दामाद के गुणों की चर्चा
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"सामाजिक अपेक्षाओं को चलो छोड़ते हैं
राष्ट्रीय अपेक्षाओं से मुक्त चलो होते हैं
परिवार तो अपना समझते हैं ना हम ?
चलो आज परिवार दायित्वों की कहते हैं"
पुत्री का विवाह तय करते समय माँ-पिता की मुख्य चिताओं में से , सामने परिवार का प्रतिष्ठित और बनने जा रहे दामाद का चरित्रवान (या सुशील ) और मृदुभाषी होना प्रमुख रहता है।
इन चीजों के होने से अपनी प्रिय बेटी को नये परिवार में भेजते हुए , उनके (पुत्री और दामाद ) के सुखद जीवन की सुनिश्चितता लगती है। इससे सहमत होने के उपरान्त हम विचार करें कि पुत्री के माँ-पिता की यह खोज और पुत्री सरल कैसे होगी?
निश्चित ही जब नवयुवकों में /परवारों में इन गुणों का होना व्यापक होगा। पश्चिमी चलन का अनुशरण करने की अंधी-प्रवृत्ति में भारतीय समाज में भी चरित्रवान रहना दिनोदिन जीवन आदर्शों में से लुप्त सा होता जा रहा है। इस मानव नस्ल का संरक्षण हमारे स्वयं के ऊपर है। हम चरित्रवान रहेंगे तो यह नस्ल लुप्त ना हो सकेगी। और तब हम अपनी पुत्री का विवाह करने जायेंगे तो मनोरुप वर ढूंढ पाएंगे।
आवश्यकता है पच्चीस -तीस वर्ष के बाद हम जिस बात को शीर्ष महत्व देंगे , उसे पच्चीस -तीस वर्ष पहले (आज ) समझ सकें। अगर उस वक्त की हमारी अपेक्षाओं को दूरदर्शिता से आज समझ लेंगे तो हम स्वयं चरित्रवान होंगे। जब ऐसा होगा तब हम पत्नी -बच्चे और परिवार के प्रति अपने दायित्वों का कुशल निर्वहन कर सकेंगे। इस तरह हमारा परिवार सुखी और सफल हो सकेगा। ऐसे परिवारों से बनता हमारा समाज सुखी होगा। शिकायतों , समस्याओं ,बुराइयों और दुष्कर्मों पर व्याप्त विलाप तभी विराम पा सकेगा।
हम नारी के प्रति विनम्र हो सकेंगे। उसे पत्नी रूप में भी उचित सम्मान और सुरक्षा दे सकेंगे। चरित्रवान हम होंगे तो घर के बाहर नारियों से छिछोरी हरकतों से भी बाज आयेंगे। इस तरह नारी का हमारे परिवार को मजबूत करने के योगदान की दृष्टि से घर के बाहर का विचरण ( मूवमेंट्स) खतरों और अपमान रहित होगा।
सुखी समाज , हमारी संस्कृति रही है। जिस के कारण ही बाहर लोग भारत के प्रति आकर्षित हुए थे , फिर कुटिलताओं से उन्होंने इसे क्षति पहुँचाई। इस संस्कृति क्षति के लिये उन्होंने सिनेमा और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को अपना दूत नियुक्त किया। और हमारे ही समाज में से कुछ लोगों को सम्मोहित कर उनका प्रयोग देश और समाज की बरबादी के लिए किया .
हम सजग हो इसे समझें और अपना बचाव करें। अन्यथा जीवन संध्या पर अपनी लापरवाहियों पर पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं रहेगा। ऐसी आत्मग्लानि अनुभव होगी जिससे मुक्ति जीवन में संभव नहीं होगी।
" भविष्य की बातों का पूर्वानुमान बुध्दिमानी है , जो हमें ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ भी बनाती है। "
राजेश जैन
06-06-2014
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"सामाजिक अपेक्षाओं को चलो छोड़ते हैं
राष्ट्रीय अपेक्षाओं से मुक्त चलो होते हैं
परिवार तो अपना समझते हैं ना हम ?
चलो आज परिवार दायित्वों की कहते हैं"
पुत्री का विवाह तय करते समय माँ-पिता की मुख्य चिताओं में से , सामने परिवार का प्रतिष्ठित और बनने जा रहे दामाद का चरित्रवान (या सुशील ) और मृदुभाषी होना प्रमुख रहता है।
इन चीजों के होने से अपनी प्रिय बेटी को नये परिवार में भेजते हुए , उनके (पुत्री और दामाद ) के सुखद जीवन की सुनिश्चितता लगती है। इससे सहमत होने के उपरान्त हम विचार करें कि पुत्री के माँ-पिता की यह खोज और पुत्री सरल कैसे होगी?
निश्चित ही जब नवयुवकों में /परवारों में इन गुणों का होना व्यापक होगा। पश्चिमी चलन का अनुशरण करने की अंधी-प्रवृत्ति में भारतीय समाज में भी चरित्रवान रहना दिनोदिन जीवन आदर्शों में से लुप्त सा होता जा रहा है। इस मानव नस्ल का संरक्षण हमारे स्वयं के ऊपर है। हम चरित्रवान रहेंगे तो यह नस्ल लुप्त ना हो सकेगी। और तब हम अपनी पुत्री का विवाह करने जायेंगे तो मनोरुप वर ढूंढ पाएंगे।
आवश्यकता है पच्चीस -तीस वर्ष के बाद हम जिस बात को शीर्ष महत्व देंगे , उसे पच्चीस -तीस वर्ष पहले (आज ) समझ सकें। अगर उस वक्त की हमारी अपेक्षाओं को दूरदर्शिता से आज समझ लेंगे तो हम स्वयं चरित्रवान होंगे। जब ऐसा होगा तब हम पत्नी -बच्चे और परिवार के प्रति अपने दायित्वों का कुशल निर्वहन कर सकेंगे। इस तरह हमारा परिवार सुखी और सफल हो सकेगा। ऐसे परिवारों से बनता हमारा समाज सुखी होगा। शिकायतों , समस्याओं ,बुराइयों और दुष्कर्मों पर व्याप्त विलाप तभी विराम पा सकेगा।
हम नारी के प्रति विनम्र हो सकेंगे। उसे पत्नी रूप में भी उचित सम्मान और सुरक्षा दे सकेंगे। चरित्रवान हम होंगे तो घर के बाहर नारियों से छिछोरी हरकतों से भी बाज आयेंगे। इस तरह नारी का हमारे परिवार को मजबूत करने के योगदान की दृष्टि से घर के बाहर का विचरण ( मूवमेंट्स) खतरों और अपमान रहित होगा।
सुखी समाज , हमारी संस्कृति रही है। जिस के कारण ही बाहर लोग भारत के प्रति आकर्षित हुए थे , फिर कुटिलताओं से उन्होंने इसे क्षति पहुँचाई। इस संस्कृति क्षति के लिये उन्होंने सिनेमा और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को अपना दूत नियुक्त किया। और हमारे ही समाज में से कुछ लोगों को सम्मोहित कर उनका प्रयोग देश और समाज की बरबादी के लिए किया .
हम सजग हो इसे समझें और अपना बचाव करें। अन्यथा जीवन संध्या पर अपनी लापरवाहियों पर पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं रहेगा। ऐसी आत्मग्लानि अनुभव होगी जिससे मुक्ति जीवन में संभव नहीं होगी।
" भविष्य की बातों का पूर्वानुमान बुध्दिमानी है , जो हमें ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ भी बनाती है। "
राजेश जैन
06-06-2014
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