Monday, June 9, 2014

परिष्कृत

परिष्कृत
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हम में शायद सभी , इन अपने परिजनों को चरित्रवान ही देखना चाहते हैं  ……

भाई ,बहन , माँ ,पिता

और विवाह हो चुका हो तब  ……

पति/पत्नी (स्पाउस) , बेटा और बेटी

अगर सहमत हैं , तो हमें स्वयं को भी चरित्रवान होना चाहिये , क्योंकि हम दूसरे अपने परिजनों से इनमें से कोई ना कोई रिश्ता रखते हैं।

जब तक दूसरे के दृष्टिकोण से हम अपने को नहीं निहारेंगे , अपने दायित्वों को नहीं समझ सकेंगे ……

कुछ समय निकालें प्रतिदिन , थोड़ा आत्मावलोकन करें , तो हम स्वयं  को परिष्कृत (Sophisticated) कर सकेंगे।  और इस तरह अपने समाज और व्यवस्था को सुधारने की अपनी और सब की अपेक्षा (expectation) पर न्याय कर सकेंगे , (आशाओं पर खरा उतर सकेंगे ).

--राजेश जैन
10-06-2014

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