Sunday, February 8, 2015

उमराव

उमराव
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तरंग प्रेक्षागृह जबलपुर में ,"आरम्भ" - मुंबई (ग्रुप)  ने कल एक सशक्त प्रस्तुति दी।  जिसने दर्शकों का मन मोह लिया। इस मंचन में बड़े भावनात्मक प्रश्न - प्रभावशाली संवादों और दृश्यों के द्वारा उठाये गये। लेखक इस प्रस्तुति "उमराव" में से दो प्रश्नों को अपने ह्रदय में बसा ले आया है। आज उन पर , लेख आपके समक्ष है -
पिंजड़ा
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जब अमीरन , अपहृत होती है और तवायफ को बेच दी जाती है। तब वह मासूम बच्ची होती है।  वहाँ (कोठे में) खाली पिंजड़ा देख कर सवाल करती है।  पिंजड़े में कोई नहीं है ? क्यों लटकाया हुआ है ? वहाँ की तवायफें जबाब देती हैं , पिंजड़े में हम सब हैं। अमीरन , जिसका नाम वहाँ उमराव कर दिया जाता है, इसका अर्थ तब नहीं समझ पाती है।
आजादी
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तवायफों तक भी तब चल रहे आजादी के आंदोलन की सुगबुगाहट पहुँचती है।  अब बड़ी और मशहूर हो चुकी उमराव , तवायफों के इस पिंजड़े का दर्द अनुभव करते हुये तवायफ को कोठे पर पहुँचे एक बागी से प्रश्न करती है। हिंदुस्तान को आजादी मिल जाने पर हम लड़कियों को कहीं भी ,कैसे भी और कभी भी जाने आने को आज़ाद होंगी ? बागी कहता है - इतनी जल्दी नहीं।  उमराव व्यग्र हो पूंछती है - क्या 100 वर्षों में ये आजादी हमें होगी ? बागी कहता है नहीं। उमराव -150 वर्षों में ? बागी - हाँ 150 वर्षों में ऐसी आज़ादी होगी।
तवायफों की प्रबुध्दता
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यों तो तवायफें अपढ़ होती रहीं हैं , किन्तु उनके दीवाने , नवाब और समाज के कुछ बुध्दिजीवी भी होते थे। उनकी संगत और स्वयं अपने शापित जीवन से उनके जेहन में नारी बदहाली पर इस तरह के प्रश्न उमड़ते दिखलाये गये हैं। आज़ाद हो जाने पर आज़ाद भारत में अपेक्षा जब दूसरे देशवासियों को कई अन्य थीं , तब एक तवायफ 'उमराव' , नारी के लिये आज़ादी को चिंतित बताई गयी है। इस तरह निस्वार्थ भी , कि यह आज़ादी 100 -150 वर्षों में भी मिले , जितना उसका जीवन नहीं है , तो भी संतोष करने लायक है। बेहद मार्मिक सवाल -अभिव्यक्ति और प्रभावशाली मंचन , जिन्होंने देखा , तालियों से हाल गुंजायमान कर दिया।
अब का पिंजड़ा
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पिंजड़े में होने की पीड़ा , तब तवायफ अनुभव करती थी , अब पिंजड़े जिसमें यों तो कोई नहीं दिखता लेकिन अनायास बहुत फँसते जा रहे हैं। पिंजडे का विस्तार देश तो क्या दुनिया में बढ़ गया है। पहले प्रलोभनों और पैसे से तवायफों की देह के सौदे होते थे। अब गिफ्ट, वेलेंटायन डे के फूल और रात्रि पार्टियों और उनमें ड्रिंक्स एवं भोजन के झाँसों में कुलीन पुरुष /नारी भी आसानी से देह स्तर पर संबंधों में लिप्त हो जाते हैं। अब के उन्नत कैमरे और मोबाइल के द्वारा बने वीडियो और तस्वीरों से बाद में , कई ब्लैकमेल होते/चलते हैं. तवायफें तो कीमत वसूल लेती थीं।  आज तो मामूली गिफ्ट पर देह सौंप दी जाती हैं। बाद में तो ब्लैकमेल किये जाने पर कुलीन नारियाँ ,खासा धन भी देने को बाध्य होती हैं । देह भी दी , धन भी दिया और जीवन अनमोलता की अनुभूति /उपलब्धि सब चली जाती है। हाय , यह पिंजड़ा , कोई नहीं दिखता इसमें लेकिन अनेकों छिँक गये हैं अब इसमें। ( जो गिफ्ट ,वेलेंटायन डे के फूल और रात्रि पार्टियों और उनमें ड्रिंक्स एवं भोजन के चलन में भी अपनी गरिमा बचाये रखने की बुध्दिमत्ता रखते हैं , कृपया अपने ऊपर न लें , इन प्रहारों को।  अग्रिम क्षमा)
आज की आज़ादी
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पहले तो यह देश गुलाम था , उसमें तवायफ -'उमराव', नारी आज़ादी को व्यग्र थी। आज आज़ादी के नाम पर पूरी दुनिया की अनेकों नारी गुलाम होते दिख रही है। नारी के वीभत्स वीडियो , उन पर वल्गैर स्टोरीज , उन पर कमेंट के घिनौना परिदृश्य आम हो गये हैं । क्या नारी आज़ाद हो रही है ? या पहले  से ज्यादा गुलाम?
-- राजेश जैन
08-02-2015

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