Sunday, June 8, 2014

नारी सही अर्थों में आधुनिक बने


नारी सही अर्थों में आधुनिक बने
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धन के लिये निर्भरता , पुरुषों पर थी। अकेली बाजार नहीं जा सकती थी। नारी के ऐसे दिन अब नहीं रहे हैं। पढ़-लिख कर नारी इस योग्य हुई है। धन अर्जित स्वयं करने लगी है। और धन पास हुआ तो बाजार जाने का आत्म-विश्वास भी जागृत हो गया है। ऐसा अच्छा हमें प्रसन्न करता है लेकिन ना मालूम अच्छे के साथ बुरा भी क्यों कुछ रहता है।

हमारी फिल्में, उसमें नायक /नायिका (रहे) की व्यक्तिगत जीवन में की खल( नायक /नायिकायें) वाली हरकतें , और उनका मीडिया और पत्रिकाओं द्वारा धन कमाने की लालच में (दुष्) प्रचार , नारी की उन्नति के लिए भी अभिशाप साबित हो रही हैं।

देखा देखी के चलन में पढ़ी-लिखी आज की नारी भी देर रात्रि पार्टियों में जाने लगी है। जो फिल्मों ने और वहाँ की तथाकथित सेलेब्स ने भारतीय समाज को दीं हैं। वहाँ (देर रात्रि पार्टियों ) मौजमस्ती साथ ड्रिंक्स के दौर चलते हैं। आधुनिक कहलाने के लिए रात्रि कालीन पार्टियों में ड्रिंक्स भी वह लेने लगी है। कुछ पुरुष उस ड्रिंक्स में मादक पदार्थ मिलाकर उसे सर्व कर रहे हैं। जिसके प्रभाव में नारी उसके साथ होने वाली वासना पूर्ती की हरकतों का विरोध नहीं कर पाती है। पुरुष के छल से ठगे जाने की कुछ घटनायें तो न्यूज़ बनती हैं , कुछ में दोषी पुरुष दंड पाता है (अभी ताजा ऐसी खबर जयपुर की है ) . अनेकों नारी शोषण की ऐसी घटनायें प्रकाश में नहीं आ पाती हैं क्योंकि बदनामी का डर और ब्लैकमेलिंग का शिकार हो कोमलकाया छली गई नारी हिम्मत नहीं करती और स्वयं अपराधबोध से ग्रसित होती है। हालाँकि दोष ज्यादा पुरुष का है ,कानून से सजा भी पुरुष को मिलती है किन्तु आजीवन अभिशाप नारी के हिस्से आता है।

पढ़ी लिखी नारी जाने क्यों स्वयं को आधुनिक दिखाने की कोशिश करती है , और पुरुष के पैतरों में आकर पुरातन काल से जैसी छली जाती रही वैसी छली जाती है , आधुनिक नहीं पुरानी नारी का परिचय भी नहीं ( जो कम से कम अपना सम्मान तो रख पाती थी ) दे पाती है। आधुनिक नारी कहेंगे , जो पढ़ लिखकर अपने भले को भली-भाँति समझती है। ऐसी राह चलती है जो अच्छी उपलब्धियों की ओर ले जाती है। अनुशरण करती नारी को ही नहीं ,समाज में भी सुखद वातावरण और परिस्थितियाँ निर्मित करती है।

महानगरों और अन्य बड़े नगरों का जो फैशन गया है इन देर रात्रि की पार्टियों में , आधुनिक दिखने नाम पर नारी स्मोकिंग को भी दुष्प्रेरित हो रही है। ताजा सर्वे कहता है नारी में धूम्रपान की प्रवृत्ति 1980 की तुलना में आज बढी है जबकि इसी अवधि में यह पुरुष में कम हुई है। बदली हुई जीवन शैली तथा मिलावटी खाद्य सामग्री (एडिबल्स) का बुरा प्रभाव पुरुष की तुलना में शारीरिक बनावट के कारण नारी पर अधिक हैं कैंसर के खतरे नारी के अंगों पर अधिक हैं ही धूम्रपान जो कैंसर सबसे बड़ा कारण है नारी में आशंकाओं का इजाफा करता है । साथ ही बच्चा नारी के शरीर के अंदर पनपता है, वह जन्मजात खतरों के साथ दुनिया में आता है जिससे समाज पर कैंसर की भयावहता आशंकित है।

नारी को आधुनिकता क्या है यह समझना होगा। वास्तव में जो उपलब्धियों की ओर ले जाये , जो सुखद परिस्तिथियाँ और वातावरण निर्मित कर सके वैसा गुण आधुनिकता है। जिससे नारी भी सुखी होती है समाज भी सुखी बनता है। आधुनिक कहलाने के नाम पर अगर नारी कुटिल चालों की शिकार होकर अपना तथा परिजनों का जीवन कष्टमय करती है तो यह ठेठ पुरातन पंथी (आधुनिकता नहीं ) है , जिसमें नारी ठगी जाती रही है।
पढ़ने लिखने के अवसर नारी ने लिये हैं , ज्यादा स्वाधीन आज वह है तो इस अवसर का लाभ उठाये , उसे व्यर्थ ना गवायें। "नारी सही अर्थों में आधुनिक बने" , स्वयं का जीवन खुशहाल करे।  नारी के साथ ही परिवार में जीवन यापन करने वाले पुरुष लेखक की यही हार्दिक कामना है।


राजेश जैन
09-06-2014



 

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