Friday, February 13, 2015

नारी- निर्वस्त्र और निष्कर्ष

नारी- निर्वस्त्र और निष्कर्ष
-------------------------------
एक समूह पर एक किशोरवय बहन ने लिखा "यदि में निर्वस्त्र भी घूमूँ तो किसी को स्पर्श करने का हक नहीं ".
प्रतिक्रिया
-----------
यह वाक्य , नारी की तीखी प्रतिक्रिया है , उस व्यवस्था /समाज पर , जिसमें उस पर अनेकों बंधन हैं।  और जहाँ पुरुष सरेआम निर्वस्त्र होने को स्वतंत्र है। क्रिकेट में प्लेयर अपनी शर्ट उतार अर्धनग्न हो जाता है। सिनेमा में हीरो अपने गठीले बदन की नुमाइश पेश करता है। और नारी पर रेप के क्रम अबाध चलते हैं। असफल व्यवस्था और पुरुष के , खिसियाया कुतर्क नारी के बदन दिखाऊ वस्त्र पर होता है।
दोषारोपण
------------
नारी पर ज्यादती  पुरुष करता है। उसमें दोष पुरुष का होता है। तब भी अपने दोष का दोषारोपण , नारी पर करता है। ऐसे में सहनशीलता की सीमा पार होने पर , नारी मुख से ऐसे विद्रोही स्वर निकलना स्वाभाविक हैं।
विद्रोह
--------
यध्यपि उक्त वाक्य विद्रोह प्रदर्शित करता है , किन्तु वह विरोध जताने के लिए उपयोग किया है। विरोध में ,कोई लड़की यह इसलिए नहीं करती /करेगी क्योंकि इसी समाज में उसकी माँ /बहन और पिता /भाई रहते हैं। जिनकी मर्यादा (आदर) के लिए वह ऐसा प्रदर्शन विरोध जताने के लिए नहीं करेगी।
विरोधाभास
--------------
उस पोस्ट पर प्रतिक्रियायें , नारी के निर्वस्त्र न होने के पक्ष में होती हैं।  किन्तु यही समाज है , जिसमें नारी अपनी लाज की दुहाई देती है , तब भी उसे निर्वस्त्र कर दिया जाता है , और अशक्त नारी की लाज लूट ली जाती है। क्यों नहीं , हम नारी का ऐसा चरम अपमान नहीं रोक पाते हैं ? उस पर प्रताड़ना और दुष्टता के सिलसिले अविराम चलते हैं , हम साक्षी/श्रोता बने रह जाते हैं।
अपमानित
-------------
उस पोस्ट पर बहस ने यह रूप लिया , एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप हुए।  कुछ ने ग्रुप में अपमानित अनुभव किया ग्रुप छोड़ दिया , कुछ ने शब्द पर नियंत्रण खोया , अमर्यादित भाषा उपयोग की , और ग्रुप आउट किये गये।
सभ्यता ?
----------
सभ्य हुए समाज में विसंगति देखने में आती है।  जहाँ -तहाँ , मान -अपमान के प्रश्न उत्पन्न होते हैं ,फिर भी अपमानित करने की परम्परा चलती है। अपमान वहाँ हमारा नहीं हो सकता , जहाँ हम अन्य के साथ सम्मान से पेश आते हैं। किन्तु नारी को हम समान नहीं मानते और उनका सम्मान नहीं करते तो हम शिष्ट नहीं हैं। नारी अपमान के क्रम बने हुये हैं।  निश्चित ही 'अपमानित वह' अब पुरुष का अपमान करेगी । शिष्ट हम बनें , अपमानित करने की परम्परा हम छोड़ें , हम अपना ही सम्मान सुनिश्चित करेंगे।
क्या कहेंगे इसे ?
------------------
भोपाल में , फिल्म /टीवी से थोड़ा प्रसिध्द हुआ एक पुरुष कलाकार मुँह चला जाता है , "लड़की बिगड़ने पर उन्नति करती है " . अपने आगोश में पर नारी को पाने के लिए इस तरह के पुरुष कलाकार , ऐसी बेशर्मी पर उतारू हैं , कहाँ ले जा रहे हैं ये समाज को ?  इनके कुत्सित इरादों पर यह समाज /व्यवस्था क्यों कोई दंड नहीं लगाती है ? क्यों , इन्हें मंच /स्टेज पर बैठाते हैं ? इतने उदासीन क्यों हैं ? क्या सिर्फ इसलिये कि पीड़िता हमारे , परिवार की नहीं हैं ?
निष्कर्ष
---------
पुरुष बेशर्मी ऐसी चलती रही।  नारी यों ही अत्याचार भुगतती रही,  अपमानित होती रही , तो वह सचमुच , आदिमकालीन निर्वस्त्र वेश में आ जायेगी। अंतर सिर्फ यह होगा कि अब का निर्वस्त्र शरीर सौंदर्य प्रसाधनों से सजा होगा।  दुर्भाग्य ऐसी नारी , किसी पुरुष पिता की ही बेटी होगी।
-- राजेश जैन 
  14-02-2015

No comments:

Post a Comment