Tuesday, February 24, 2015

खोज आनंद की , मिलता अवसाद

खोज आनंद की , मिलता अवसाद
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नारी
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किसी उम्र की हो , किसी भी परिवेश में हो , पढ़ी -लिखी हो या न हो , उच्च कुलीन हो या न हो इनसे अंतर नहीं पड़ता , सभी श्रेणी में नारी एक सी चुनौतियों से घिरी है। जिन पुरुषों की रूचि अपने में होते नहीं देखना चाहती  वे पुरुष भी अनावश्यक रूप से उसमें रूचि लेते हैं। जिनसे कोई संबंध नहीं चाहती , वे भी उससे संबंध बढ़ाने को उत्सुक रहते हैं। जिनसे संबंध रखना चाहती है ,वे उसकी अपेक्षाओं को न समझ , उससे एक ही संबंध को उत्सुक होते हैं। और अगर छलावे में आ जाये तो समस्त दोषारोपण नारी पर ही (पुरुषों पर नहीं) करते हैं।
अपशब्द
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समाज में सारे के सारे अपशब्द , नारी को शामिल करते बनें हैं। पुरुष -पुरुष के बीच के प्रसंगों में उत्तेजित हो , किसी को किसी पर जब भी क्रोध आता है तो उसकी माँ -बहन और बेटी पर अप्रिय शाब्दिक प्रहार किया जाता है , क्यों ?
एक नारी
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पूरा , पराया समाज , एक नारी से शारीरिक संबंध को ही उतावला दिखता है। जबकि यदि यह ज्ञात हो जाये कि यह संबंध सिर्फ , वासना पूर्ती के लिए स्थापित किया जा रहा है तो , भारतीय समाज में आज भी 95% से ज्यादा युवतियाँ (नारी ) , ऐसे संबंध में नहीं पड़ना चाहती हैं।
नारी से छल
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जिन युवा नारी से , आगे साथ निभाने , विवाह करने के वायदे से संबंध स्थापित किये जाते हैं , उनमें 75% से अधिक में नारी को छल का सामना करना पड़ता है। संबंध बन जाने  बाद , पुरुष साथी , जिसने युवती को झाँसे में लिया होता है , वही उसको हल्के चरित्र की मान कर उससे किनारा करता है।
नारी , आज भी
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आज भी , जिन का विवाह हो चुका है , वे नारियाँ अपने पति के अतिरिक्त किसी से शारीरिक संबंध नहीं चाहती हैं। जिनके पति ,पर -स्त्रियों से संबंध नहीं रखते हैं , ऐसे पुरुषों की पत्नियाँ , ऐसे संबंध में नहीं पड़ती हैं। पति चरित्र ठीक न होने पर भी , कम ही हैं , जो प्रतिक्रिया में ऐसे संबंधों में लिप्त होती हैं।
भव्य संस्कृति
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इतनी भव्य संस्कृति , जब हमें मिली है , क्यों उसकी हम अवहेलना कर रहे हैं? हम भारतीय पुरुष ही , समाज और इतिहास के प्रति अपने उत्तरदायित्व भुलाकर उसे बदलने पर तुले हैं। नारी अच्छी है , उसे अच्छी रहने दें। पत्नी , बहन और बेटी में जो अच्छाई हम चाहते हैं , दूसरों की पत्नी , बहन और बेटी में उसे बने रहने दें। पुरुष का धर्म है , अशक्त नारी की रक्षा करना , क्यों उसे अपनी अनियंत्रित वासना का शिकार करना चाहते हैं ? और उन्हें अवसादपूर्ण जीवन को विवश करते हैं। 
नारी आज
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पढ़ना चाहती है। आत्म निर्भरता चाहती है , आत्मसम्मान चाहती है। पुरुष से विश्वास के संबंध चाहती है। अपने पति के अतिरिक्त , दूसरों से बहन सा , बेटी सा सम्मान चाहती है। उसे हम वह , दें और दिलवायें। मनुष्य वह भी है , उसे समतुल्य स्थान पर समाज में प्रतिष्ठित करें। उसे समानता दें। और संस्कृति से मिले उसके उच्च चरित्र को बनाये रखने में उसकी मदद करें। इस दृष्टि से नारी के समान स्वयं हम पुरुष बनें।
"आनंद की खोज को उत्सुक आज नारी को जीवन आनंद ही मिलना चाहिए , अवसाद नहीं " - यह परिवार में रह रहे पुरुष और हर वीर और न्यायप्रिय पुरुष का कर्तव्य है।
-- राजेश जैन
24-02-2015

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