Tuesday, June 24, 2014

मनोरंजन और जीवन महत्व

मनोरंजन और जीवन महत्व
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जब हम कोई बुराई /समस्या समाप्त करना चाहते हैं तो यह जानना होता है कि वह कहाँ से फैलती/निर्मित होती है ,वास्तव में उसे समाप्त करने नहीं लिए हमें  उसके जड़/उद्गम पर प्रहार करना होता है। भारतीय सामाजिक परिवेश में बहुत सी पश्चिमी बातों को बुराई जैसा देखा जाता रहा है। और यह माना जाता रहा है कि इनके संस्कृति पर हमले से हमारी भव्य संस्कृति , हमारे ही देश से लुप्त होती जा रही है। जब हमें ये बातें बुराई या समस्या रूप दिखती हैं तो हमें इसके जड़ पर प्रहार करना चाहिए। किन्तु बहुधा बुराई में हम जड़ को तो सींचते है , और ख़राब प्रतिफल को ठिकाने लगाने की कोशिश करते हैं ।

सभी जानते हैं वृक्ष रहेगा तो फल देगा। अगर फल विषाक्त है तो , वृक्ष और जड़ को मिटा देना ही स्थायी निदान हो सकता है। पश्चिमी (या पाश्चात्य ) बातें वहाँ के समाज को प्रिय हैं तो उसे वे निभाते रहें। लेखक को कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु उन्हीं बातों को यदि हमारे समाज में निंदनीय माना जाता है तो हमें उन्हें इस देश में बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अपने अभिप्राय को स्पष्ट करते हुये उल्लेख करूँगा कि इस देश में दैहिक स्वच्छंद आचरण को चरित्रहीनता कहा जाता रहा है ,धिक्कारा जाता रहा है। जब तक चरित्र के भारतीय मानक (मर्यादा ) को हम निभाते रहे ,तब तक हमारे समाज में वैवाहिक जीवन स्थायी और कम आंतरिक कलह के होते थे। लेकिन पाश्चात्य प्रभाव में पिछली कुछ पीढ़ियों से हमारे युवाओं के आचार-विचार ज्यादा स्वच्छंद होते गये फलस्वरूप देश में परिवार टूटने की प्रवृत्ति बढ़ गई है । युवाओं की ऐसी स्वच्छंदता से पूर्व पीढ़ियाँ अचंभित हुई है । वे नए आचार -व्यवहार से सामंजस्य (असहमति के कारण ) नहीं बिठा पा रहे हैं । इसलिए युवाओं द्वारा उपेक्षित से कर दिए जा रहे हैं।  बड़े-बुजुर्गों के आदर और सम्मान की  अच्छी परम्परा हमारे समाज में थी। वह ख़त्म होती जा रही है।

इन बातों का प्रभाव उपेक्षित और अनादर अनुभव करते बड़े-बुजुर्ग की मौत  साथ उस परिवार में मिट जाती है। जीवन की  आज की आपाधापी में अपने किये को बुरा समझ जाने का समय वर्तमान  युवा को  नहीं मिल पाता है। शीघ्र ही वह बड़ा-बुजुर्ग होकर फिर उस उपेक्षा का अनुभव स्वयं करता है , जो कोई 20 वर्षों पहले उसने अपने बड़ों के प्रति की होती है।  आज के दर्पण में कल की छाया ना देख पाने का दुष्परिणाम देखते अब जीवन समाप्ति पर अप्रियता सहन करने की बारी उसकी होती है। भव्य संस्कृति से विमुख हो जाने से यह अप्रियता ,आधुनिक जीवन शैली की नियति हो गई है.

आसपास के अस्वच्छता के कारण जब हमारा या परिजनों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है तो झाड़ -पुछाई की जाती है , नालियां साफ़ करवाई जाती है ,नालियों का कूड़ा दूर फिंकवाया जाता है।  खुली नालीयों को ढकवाया जाता है। और स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाता है। क्योंकि स्वस्थ रहकर ही मनुष्य जीवन के आनंद हम उठा  सकते हैं। जीवन सार्थक कर सकते  हैं।

एक खुला नाला , जहाँ से पूरे देश और  समाज में बुराइयों का फैलाव हुआ है वह है देश की फिल्म इंडस्ट्री।  इसमें खराबियों का अम्बार लगा हुआ है।  नाला खुला है (ढका  नहीं है ) , इसलिए दुर्गन्ध /सड़ांध सब और फ़ैल रही है। सामाजिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित करती इस जड़ /बुराई के उद्गम को हम पहचान ही नहीं सके हैं।****

उलटे उस बुराई के वाहक ख़राब लोगों को अपनी प्रोफाइल पिक बनाते हैं , ड्राइंग रूप में वॉलपेपर  सजाते हैं। उन्हें आदर्श मानकर उसकी नक़ल कर ,बुराई के कीटाणु स्वयं में  विकसित करते हैं।  जिन्होनें आजीविका का साधन इस इंडस्ट्री से चुना उससे कम शिकायत हमें है। लेकिन उनके छलावे में जो पूरा समाज आया उससे शिकायत ज्यादा है।  उनको दोष देना अपनी कमी पर पर्दा डालना होगा। हम विवेक से काम लेते तो किसी छलिये से ठगे नहीं जाते।

