Monday, February 16, 2015

नारी रूपान्तरण

नारी रूपान्तरण
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नारी का जीवन भारतीय परिवेश में कुछ ऐसे चलता है।
गर्भ में
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दुर्भाग्य से , कुछ परिवार में , यह पता चल जाये , कि संतान बेटी होने वाली है तो भ्रूण-हत्या की आशंका हो जाती है।
जन्म पर
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अभी भी कम ही परिवार हैं , जो बेटी जन्म पर प्रसन्नता से शुभकामनायें ले -दे रहे होते हैं। पटाखों और बैंड की गूँज तो कम ही देखने मिलती है।
बचपन
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अगर जन्म ले लिया है तो बेटी बचपन में प्यारी तो लगने ही लगती है। पिता की ज्यादा दुलारी हो जाती है। भारत में तो छोटी सी पुत्री के पाँव पढ़े जाते हैं।
कपड़े भी बेटी को एक से एक पहनाये जाते हैं।
आठ -दस वर्ष की बेटी
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ज्यों ही थोड़ी बड़ी होती है। भारतीय समाज में , दूसरों घरों के पुरुष की दृष्टि लड़की के प्रति दृष्टि बुरी होने लगती है। इसे भाँप कर , बेटी पर बहुत सी रोक टोक होने लगती है। विडंबना यह होती है , अपनी पे तो इस दृष्टि से बचाव के उपाय होते हैं और परायी पर इस बुरी दृष्टि के प्रहार होने लगते हैं।
हाई स्कूल -कॉलेज में
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अपनी बहन से अपेक्षा , अन्य के चक्कर में न पड़ने की होती है। और दूसरे की बहनों के चक्कर लगाते नहीं थकते हैं। लड़कियों का पढ़ना -बढ़ना तक मुश्किल कर दिया जाता है।
गर्लफ्रेंड
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आजकल , गर्लफ्रेंड बनाने की तो होड़ लगती है , कई कई बन जायें ये आरजू होती है। इनमें से थोड़ी कम सुंदर , विवाह की बात करने लगे तो , बहाने से पीछा छुड़ाने के उपाय करने लगते हैं।
विवाह
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हसरत तो विवाह की बहुत होती है , विवाह में दहेज कम मिल जाये तो ,मलाल दिल में होता है।
पत्नी
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दुल्हन बन आती है तो परी सी लगती है , कुछ ही वर्षों में सबसे बड़ी उपहास की वस्तु होती है। सबसे ज्यादा जोक्स पत्नी पर बनते हैं। पत्नी को तो पतिव्रता देखना चाहते हैं , अन्य की पत्नी के पतिव्रत को खंडित करने को पीछे लगते हैं।
माँ
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माँ , बनी नारी तो ईश्वर से अधिक पूज्या लगती है। पत्नी घर आये , तो वही समस्या सी लगती है।
निष्कर्ष
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भ्रूण रूप में अप्रिय , जन्मे तो अप्रिय , बचपन में परी -दुलारी , पढाई - व्यवसाय में जाये तो समस्या। बहन चरित्रवान होना चाहिए , अन्य की बहन  चरित्रवान क्यों? चक्कर में नहीं आती।  गर्लफ्रेंड रूप में सर्वप्रिय , पत्नी रूप में समस्या / उपहास। 20 -25 वर्ष तक माँ -पूज्या , और बाद में माँ -समस्या। एक ही वह नारी अपने जीवन में , कितने प्रिय अप्रिय रूपों में रूपांतरित होती है। कितनी परस्पर विपरीत अपेक्षाओं की चुनौती उनके जीवन में प्रस्तुत की जाती है।
अलग -अलग तरह से उन्हें प्रभावित करने , लुभाने और बहकाने के प्रयास समाज में होते हैं। जरा चूक अगर हो गई तो अपशब्द ढेरों। चूक गई तो शोषण अनेकों। हवस की शिकार हुई तब भी दोष अनेक उसी पर। पिता -माँ का घर छोड़ने की विवशता , बावजूद इसके दहेज प्रताड़ना को मजबूर , ससुराल में अकेली।
बदल दो भाई
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नहीं करो यह अत्याचार
मनुज सुधारो तुम व्यवहार
अशक्त अकेली है नारी
रखें उन्हें हम कर मनुहार
-- राजेश जैन
17-02-2015
 

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