Thursday, February 19, 2015

नारी -कब सुरक्षित , कहाँ निःशंकित?

नारी -कब सुरक्षित , कहाँ निःशंकित?
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दो वर्ष की बच्ची
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हल्द्वानी में पिता के घर में थी .  पिता और मित्र शराब ने पी। पिता धुत्त हुआ , और मित्र हैवान हुआ  .  दो वर्षीय अबोध पर रेप किया और फिर फरार है.
मानसिक अविकसित युवती
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रोहतक में 26 वर्ष की युवती है , किन्तु मानसिक विकास 3 वर्ष के बच्चे सा है , अकेला पाकर 9 दुष्टों ने उस पर सामूहिक रेप  किया ।
कहाँ निःशंकित रहे नारी ?
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घर ,स्कूल , ऑफिस, आश्रम , हॉस्पिटल और लगभग हर स्थान में , रात हो या दिन उस पर रेप हो रहे हैं। कैसा यह समाज है ? क्यों इस तरह का सामान चहुँ ओर फैलाया है ? जिसके दुष्प्रभाव में पुरुष दिमाग में और दृष्टि में सिर्फ वासना ही हिलोरें ले रही हैं . ज्यों ही नारी देखी और नीयत बिगड़ी। कहाँ निःशंकित रहें ? कैसे उन्नति करें ? कहाँ अपने मनुष्य जीवन को सम्मान से जिये , नारी ? 
पहनावा कहाँ या स्थान गलत था ?
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दो वर्षीय मासूम बच्ची घर में थी , पहनावे का प्रश्न नहीं था। दूसरे प्रकरण में  दिमाग ही बच्चों सा था , गलतफहमी का प्रश्न नहीं था। इन निरीहों की ,वेदना और कराहट नहीं दिखी  ,नहीं सुनाई दी , दुष्टों को ? क्या बीतेगी बच्ची /अविकसित दिमाग की युवती और उनके परिवार पर ? कोई ख्याल है ? दुष्टता करने वालों के स्वयं के परिवार की बदनामी से  क्या बीतेगी , कोई विचार है ?
परतंत्रता
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देश परतंत्र था , तो आक्रमणकारी की दृष्टि और नीयत ख़राब थी , नारी पे। परदों में रहती थी , घर की देहरी के अंदर छिपी होती थी। तब भी धन दौलत की लूट के साथ , उसे उठा ले जाते थे। सब कहते थे पराये हैं , विदेशी दुष्ट हैं।
स्वतंत्रता
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1947 में देश स्वतंत्र हो गया।  अब हम देशवासी ही रहे देश/समाज में। अब सुरक्षित हो जाती नारी अपनों में ,  अब निःशंकित घूम, पढ़-लिख सकती और उन्नति करती नारी स्वतंत्र देश में ।  अपनों का यह देश और अपना ही समाज था।  खेद , अपने भी पराये से बढ़कर दुष्टता करते हैं। क्या नारी का कोई अपना होता ही नहीं ? सब पराये होते हैं ?
नारी कराहना 
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पुरुष तुम रहे आओ पराये , जहाँ प्रीत नहीं , नारी भी उत्सुक नहीं करीब होने को। पुरुष तुम रहे आओ पराये , दुष्टता हम पर न करो । पुरुष तुम  रहे आओ पराये , मनुष्य हो मनुष्य बनो । पुरुष तुम  बनते हो बन जाओ जानवर - लोमड़ी एवं कौऐ से धूर्त न बनों।
-- राजेश जैन
19-02-2015

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