आखिर देश और समाज को क्या ऐसा दिया इन लोगों ने जिस कारण सारे देश में इनके फैंस (प्रसंशकों) की सँख्या करोड़ों में हो गई। इन्होने हमसे ही धन कमाया , हमसे ही सम्मान पाया। और बदले में हमारी संस्कृति को मिटा देने वाला विष इन्होंने समाज को दे दिया।
  1.  दैहिक व्यभिचार जिसमें एक एक के अनेकों से संबंध रहे इस चलन को बढ़ावा ( चलन नहीं बनाया ) दिया। ऐसे अवैध संबंधों को चटकारे और कहीं प्रशंसा के साथ परोसा हमारे प्रसारण तंत्र ने।
  2.   बिना विवाह के लिव इन रिलेशनशिप की नई परम्परा देश में इन्होंने डाली।
  3.   अटाटूट काले धन का संग्रहण /चलन और उस पर टैक्स चोरी के प्रकरण यहाँ आम हुए।
  4.   चमत्कृत देश की नारियां इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनने देश के सभी हिस्से से पहुँचती रही। उनका शोषण इस सुनियोजित तरीके से यहाँ होता रहा कि शोषित नारी मुहँ भी ना खोल सकी , और घर वापस जाने का साहस भी नहीं कर सकी। मालूम नहीं अपने आकर्षक जिस्म को जब तक आकर्षण रहा किस किस तरह प्रदर्शित करने की पीड़ा और अपमान सहने वह विवश हुई।

ऐसी कितनी  ख़राब परम्परा /शर्मनाक कारनामे इस इंडस्ट्री के हिस्से में आये लेकिन हमारी उस विवेकहीनता को धिक्कार है जिस में हम इन्हें नायक मानते हैं।  अपना बेशकीमती समय /धन इन पर खर्च करते हैं। इनका अनुशरण करते हैं। इन जैसा बनने के यत्न में अपनी संस्कृति /समाज ,परिवार और स्वयं की जीवन संभावनाओं को क्षति पहुँचाते हैं।
हम अब तक नहीं चेते ,क्या अब भी नहीं चेतेंगे?  बुराई की जड़  पर प्रहार ना कर ,फैले विष बीज को बटोर कर बुरा-बुरा कब तक कहते रहेंगे?  लेख विचार करने हेतु प्रस्तुत है ।

किसी फ़िल्मी हस्ती ने कोई व्यक्तिगत क्षति लेखक को नहीं पहुंचाई है , उनके विरुध्द हिंसक होने का कोई आव्हान यह लेख नहीं करता . जिन्होंने ग्लैमर को अपनी आजीविका बनाया है वह उनका व्यक्तिगत फैसला है . हम अपने सामाजिक /पारिवारिक और जीवन दायित्वों को समझें , उन्हें नायक ना माने . उनका अनुशरण ना करे. फ़िल्मी इंडस्ट्री नामक नाली का मलवा/गंदगी ना फैलने दे . उसे ढक दुर्गन्ध /सड़ांध से अपनी संस्कृति /समाज की रक्षा करें.  इस भावना से यह प्रस्तुति है ।
लेख में उल्लेखित किसी भी बात का कोई साक्ष्य लेखक के पास नहीं है। इसलिये किसी व्यक्तिविशेष के नाम के उल्लेख बिना लेख किया गया है।  जो फिल्म में रहते हुए इस तरह के दोषों से मुक्त हैं वे लेख के प्रहार से भी  मुक्त हैं , जो सच्चाई से अपना अप्रिय योगदान  मानते हैं , वे आत्मावलोकन करें। यह मानें की भारतीय होने से संस्कृति /समाज रक्षा का दायित्व उनका भी है।

जो फिल्मों में नहीं है वे फिल्मों को मनोरंजन से ज्यादा ना मानें।  फ़िल्मी कहानियाँ और चित्रण तो बाध्यता में कहीं समाज भावना को सशक्त भी करता है। लेकिन इस इंडस्ट्री में सफल हुए लोगों का अभिमान ,अय्याशी और आडम्बर का आचरण गन्दी नाली की तरह होता है , उसे ढंके जाने की आवश्यकता है ,नाली की गंदगी को हम घर में नहीं सजाते हैं , प्रोफाइल पिक नहीं  बनाते हैं। या उसे लेकर सभी दिशा में नहीं फैलाते हैं.  

****(हालांकि फिल्म इंडस्ट्री से अभिनय कला के कुछ महान विभूतियाँ , महान गीतकार,कहानीकार  , कुछ गायकी की महान हस्तियां भी मिली हैं किन्तु इनके होते हुए भी कुलमिलाकर समाज में पाश्चात्य उन बुराइयों का फैलाव इसी इंडस्ट्री से मिला है,जो भारतीयता के विपरीत थीं ।  इन पाश्चात्य बुराइयों ने हमारी संस्कृति और स्वस्थ परम्पराओं को क्षति पहुँचाई है )

--राजेश जैन
25-06-2014

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