नारी क्या चाहती है ?
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"नारी चेतना और सम्मान रक्षा " यद्यपि नारी देह के चित्रों की प्रदर्शनी नहीं होने से इसका प्रसारण क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं है , जितना ऐसी प्रदर्शनी वाले पेजेस को मिलता है , किन्तु डेढ़ वर्ष की इसकी यात्रा में कुछ प्रबुध्द व्यक्तियों ने इसमें रूचि ली है। लेखक के नारी सम्मान के लिए लिखे लेखों पर कुछ अच्छी टिप्पणियाँ आती रही हैं हैं , कुछ प्रश्न भी आये हैं। एक प्रश्न पर आज का आलेख लिखूंगा , प्रश्न है ?
नारी क्या चाहती है ?
अनुमान से उत्तर है . सर्वोपरि इस देश की नारी अपने आचरण (चरित्र) को उसी मानकों पर परखा जाना चाहती है जिस पर पुरुष को परखा जाता है। हमारी संस्कृति में नारी और पुरुष दोनों की समान सद्चरित्रता के आदर्श कहे गए हैं किन्तु हमारे समाज में पुरुष चरित्रहीनता को बहुधा अनदेखा या ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता , जबकि नारी से आदर्श चरित्र की अपेक्षा की जाती है।
मानकों की समानता दो तरह से संभव होती है …
1 - नारी और पुरुष दोनों आदर्श चरित्र को निभायें , और दोनों की ही चरित्रहीनता को एक ही सामाजिक सजा प्राप्त हो।
2 - पुरुष जैसी नारी को भी स्वच्छंदता की अनुमति हो जाये।
पहले दूसरी को क्यों अस्वीकार्य किया जाना चाहिये ? इस पर उल्लेख करें। पुरुष और नारी दोनों को लगभग एक जैसी स्वच्छन्दता पाश्चात्य देशों में मिली है .वहाँ पर पारिवारिक अस्थिरता की घटनायें आम हैं। परिवार टूटते जुड़ते रहते हैं। बच्चे कभी अपनी माँ और अन्य पिता के साथ या पिता और अन्य माँ के साथ पलने को विवश होते हैं। अपने वास्तविक माता पिता के साथ लालन-पालन से वंचित उच्च संस्कारों से वंचित होते हैं। वहाँ धन और सुविधाओं से भले ही जीवन सुगम होता हो किन्तु मानसिक सुख जो एक परिवार जुड़ाव से भारतीयों को मिलता है/था। वह उस समाज में उपलब्ध नहीं होता है। इसलिये चरित्र मानक हम पाश्चात्य जैसे शिथिल (रिलैक्स) नहीं कर सकते। वहाँ पोर्नस्टार को भी धिक्कारा नहीं जाता , उसे प्रोफेशन जैसा महत्व ही दिया जाता। लेकिन कम से कम भारत की इस पीढ़ी तक कोई माँ-पिता अपने पुत्र -पुत्री को या भाई -बहन अपने बहन-भाई को इस पेशे में देखना पसंद नहीं करता।
अब पहले मानक पर आते हैं , जो इस देश की संस्कृति है। भारतीय नारी यही चाहती है कि चरित्र की जिन सीमांओं में भारतीय परिवार पुत्री -बहन या पत्नी को देखना चाहता है , उन्हीं सीमाओं में पुत्र -भाई और पति को भी रखा जाये। पुरुष जब इस तरह से मर्यादित होगा तो घर में और घर से बाहर के विचरण में वह वातावरण मिलेगा जिसमें नारी सुरक्षित होगी और उसको भी यथोचित सम्मान मिल सकेगा।
नारी और क्या चाहती है , लेखक तो आगे लिखेगा ही लेकिन पुरुष होने से वह एक अनुमान ही होगा। इसलिए अनुरोध है कि इस लेख को पढ़ने वाली नारी अपनी लेखनी से लिख कुछ पोस्ट या कमेंट करें , या लेखक को मैसेज करें , ताकि वह अनुमान से बढ़कर यथार्थ बन सके।
--राजेश जैन
28-06-2014
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"नारी चेतना और सम्मान रक्षा " यद्यपि नारी देह के चित्रों की प्रदर्शनी नहीं होने से इसका प्रसारण क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं है , जितना ऐसी प्रदर्शनी वाले पेजेस को मिलता है , किन्तु डेढ़ वर्ष की इसकी यात्रा में कुछ प्रबुध्द व्यक्तियों ने इसमें रूचि ली है। लेखक के नारी सम्मान के लिए लिखे लेखों पर कुछ अच्छी टिप्पणियाँ आती रही हैं हैं , कुछ प्रश्न भी आये हैं। एक प्रश्न पर आज का आलेख लिखूंगा , प्रश्न है ?
