Tuesday, July 1, 2014

नारी अपने स्वाभिमान के साथ अपने अपेक्षाओं के पर फैलाना चाहती है

नारी अपने स्वाभिमान के साथ अपने अपेक्षाओं के पर फैलाना चाहती है
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"नारी क्या चाहती है ? " नामक पिछले लेख पर पर जो प्रतिक्रियायें आईं , उससे लगा, कि प्रश्न ही नारी को एकवचन (singular) मानता हुआ होने से गलत है।  नारी अनेक हैं , अतः चाहत भी एक ही तरह की नहीं हो सकती है।

नारी स्वभावतः संकोची होती है , यह भारतीय नारी का गुण है , अतः उनका कमेंट ना करना भारतीयता का ही द्योतक है।  लेख , नई पीढ़ियों की किशोरियों और युवतियों को आकर्षित नहीं कर सका , उनके मन में क्या है , वह छिपा ही रह गया। एक ही मैसेज आज की पीढ़ी की अपेक्षाओं को  कहता है "Women also want to be respected even when she dresses in a western way." अर्थात रूचि अथवा सुविधा से अगर नारी पश्चिमी परिधान में हो तब भी नारी को  सम्मान से देखा जाए ".

सारे प्राप्त संदेशों का सार सिर्फ यही है -

नारी आत्मसम्मान से जीना चाहती है।  भारतीय परिवार और समाज में इस तरह की हैसियत चाहती है कि महत्वपूर्ण विषयों पर उनकी राय को भी महत्त्व दिया जाये।  नारी पुरुष से अलग रहना/होना नहीं चाहती है और पुरुष से रिश्तों (पिता ,भाई , पुत्र , और जीवनसाथी )  को सहेजे रखने की चाहत नारी में कूट कूट कर भरी है।

बहुत ही सुन्दर शब्दों में नारी चाहत पर कमेंट मिला है उसे ज्यों का त्यों लिख रहा हूँ

" नारी अपने स्वाभिमान के साथ अपने अपेक्षाओं के पर फैलाना चाहती है ".

सभी नारी अपेक्षाओं की पूर्ती तब ही संभव है , पुरुष जहाँ भी जिस भी रूप में नारी सहायता के लिये उससे मिलता है , वह करे तो नारी की सहायता ही करे,  या सहायता ना बन सके तो ना करे , लेकिन "उससे छल ना करे"। छलों से छलनी हुआ नारी ह्रदय अब और छला जाना सहन नहीं कर सकती है। इस तरह का धोखा उनकी सहनशक्ति की सीमा पार कर चुका है।

इतना ही अगर पुरुष कर सका तो नारी को  पुत्र संतान को जन्मने का पछतावा ना होगा।

--राजेश जैन
02-07-2014

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