Thursday, February 5, 2015

प्राकृतिक रूप से सुंदर

प्राकृतिक रूप से सुंदर
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आज की दृष्टि
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एक्जाम्पल के लिए लिखा जा रहा है-  आज मनुष्य , अपने सामने की ओर - 10 मी. ऊपर ज्ञान को , 9 मी.ऊपर धन को , 8 मी. ऊपर दैहिक भूख को , 7 मी. ऊपर उदरपूर्ती को , 6 मी. ऊपर परिवार हित को और इन सबके ऊपर (11 मी. पर ) अपने स्वार्थ को ,दृष्टि रख जीवन जी रहा है।  साफ है , ज्ञान उसके स्वार्थ के नीचे है। ज्ञान उसे इतना चाहिये जिससे धन अधिक से अधिक उपार्जित किया जा सके , जिसके माध्यम से पहले तन , फिर पेट की भूख मिटा ले। और फिर अपने परिवार ( पिता , माँ , पत्नी , भाई -बहन और बच्चों के ) हित सिध्द कर ले।  कुछ प्रबुध्द , 9 से 6 मी. के क्रम में असहमति व्यक्त कर सकते हैं।
दैहिक भूख
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पेट भरने की सामग्रियों की उपलब्धता अधिकाँश मनुष्य को सुलभ हो गई है। अब बहुत कम उम्र से पुरुष ( नारी को भी लिप्त कर रहा है ) तन की भूख को जीवन में प्रमुखता दे रहा है। और उदाहरण पढ़ने मिले हैं , कब्र में पैर लटका चुके वृध्द (कुछ) , वृद्धावस्था में भी अपने शयन कक्ष में एकाधिक कम उम्र की युवतियों को साथ चाहता है।कई जगह तो , वेश संत का धारण कर लिया , किन्तु (शोषण) सेवन नारी देह का करता है। संतवेश भी अपमानित कर रहा है।
धन
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धन से 8 मी. के नीचे वाले उसके जीवन अभिप्राय , सिध्द होते हैं इसलिये धन कमाने को काफी उच्च स्थान दे दिया है (9 मी.)  .
ज्ञान
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ज्ञान उसे इतना चाहिए जिससे 9 मी.के नीचे के सारे प्रयोजन पूरे कर लिए जा सकें इसलिये दृष्टि में 10 मी. की ऊँचाई पर ज्ञान का महत्व दिया हुआ है।
निज स्वार्थ
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निज स्वार्थ , सहज और मनुष्य स्वभाव (बल्कि प्राणी स्वभाव भी ) है , इसलिये दृष्टि में सर्वोपरि 11 मी.पर इसे रखा हुआ है। ज्ञान भी इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए इसके अंतर्गत 10 मी.पर कर लिया है। जबकि मनुष्य जीवन में ज्ञान सर्वोच्च ऊँचाई पर होना चाहिये।
प्राकृतिक रूप से सुंदर
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पुरुष और नारी में अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता विराजमान है। जन्म से वे कोमलता और निश्छल होने से सुंदर होते हैं। यौवन में , ज्ञान , शिष्टता और शारीरिक
गठन से सुंदरता निखारती है। और उम्र बढ़ने के साथ , मनुष्य जीवन में अनुभव और ज्ञान मिल कर उसे सुंदर बना देता है। ज्यादातर मनुष्य वृध्द होने पर दया - करुणा और त्याग धारण कर समाज रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आये हैं। कुछ इनसे भी ऊपर बढ़कर संत और समाजसेवी हो जाया करते हैं। इस परोपकारी भावना में चिंतनीय/विचारणीय कमी आई है। जो मानवता और नारी सम्मान को भी कम कर रही है।
कृत्रिम साधनों की अधिकता
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नारी -पुरुष (नारी -नारी और पुरुष -पुरुष भी ) परस्पर संबंध में भी प्राकृतिक सुंदरता विध्यमान है। ऊपर वर्णित अनुसार मनुष्य स्वयं भी प्राकृतिक रूप से सुंदर है। इसलिए कृत्रिम साधनों के अत्यधिक उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है। धन का व्यय ज्यादा करना , और इस कारण से धन उपार्जन में अधिक जीवन समय देना , जीवन व्यर्थ करना है। कृत्रिमता की अधिकता बिना हम अधिक सुंदर और सार्थक जीवन जी सकते हैं। अपना यथोचित मान सुनिश्चित करते हुए एक सुंदर समाज , सुंदर राष्ट्र और सुंदर विश्व वातावरण की रचना कर सकते हैं।
-- राजेश जैन
06-02-2015
(आज का लेख , लेखक के आदरणीय "फादर इन लॉ " का आज जन्मदिन होने पर शुभकामनाओं सहित उन्हें समर्पित है )

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