ती ना कर वह इसे इंडिविसुअल की इक्छा पर छोड़ता।  इसे ग्रहण करे या ना करें .

मॉर्निंग वॉक से इस तरह शारीरिक और मानसिक फिटनेस के लाभ को अनुभव करता था।  अब दो संसार में जीता था।  एक संसार से सृजन की प्रेरणा लेता और दूसरे (वास्तविक ) संसार में उसे क्रियान्वित करता जीवन पथ पर क़दमों के कुछ निशान छोड़ता वह निरंतर चला जाता था।

इस लाभान्वित व्यक्ति की तरह नहीं भी तो अन्य तरह से नियमित वॉक करने से सभी को कुछ अवश्य अच्छा हासिल हो सकता है। दिनचर्या में शामिल कर देखिये इसे।

राजेश जैन
04-06-2014

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