Saturday, February 21, 2015

अधिवेशन

अधिवेशन
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किन्नर समाज ने अधिवेशन बुलाया हुआ था। किन्नर विद्वान के साथ ही , बुध्दिजीवी स्त्री /पुरुष के ओजस्वी विचार मंच से प्रकट किये गए थे।
एक किन्नर विद्वान ने अपने उद्बोधन में कहा - हम , बिन बुलाये - माँगलिक आयोजनों में और बच्चों के जन्म में पहुँचते हैं। हमें - दान प्राप्त करने के लिये कई ढोंग करने होते हैं। कुछ ख़ुशी से कुछ जबरदस्ती करने से हमें दान देते हैं। हम मजबूर होते हैं। हम...
 धन जोड़ना होता है। कहाँ कोई हमारा अपना होता है , कहाँ कोई हमसे प्यार रखता है और कहाँ कोई हमारा करने वाला होता है। हर मुसीबत के लिए पैसे से खरीद ही हमें सुविधा ,उपचार आदि खरीदना होता है। सम्बोधित करने के उपरान्त हाथ जोड़ वे , तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपना स्थान ग्रहण करते हैं ।
फिर बारी -एक विद्वान पुरुष की होती है .... सभी का अभिवादन कर वे कहते हैं , आप की दुआयें , फलती हैं। शादी पर आप बधाइयाँ गाते हैं , किन्तु क्या हुआ न जाने अब , आपकी शुभकामनाओं होने से भी , साथ मधुर नहीं होते हैं एवं कई विवाह टूट जाते हैं। बच्चे के जन्म पर दुआयें देने आप आते हैं ,जिस बेटे के जन्म पर दुआओं के बदले पिता , आपको मनमाँगा ईनाम देता है , वही बेटा बूढ़े होने पर उस दानी पिता को उपेक्षित छोड़ देता है। आप की दुआयें बेअसर जाती देख , समाज इसके पहले यह समझ जाये कि आप की दुआयें अब ईश्वर नहीं सुनते हैं , मित्रों आप सभी को मेरी सलाह है , आप अपने रिवाज आज से बदल दें , आप अब सिर्फ बेटी के जन्म पर बधाइयाँ गाया करें , आप उसके लिये दुआयें किया करें। वही है , जो अब माँ -पिता को निभाती है , भगवान ने आपकी सुनी या न सुनी , किन्तु माँ -पिता को आजीवन लगेगा , आप की दुआयें निष्फल नहीं गई है
वक्ता भावावेश में कहता जा रहा था , लेकिन कटु सच्चाई सुनते हुए , उपस्थित श्रोताओं के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी थीं ……
--राजेश जैन
20-02-2015

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