Sunday, June 1, 2014

मँझधार में जाने से कतराती कश्तियाँ

मँझधार में जाने से कतराती कश्तियाँ
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लेखक , प्रशंसक शीर्षक से लिखे लेख में ही यह लिखना चाहता था , लेकिन हमारे पढ़ने के धैर्य से लंबा लेख ना हो जाये। इसलिये पृथक लिखना उचित था।

बहुत तीव्र मस्तिष्क , जानकार , प्रतिभा के धनी बच्चे और बड़े देखने मिलते हैं।  उन्हें कहीं सफलता के कठिन स्तर को छूते देखा जाता है।  लेकिन अंततः एक खुशहाल परिवार और पूर्व-अपेक्षा ज्यादा धन वैभव की मंजिल पर थमते उन्हें देखा है।

बच्चे मेहनत करते हैं , अनेकों आई आई टी , आल इंडिया पी एम टी , या ऐसी ही कुछ चुनौती पूर्ण प्रवेश परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं, शीर्षस्थ शिक्षा संस्थानों में पहुँचते हैं।  फिर अब तक किये कड़ी मेहनत और रहे अनुशासन के जीवन से उकता कर ना तो मेहनत के उस भाव को कायम रख पाते हैं ना ही अनुशासन की अब तक की जीवन शैली को आगे बढ़ाते हैं।  यहाँ पहुँच जाना उनका अच्छी जॉब और एक धन वैभव युक्त जीवन प्रायः सुनिश्चित  कर देता है इसलिए। कुछ फिर भी मेहनत करते हैं , उन्हें एक और मंज़िल पानी होती है. यू एस ए या यूरोप में जॉब चाहिये होता है। वहां उनका जीवन बहुत ही सुविधाजनक हो जाने वाला होता है , वहाँ का स्वच्छंद सा जीवन युवा उम्र में और सिस्टम पूरे जीवन के लिए उन्हें सरस लगता है।

जिस कश्ती की क्षमता बहुत जूझते की होती है , बहुत दूर तक चली जाने की होती है , सागर के शाँत से स्थान पर पहुँच अनुकूलताओं का अनुभव पाकर सिर्फ वहीँ वहीँ चक्कर लगाने लगती है।  छोटी किसी मंजिल पर पहुँच थम सी गई ज़िन्दगी ,एक सम्भावनाशील प्रतिभा और व्यक्ति का जीवन सुख तो सुनिश्चित कर देती है।  लेकिन इतना प्रदर्शन ( परफॉरमेंस ) लेखक को अपर्याप्त लगता है , क्योंकि समाज  और एक सिस्टम ने उनमें ये गुण विकसित किये होते हैं , इस प्रदर्शन से उसे (समाज या सिस्टम को ) समुचित प्रतिफल कुछ नहीं मिल पाता है ।

क्यों ये धन को जीवन सफलता मानने की भूल करते हैं ? इससे ज्यादा धन और सुविधा तो कहीं कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी कुछ कुछ उपायों से अर्जित करता है (उनकी बुराई नहीं प्रशंसा है क्योंकि वे परिवार अपेक्षा को अपनी मानी गई योग्यता से बढकर पूरी करते हैं ) . लेखक ये प्रश्न नहीं उठाता यदि हमारा देश या समाज सुखी होता।

जब वातावरण और परिस्थितियां प्रतिकूल हैं तब ही प्रतिभा संपन्न से अपेक्षा होती है , वे चुनौती उठा उन्हें बदल दे।  ऐसे में ऐसे अनेकों सपूत हमारे हैं , जो समाज और देश के पीछे आने वाले युवाओं को सच्चा नेतृत्व और मार्गदर्शन दे सकते हैं।उस अभिशाप से भी पीढ़ियों को मुक्त कर सकते हैं , जिसमें दुष-प्रेरणा घटिया सिने जीवन से मिलती है।    ऐसी देश और समाजहित की सुन्दर मिसाल और परम्परा कायम कर सकते हैं जिससे सद्प्रेरणा ही एकमात्र ग्रहण करने वाली वस्तु हो सकती है। जो आज की बुराई से निपटने के लिये बहुत ही प्रासंगिक जीवन है।

पूरा लेख पढ़कर उन्हें भी निराश होने की आवश्यकता नहीं जो किसी उच्च संस्थानों में शिक्षा पाने से किन्हीं भी कारणों से विफल रहे हैं , पिछले लेख में साधारण से लगने वाले व्यक्ति की जूझने की प्रवृत्ति से देश के शिखर तक की  यात्रा का वृतांत और  सभी के " आशा की किरण " के रूप में स्थापित होने का उल्लेख किया गया है।  प्रेरणा ग्रहण करने और हरेक को कुछ कर गुजरने की हिम्मत कर लेने के लिए वह उल्लेख ही पर्याप्त है।

राजेश जैन
 02-06-2014



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