Wednesday, June 11, 2014

माँ की आज्ञापालन का यह कैसा दंड

माँ की आज्ञापालन का यह कैसा दंड
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उस काल में विलायत से शिक्षा प्राप्त करने जाना , इसका मतलब पाँच सात वर्षों तक अपनी जन्मभूमि से कट जाना होता था।  समाचारों का परिवार आदान -प्रदान पत्रों (डाक) के माध्यम से होता था। विलायत में पढ़ाना अत्यंत खर्चीला था अतः भारत से बिरले ही शिक्षा को जाया करते थे। हालाँकि "फॉरेन रिटर्न्ड" की एक बहुत ही सम्मानीय पहचान आजीवन एक बड़ी उपलब्धि होती थी।

ऐसे में उसे विलायत भेजा जा रहा था। माँ का दुःख अवर्णीय था। उन्हें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की थी , बेटे का खानपान बिगड़ जायेगा। उन्होंने जाते हुये बेटे को शिक्षारत रहते शराब ना पीने की आज्ञा दी। बेटा भी माँ भक्त था। माँ की इस आज्ञा का विलायत में भी और आजीवन पालन किया।

नाम लिखने की आवश्यकता नहीं , वह इस माटी का ऐसा सपूत था। जो विश्व में सर्वाधिक जाना जाने वाला भारतीय रहा है और शायद रहेगा भी। उनके किसी कर्म या योगदान पर लेख में कोई टिप्पणी ना करते हुये लिखूँगा। ( विवाद अनेकों खड़े किये जाते हैं , यह लेखक इस लेखनी को विवादों से परे रखना चाहता है ).

कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हें सम्मान दिया। वे भारतीय करेंसी पर छपते हैं। उस करेंसी का प्रयोग शराब के विदेशी ब्रांड के देश में प्रमोशन के लिये , उसके व्यवसाय पर और उसके ख़रीदे जाने पर बहुत अधिक होता है। क्रिकेट टीम अपनी जीत पर शैम्पेन खोल सेलिब्रेशन करती है।

देर रात्रि चलने वाली पार्टी में उसी करेंसी से मदिरा का दौर चलता है। बच्चों के लिये कुछ अच्छा घर तक ले जाये या नहीं , मुखिया कमाई (करेंसी ) का बड़ा हिस्सा उस पर खर्च कर लड़खड़ाता घर पहुँचता है।

बात , लड़खड़ाते घर पहुँचने या पार्टी में मौज मस्ती पर ही रुक जाती शायद कम चिंताजनक थी। पी गई शराब से नीयत और दृष्टि ख़राब कर भारतीय नारी की लाज भी तार तार करने के अनेकों केस हो रहे हैं। उसके प्रभाव में दिमाग पर नियंत्रण खोकर अनेकों दुर्घटनायें सड़कों पर होती हैं।

यही नहीं आज कॉलेज में पढ़ती और शिक्षित हो निकलती (कुछ ) नारी भी भारतीयता छोड़ शराब और सिगरेट में अपनी आधुनिक पहचान मानती है।

माँ की आज्ञा मान उनने अपने कर्म और आचरण से जो उत्कृष्ट योगदान राष्ट्र को दिया , उसके एवज में उन्हें मरणोपरांत करेंसी पर विराजित कर दिया गया। जो शराब के सिलसिले को भारत में बढ़ाने के लिए बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग की जा रही है।

वह माँ कैसा अनुभव करती , अगर अपने निष्ठावान बेटे को उस मुद्रा पर छपा देखती , जिसका प्रयोग भारतीय संस्कृति के तिरस्कार में ज्यादा होने लगा है।

माता निष्ठ उस बेटे , और उस माँ के सम्मान लिए क्या देश में आगामी "मदर्स डे " से नई छपने वाली करेंसी से उनका फोटो अलग करना चाहिए ? इस पर हम विचार करें .......

राजेश जैन
11-06-2014

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