Friday, February 27, 2015

विनती

विनती
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मिताली को , पापा - मम्मी के बीच की , नौ -दस साल पूर्व की बातें स्मरण हो आई थी , जो उसने अधसोई स्थिति में सुन ली थी।
पापा - रागिनी , अपनी मीतू जब जायेगी , हम अधबूढ़े हो जायेंगे। मम्मी - हाँ जी , वो तो है। पापा - मै , जल्दी अधबूढा हो जाना चाहता हूँ। मम्मी - क्यों जी ? लोग जवान बने रहने को लालायित रहते हैं , आप उल्टा सोच रहे हो। पापा - हाँ , रागिनी , हमारी एकलौती बेटी के लिये जल्दी ही मै अपने कर्तव्य निभाना चाहता हूँ , जीवन में विपरीतताओं का आगमन... कब हो जाये ,कोई भरोसा है ?
स्मरण आते ही मिताली विदाई के रस्म में से वॉशरूम के बहाने , एकांत कमरे में आ , प्रार्थना में मग्न हो गई थी। मन में कह रही थी - हे ईश्वर , मैंने समझ आने के बाद से हर क्षण पापा -मम्मी को मेरे लिये , मेरी खुशियों के लिये चिंतित और समर्पित देखा है। उनके जीवन में मेरे विदाई के साथ निर्वात आ जायेगा। वे अब प्रौढ़ावस्था में हैं। कैसे सहन कर सकेंगे सूनापन ? हे ईश्वर कैसी निर्दयी सी रीत है ये ? उनकी -रक्षा करना। मुझे ससुराल में वह पदवी देना , मै ,उन्हें मिल सकूँ ,जब चाहे बुला सकूँ अपने पास। आपने क्यों बेटी को ऐसी निरीह बनाया ? उसे जन्म -घर छोड़ देने की मजबूरी दी। बेटी के प्रति पापा को ऐसी आसक्ति दी। क्यों बेटी को और बेटी के माँ-पिता को आपने समाज में ये कमजोर हैसियत दी है ?
हे ईश्वर , हाथ जोड़ विनती है - मै जा रही हूँ , मेरे मम्मी -पापा से दूर , अब आप पास रह कर ख्याल रखना ,उनका ……
--राजेश जैन
27-02-2015

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