Saturday, February 21, 2015

नारी व्यथायें कैसे कम होंगी ?

नारी व्यथायें कैसे कम होंगी ?
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आज माँ -पिता अपनी बेटी को दूर पढ़ाने भेज रहे हैं। बेटी पढ़ लेती है , तो मेट्रोज में मल्टीनेशनल कंपनीज़ में जॉब को भेजते हैं। ऑफिसेस , आलीशान और आधुनिक होते हैं।

स्मोकिंग -ड्रिंक्स
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वहाँ - अपने माँ -पिता की लाड़ली बेटियाँ में से लगभग 30% , दिन में , स्मोक जोन में धुएँ के छल्ले उड़ाते मिलेंगी। और वीक एंड्स में लगभग 50 % ड्रिंक्स के सुरूर में मिलेंगी।

स्मोकिंग के खतरे
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1. एक्टिव या पैसिव स्मोकिंग के खतरों में उच्च पढ़ी लिखी , बहनें -बेटियाँ भी सम्मिलित हो गई हैं।

ड्रिंक्स बिना भी होता है , किन्तु ड्रिंक्स से बढ़ता है
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2. ड्रिंक्स के सुरूर में , जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर कोई नारी किसी की बहन या बेटी है , यह ध्यान नहीं रहता है , और इस कारण नारी , ओछी हरकतों झेलने विवश होती हैं। अब स्वयं ड्रिंक्स लेगीं तो क्या होगा ?

बेचारी ?
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नारी - अपढ़ थी तब बेचारी रहीं थीं , क्या अब पढ़ने के बाद भी बेचारी ही रहेंगी ?
पढ़ना लिखना भी ,क्या नारी व्यथाओं को कम नहीं कर पायेगा ?

-- राजेश जैन
21-02-2015

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