Friday, February 6, 2015

निश्छल बचपन

निश्छल बचपन
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आकर्षक ,गरिमा अब कैसे पीछे पड़ने वाले लड़कों से नितदिन छुटकारे को संघर्ष करती है ? सुदृढ़ से बताती है - कोई रास्ते में कमेंट करता है।  कोई शॉप में कुहनी मारने का प्रयास करता है। कोई बेशर्मी से प्रोपोज़ करता है। अब तो , मोबाइल पर एसएमएस और फेसबुक पर अभद्र संदेशों की इस कदर बाढ़ आई है कि कोफ़्त होती है। लगता है मोबाइल फेक दे और फेसबुक ब्लॉक कर दे।
सुदृढ़ कहता है - नहीं यह उपाय नहीं है , ऐसी कायरता से तो दुनिया छोड़ने की सोचने लगोगी।
गरिमा - तो फिर तरकीब बताओ कि कैसे? दुनिया इतनी मेरे लिए निश्छल ऐसी हो जाये।  हम लड़के और लड़कियाँ बचपन में बिना छेड़छाड़ के साथ खेल लेते थे। बेखटके , आबादी में तो क्या एक दूसरे के साथ रेलगाड़ी , बना खंडहर तक में चले जाते थे। कहते हुये गरिमा की आँखों के समक्ष बचपन की रेलगाड़ी का दृश्य छा जाता है।
सुदृढ़ को गरिमा ,निर्वात में निहारती दृष्टि के साथ एक परी सी अनुभव होती है। गरिमा बचपन में खोई और सुदृढ़ उसकी सुंदरता में खो जाता है .... 
--राजेश जैन
07-02-2015

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