Saturday, February 14, 2015

नारी - निर्दोष एवं आरोप

नारी - निर्दोष एवं आरोप
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नारी के पक्ष में तुला कुछ झुका कर लेखक लिखा करता है। कवि दृष्टि में कमजोर पड़ते तुलनात्मक सच्चे पक्ष को सपोर्ट न्यायोचित होता है। लेकिन इस प्रयास में नारी के सताये पुरुष साथियों की उग्र प्रतिक्रियायें मिलती हैं। उनसे नाराज न हो धन्यवाद ही देता हूँ , भाई तो वे भी हैं। आज निष्पक्ष वह दृष्टिकोण रखने का प्रयास है , जो स्वतः स्पष्ट करेगा , तुला , क्यों नारी पक्ष में झुकती है।
लड़की ?
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जिसे , लड़की देख रहा है , ज़माना ,
वह बेटी लाड़ली किसी की है
जिस पर नज़र बुरी करता ,ज़माना ,
वह इज्जत किसी घर की है

कैसे होती है , सुंदर ?
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माँ , गर्भ में कष्ट झेलते रखती
पिता , दुलार छाया में पलती है
पढ़ाते ,विपरीत परिस्थिति में उसे
एक दिन तब परी सी निखरती है

क्या दायित्व उस पर हैं ?
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खिलती कली सी सुंदर वह
पुरुष उसे तोड़ने उमड़ते हैं 
चरित्र निभाना दायित्व उसे 
पुरुष अनेकों छलने उमड़ते हैं

द्वन्द
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जिन्होंने जिया ,किया उसके लिए
परिवार अपेक्षा उस पर है
सपनों के आड़ में वस्तु बनाते
छद्म अभिनय करते उस पर है  

डबल स्टैण्डर्ड
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अपनी होती या अपनी मानते
उस नारी को परदों में रखते हैं
पराई और झाँसो में आ फँसती
उघाड़ उसे तमाशा बनाते हैं

अकेली
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सपने ,उसके भला मिले एक
उसकी पलकों में सजते हैं
सुंदर उसे देख मनचले कई
छलने उस पर टूट पड़ते हैं

नारी वेवफा ?
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किस किस से बचाये दामन
किस किस को दे वह सफाई
अपने पिया के साथ चली जाती
मनचले उपमा बेवफा देते हैं

नारी उपहास क्यों ?
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चिरौरी किया करते थे पीछे 
जब दुल्हन बना ले जाते हैं
पत्नी नहीं जैसे दुष्टा ले आये  
राक्षसी उसे निरूपित करते हैं 

निर्दोष
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चरित्र , परिभाषित किया पुरुष ने
पालन उसका ही जब करती है
सम्मान बचा सपने जीती ,निर्दोष
दुष्टता से संघर्ष विवश हो करती है

आरोप
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सम्मान रक्षा में सफल होती
और चेतना उसमें जब आती है
खिसियाये छली पुरुष दृष्टि में
निर्दोष 'त्रिया चरित्र' कहाती है

इस पेज से नारी पक्ष और भी रखा जाता रहेगा। हम रखें , अपनी शिकायत , प्रकट करें अपना आक्रोश। किन्तु , भाषा शालीन रखें। लेखक/कवि के सम्मान का प्रश्न नहीं है। प्रश्न उस मर्यादा का है , जो माँ से , बहन से और बेटी से निभाई जाती है। इस पेज के पाठक माँ /बहन और बेटियाँ भी हैं , अपनी नहीं भी हैं तो अपने किसी करीबी या मित्र की हो सकती हैं। 
--राजेश जैन
15-02-2015

 

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