भारतीय चरित्र
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चैतन्य , अपने बड़े होते बेटे को , महापुरुषों के सद्कर्मों की और उनके जीवन में घटे सद्प्रेरणा (देने) वाले प्रसंग बताया करता था , जिससे बेटा 'उचित ' , की मानसिक जीवन बुनियाद आदर्श बन सके।
आज चैतन्य , अपने बेटे उचित के साथ बैठा था तब उसने पूछा , बेटे उचित, क्या तुम जानते हो एक महापुरुष इस देश में राष्ट्रपिता कहे जाते हैं ?
उचित … जी हाँ पापा जानता हूँ।
अब चैतन्य उस महापुरुष के बारे में एक सच्चाई उचित को बताने लगता है।
बेटे , उस महापुरुष ने अपनी माँ से किये वादे के कारण आजीवन देश और विदेश में रहते कभी शराब का सेवन नहीं किया था , जबकि उन्हें ऐसे कई कार्यक्रम (अवसरों पर) में रहना होता था जहाँ शराब का सेवन अनेकों लोग करते थे। जानते हो उनके परिवार की ही विडंबना के बारे में ?
उचित --- क्या पापा ?
चैतन्य -- बेटे , वह महापुरुष सभी को तो शराब छोड़ने की प्रेरणा देता लेकिन उनका स्वयं का बेटा अत्यधिक शराब सेवन करता था। बेटे, देश लिए संघर्ष करते उन्होंने प्राण तक गवायें , किन्तु अपने बेटे को ही व्यस्तता के कारण वे खानपान की अच्छी प्रेरणा दे सकने में असमर्थ रह गये थे।
उचित -- तब तो पापा , यह अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण था , जिसे राष्ट्र ने पिता माना वे , घर में अपनी संतान से ही पिता का आदर नहीं पा सके ।
चैतन्य -- हाँ बेटे , तुम मेरा पिता होने का एक सम्मान ,मुझे दे सकोगे ?
उचित -- पापा , अवश्य बताईये कैसे मै , यह सम्मान आपको दे सकूँगा ?
चैतन्य -- बेटे तुम जीवन में उच्च सिद्धांतों का निर्वाह करना , आदर्शों की मिसाल पेश कर "भारतीय चरित्र " का एक आइकॉन बनना। जो आज भारत की पवित्र माटी से विलीन होने की कगार पर है।
उचित -- जी पापा , मै अवश्य यह करूँगा। यह कहते हुये उचित की आँखों में संकल्प के भाव दृष्टव्य थे।
लेखक ने उपरोक्त लघु कथा में तो पात्र चैतन्य से सच्चा "भारतीय चरित्र " बनने की प्रेरणा अपने बेटे(उचित) को ही दिलवाने का अपेक्षा उल्लेखित की है। लेकिन कथा के बाहर लेखक यह अपेक्षा सम्पूर्ण आज के समाज से करता है , कोई चाहे पुरुष हो अथवा नारी और युवा हो या वरिष्ठ वह भारतीय होने से जीवन में "भारतीय चरित्र " चरितार्थ करे।
राजेश जैन
13-06-2014
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चैतन्य , अपने बड़े होते बेटे को , महापुरुषों के सद्कर्मों की और उनके जीवन में घटे सद्प्रेरणा (देने) वाले प्रसंग बताया करता था , जिससे बेटा 'उचित ' , की मानसिक जीवन बुनियाद आदर्श बन सके।
आज चैतन्य , अपने बेटे उचित के साथ बैठा था तब उसने पूछा , बेटे उचित, क्या तुम जानते हो एक महापुरुष इस देश में राष्ट्रपिता कहे जाते हैं ?
उचित … जी हाँ पापा जानता हूँ।
अब चैतन्य उस महापुरुष के बारे में एक सच्चाई उचित को बताने लगता है।
बेटे , उस महापुरुष ने अपनी माँ से किये वादे के कारण आजीवन देश और विदेश में रहते कभी शराब का सेवन नहीं किया था , जबकि उन्हें ऐसे कई कार्यक्रम (अवसरों पर) में रहना होता था जहाँ शराब का सेवन अनेकों लोग करते थे। जानते हो उनके परिवार की ही विडंबना के बारे में ?
उचित --- क्या पापा ?
चैतन्य -- बेटे , वह महापुरुष सभी को तो शराब छोड़ने की प्रेरणा देता लेकिन उनका स्वयं का बेटा अत्यधिक शराब सेवन करता था। बेटे, देश लिए संघर्ष करते उन्होंने प्राण तक गवायें , किन्तु अपने बेटे को ही व्यस्तता के कारण वे खानपान की अच्छी प्रेरणा दे सकने में असमर्थ रह गये थे।
उचित -- तब तो पापा , यह अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण था , जिसे राष्ट्र ने पिता माना वे , घर में अपनी संतान से ही पिता का आदर नहीं पा सके ।
चैतन्य -- हाँ बेटे , तुम मेरा पिता होने का एक सम्मान ,मुझे दे सकोगे ?
उचित -- पापा , अवश्य बताईये कैसे मै , यह सम्मान आपको दे सकूँगा ?
चैतन्य -- बेटे तुम जीवन में उच्च सिद्धांतों का निर्वाह करना , आदर्शों की मिसाल पेश कर "भारतीय चरित्र " का एक आइकॉन बनना। जो आज भारत की पवित्र माटी से विलीन होने की कगार पर है।
उचित -- जी पापा , मै अवश्य यह करूँगा। यह कहते हुये उचित की आँखों में संकल्प के भाव दृष्टव्य थे।
लेखक ने उपरोक्त लघु कथा में तो पात्र चैतन्य से सच्चा "भारतीय चरित्र " बनने की प्रेरणा अपने बेटे(उचित) को ही दिलवाने का अपेक्षा उल्लेखित की है। लेकिन कथा के बाहर लेखक यह अपेक्षा सम्पूर्ण आज के समाज से करता है , कोई चाहे पुरुष हो अथवा नारी और युवा हो या वरिष्ठ वह भारतीय होने से जीवन में "भारतीय चरित्र " चरितार्थ करे।
राजेश जैन
13-06-2014
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