नारी क्या चाहती है ?
अनुमान से उत्तर है . सर्वोपरि इस देश की नारी अपने आचरण (चरित्र) को उसी मानकों पर परखा जाना चाहती है जिस पर पुरुष को परखा जाता है। हमारी संस्कृति में नारी और पुरुष दोनों की समान सद्चरित्रता के आदर्श कहे गए हैं किन्तु हमारे समाज में पुरुष चरित्रहीनता को बहुधा अनदेखा या ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता , जबकि नारी से आदर्श चरित्र की अपेक्षा की जाती है।
मानकों की समानता दो तरह से संभव होती है …
1 - नारी और पुरुष दोनों आदर्श चरित्र को निभायें , और दोनों की ही चरित्रहीनता को एक ही सामाजिक सजा प्राप्त हो।
2 - पुरुष जैसी नारी को भी स्वच्छंदता की अनुमति हो जाये।
पहले दूसरी को क्यों अस्वीकार्य किया जाना चाहिये ? इस पर उल्लेख करें। पुरुष और नारी दोनों को लगभग एक जैसी स्वच्छन्दता पाश्चात्य देशों में मिली है .वहाँ पर पारिवारिक अस्थिरता की घटनायें आम हैं। परिवार टूटते जुड़ते रहते हैं। बच्चे कभी अपनी माँ और अन्य पिता के साथ या पिता और अन्य माँ के साथ पलने को विवश होते हैं। अपने वास्तविक माता पिता के साथ लालन-पालन से वंचित उच्च संस्कारों से वंचित होते हैं। वहाँ धन और सुविधाओं से भले ही जीवन सुगम होता हो किन्तु मानसिक सुख जो एक परिवार जुड़ाव से भारतीयों को मिलता है/था। वह उस समाज में उपलब्ध नहीं होता है। इसलिये चरित्र मानक हम पाश्चात्य जैसे शिथिल (रिलैक्स) नहीं कर सकते। वहाँ पोर्नस्टार को भी धिक्कारा नहीं जाता , उसे प्रोफेशन जैसा महत्व ही दिया जाता। लेकिन कम से कम भारत की इस पीढ़ी तक कोई माँ-पिता अपने पुत्र -पुत्री को या भाई -बहन अपने बहन-भाई को इस पेशे में देखना पसंद नहीं करता।
अब पहले मानक पर आते हैं , जो इस देश की संस्कृति है। भारतीय नारी यही चाहती है कि चरित्र की जिन सीमांओं में भारतीय परिवार पुत्री -बहन या पत्नी को देखना चाहता है , उन्हीं सीमाओं में पुत्र -भाई और पति को भी रखा जाये। पुरुष जब इस तरह से मर्यादित होगा तो घर में और घर से बाहर के विचरण में वह वातावरण मिलेगा जिसमें नारी सुरक्षित होगी और उसको भी यथोचित सम्मान मिल सकेगा।
नारी और क्या चाहती है , लेखक तो आगे लिखेगा ही लेकिन पुरुष होने से वह एक अनुमान ही होगा। इसलिए अनुरोध है कि इस लेख को पढ़ने वाली नारी अपनी लेखनी से लिख कुछ पोस्ट या कमेंट करें , या लेखक को मैसेज करें , ताकि वह अनुमान से बढ़कर यथार्थ बन सके।
--राजेश जैन
28-06-2014
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