Sunday, June 8, 2014

मनुष्य भी एक विचार है

मनुष्य भी एक विचार है
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विचार , निराकार वह वस्तु है जो मनुष्य मन / ह्रदय में उत्पन्न हो बहुत  सी भौतिक वस्तुओंं को उत्पन्न करने का कारण बनती है।

उदहारण - आज के सुविधा संपन्न घर और उनमें उपयोग आती बहुत सी (लगभग सभी, प्राकृतिक वस्तुओं को छोड़कर ) सामग्री , किसी दिन मनुष्य मन में विचार रूप उत्पन्न हुईं और कालांतर में उसने मूर्तरूप लिया।

हर मनुष्य , जो जीव रूप आज अस्तित्व है अगली सदी तक (या अगली सदी में ) अस्तित्व विहीन हो जाएगा , और तब अगर किसी के स्मरण में आएगा तो एक विचार ही बन रह जाएगा।

हाँ , मनुष्य , दूसरी मनुष्य सृजित वस्तु से थोड़ा भिन्न है।  दूसरी वस्तु अस्तित्व में आने के पहले विचार में आती हैं ,जबकि मनुष्य अस्तित्व में होता है , उपरान्त विचार में रह जाता है।

जिस तरह विचार , हर मनुष्य के जीवन में अनेकों आते हैं , चले जाते हैं।  उस तरह मनुष्य भी अनेकों आते हैं ,चले जाते हैं। विचार जैसे अनेकों होते हैं , स्मरण में कुछ ही रह जाते हैं।  मनुष्य भी अनेकों हुए खो गए , कुछ ही स्मरण किये गए, शेष आरम्भ /अंत हीन काल चक्र में कहीं विलीन हो गए।

अब जब मनुष्य विलीन ही हो जाता है तो फिर आज उसका  अच्छा या बुरा रहना क्या अंतर करता है ? लोग कुछ भी कहें , चाहे बुरा कहलें वह अपनी मनमानी करले तो क्या अंतर पड़  जाएगा ?

वास्तव में बुरा क्या है , हम इसे समझें . अति कई  चीज की बुराई हो जाती है।
उदाहरण-  नारी पुरुष संसार में हर जगह मिल जाते हैं , नोंक झोंक इत्यादि सहज चलती रहती है।  उसमें अति हो जाये बुराई बन जाती है।  पति -पत्नी का रिश्ता एक बार बनता है ,एक से बनता है अच्छा होता है।  अनेकों से ऐसा रिश्ता (अति) बनाने का क्रम बुरा होता है। (एक से विवाह और उससे आजीवन साथ को संस्कृति या परम्परा बनाया गया है।  हम इसे बदलने का प्रयास ना करें )

जब मनुष्य विचार रूप ही रह जाने वाला है , वह भी कभी बिल्कुल ही विलीन हो जाने वाला है। तो क्यों ना हम मन की ही पूरी कर लें , बुरा लगे किसी को तो लगता रहे।  ऐसा भी (कु)तर्क हो सकता है।

इसका समाधान हम ऐसा करलें ।  अगर हम किसी को एक थप्पड़ मारने का मन होने पर उसे मार दें।  अगर इसे हम बुरा ना कहें तो बिना हमारी गलती पर कोई हमारे मुख पर तमाचा जड़ दे तो फिर हमें इसको भी बुरा नहीं कहना चाहिए। अगर हम अपने पर हिंसा जबरदस्ती को बुरा कहते हैं , तो हमें भी किसी के साथ हिंसक नहीं होना चाहिए। किसी पर जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।

इसलिये , भले ही हम इक विचार जैसे ही साधारण हैं , अस्तित्वहीन हो जाने वाले हैं  लेकिन हमारे कर्म ,आचरण और व्यवहार अच्छे होने चाहिये।  क्योंकि बुराई को हम बुरा कहते हैं।  इसलिये हममें भी बुराई नहीं होनी चाहिए।

अपनी बुराई हम जिस दिन कम कर लेंगे।  देश /समाज से बुराई स्वतः कम हो जायेगी  ।

--राजेश जैन
08-06-2014

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