Thursday, June 26, 2014

यथोचित संभाल

यथोचित संभाल
----------------
सिने जगत अस्तित्व में आने के बाद हर दौर में वहाँ की कुछ नारियाँ और पुरुष को वह लोकप्रियता प्राप्त हुयी है , वह आकर्षण उनका रहा है कि अभिनेत्री हो तो देश की पुरुष बाँहें और अभिनेता है तो नारी बाँहें फैलकर उनसे आलिंगनबध्द होने को बेताब हुई। यह एक तरह का सम्मोहन होता है , जो फिल्मों के व्यापक प्रसारण होने से पैदा किया जा सकता है।  सिने जगत के अस्तित्व में आने के बाद पत्र-पत्रिकाओं और उपन्यास या जीवनी तरह के साहित्य में अन्य लोगों (महान) को पढ़ने की प्रवृत्ति भी जाती रहीहै. अधिकांशतया इन्हीं लोगों को पढ़ा देखा जाने लगा है। ऐसी सफलतायें किसी और क्षेत्र के व्यक्तियों को प्राप्त करने में पूरा जीवन समर्पित करने पर भी नहीं मिल पाती है , जो इन्हें कुछ फिल्म या कुछ ही वर्षों की फिल्मों से मिलती है।

लेखक पिछले कई लेखों में देश के सामाजिक वातावरण और नारी शोषण में फिल्मों और वहाँ की हस्तियों को कारण उल्लेख कर कोसता रहा है . अधिकाँश नई उत्पन्न सामाजिक बुराइयों के लिए दोषारोपण उन पर करता रहा है। ऐसा इस लेखक ने ही किया हो यह भी नहीं है।  इस लेखक के लेख के अंश तो फिल्म से जुड़े किसी छोटे व्यक्ति तक भी नहीं पहुँचा होगा , किन्तु अन्य प्रसिध्द और दक्ष लेखकों, साहित्यकारों की आलोचनाएं फ़िल्मी लोगों तक पहुँचती रही होंगी ,फिर क्या कारण है कि सिने जगत ने अपने सामाजिक सरोकारों को नहीं समझा , और उनके प्रति उदासीनता बरतते रहे।

यह प्रश्न लेखक के विवेक के समक्ष उपस्थित हुआ तो वहाँ से उत्तर मिला कि सफलता भी महान व्यक्ति को जब मिलती है तो वह उसे भलीभाँति संभाल पाता है , लेकिन जो इन सफलताओं का पात्र नहीं होता वह सफलता की चकाचौंध में अहंकारी हो सकता है , अनैतिक हो सकता है ,व्यभिचारी बन सकता है और अन्याय कर सकता है।

अहंकारी - विज्ञापन , स्वयं को अवार्ड लेते देते कार्यक्रमों इत्यादि में फिल्मी सफल लोगों की बॉडी लैंग्वेज पर अगर हम गौर करें तो उसमें झलकता पायेंगे कि वे दर्शक को मूर्ख मान रहे हैं।
व्यभिचारी - बड़ी बड़ी उम्र तक विवाह ना करके दैहिक संबंधों और विवाहित होकर भी विवाहेत्तर संबंधों का फ़िल्मी इतिहास व्यभिचार का प्रत्यक्ष पुष्टि करता है , जिसकी प्रवृत्ति देख देख और पढ़ पढ़ कर देश और समाज में फ़ैल रही है।
अनैतिक - धन संग्रहण और कमाने की प्रवृत्ति यहाँ आम है , किन्तु लेन देन और टैक्स पेमेंट आय नियमों अनुसार ना करना , अनैतिकता को पुष्ट करता है।
अन्याय - देश जब आर्थिक रूप से कमजोर है , तब गरीब के पैसे खर्च करवा कर बदले में उसको पथभ्रष्ट करने की दुष्प्रेरणा देना यह सामाजिक अन्याय भी सिने जगत करता है।

वस्तुतः कम उम्र में अथाह सफलता वह मनोवैज्ञानिक कारण है ,वह परिस्थितियाँ हैं जो यहाँ के सफल व्यक्ति की सुई सिर्फ व्यभिचार,अनैतिकता ,आडम्बर ,अन्याय और अभिमान  पर अटका देती  है जिससे आजीवन वह उभर नहीं पाता है. वह एक तरह के अंधत्व का शिकार होता है जिसके प्रभाव में उसमें अपनी बुराई , बुरे आचरण -कर्म नहीं दिखते। वह उस दया-करुणा भाव को भी नहीं समझता जिससे देश और समाज में दुःख और गरीबी देख कर एक स्वस्थमना व्यक्ति पसीजता है और फिर अपने सामाजिक दायित्व के प्रति चेतन होता है    .

अंततः यही लिखा जाना उचित है सिने जगत की बुराई बढ़ाने में कुछ हद तक हम सामान्य लोग जिम्मेदार हैं , जो अपात्र को इतना पैसा ,सम्मान और लोकप्रियता देते हैं , जो सफलता की यथोचित संभाल भी नहीं जानते।

--राजेश जैन
27-06-2014

   

No comments:

Post a Comment