Thursday, September 13, 2018

आप - यह रोको अन्यथा इसे स्वीकार करो

आप - यह रोको अन्यथा इसे स्वीकार करो 

------------------------------------------------------------------------

पहली रात की अगली सुबह - परिवार ने नोटिस किया कि  दिव्या के चेहरे पर जो ख़ुशी दर्शित होनी चाहिए थी , वह नहीं है। दिव्या ही नहीं अपितु अभिनव भी प्रत्याशा के विपरीत मुख पर गंभीरता लिए दिखाई दिए। दोनों  के बोल-व्यवहार में भी रुखाई ही परिलक्षित थी . मगर हर बात में भली आशा की सहज प्रवृत्ति वाला मानव मन , किसी भी आशंका को नकार दिया करता है। सभी ने सोचा कि शादी के कार्यक्रमों और रात की नींद कम होने से थके हुए होंगे दोनों। बावजूद - प्रश्नवाचक सी जिज्ञासु निगाहें सभी की रहीं , जो दिव्या - अभिनव दोनों ने दिन भर महसूस की। फिर रात्रि आई - कमरे में अकेले मिलने पर अभिनव ने दिव्या से कहा , हमारे बीच क्या घटित हुआ है? , हम क्यों सामान्य से प्रतीत नहीं हो रहे हैं? , ये सवाल घर में सभी के मन में उत्पन्न हुए प्रतीत होते हैं । प्लीज् - तुम कल से खुश दिखने की कोशिश करना। तीन दिन बाद हम स्विट्जरलैंड जा ही रहे हैं। आगे के बारे में वहाँ तसल्ली से तय कर लेंगें।  दिव्या ने सहमति में सिर बस हिलाया - फिर विपरीत करवट ले कर दोनों सोने की कोशिश करने लगे। स्विट्जरलैंड जाने के पूर्व तक , अगली सुबह से दोनों खुश दिखने का भरसक अभिनय करते रहे।

दरअसल पहली रात - ज्यादा बात किये बिना ही अभिनव ने दिव्या से शारीरिक संबंध स्थापित किया था। उपरांत दिव्या से तुरंत सवाल किया था , कि मुझे लगता है यह सहवास तुम्हारा पहला नहीं है। दिव्या अप्रत्याशित एकाएक इस सवाल से किंकर्तव्यविमूढ़ रह गई थी। क्षुब्ध हो उसने जबाब दिया था - सही है , पहली बार नहीं है। अभिनव कह उठा - यह तो धोखा हुआ मेरे साथ। यह भी दिव्या के लिये अत्यंत अप्रत्याशित ही था।  उसने कोई सफाई देने की जगह रुखाई से कहा , अभी मुझे नींद आ रही है। बाद में बात करना , कह कर वह वॉशरूम गई और वापिस आकर , बेड पर एक किनारे लेट गई। नींद तो आँखों से कोसों दूर थी। उसके मन विचारों में पड़ गया था। 28 वर्ष की थी दिव्या , मारोती कम्पनी में 6 वर्ष से जॉब कर रही थी। सुंदर , वह साथी कर्मियों और बॉसेस में हमेशा आकर्षण का केंद्र रहती थी। पार्टीज़ में कभी कभी ड्रिंक्स उसे लेना पड़ता था। ऐसे ही कुछ मौकों पर उसके संबंध दो पुरुष मित्रों से रहे थे। उसके माँ - पापा , अपनी ही जाति में विवाह के पक्षधर थे। ऐसे में एल एन टी में सीनियर पोजीशन में कार्यरत अभिनव की मालूमात कर उससे रिश्ते की बात चलाई गई थी। दिव्या ने निजी तौर पर अभिनव के डिटेल निकलवा लिए थे। उसे अभिनव की रंगीन मिजाजी और उसकी कुछ गर्लफ्रेंड होने के बारे में जानकारी हुई थी। दिव्या ने हामी कर दी थी इस आशा से कि अभिनव उसके विवाह पूर्व अफेयर को तूल नहीं देगा , क्योंकि वह खुद ही इस तरह के अफेयर रखता था। शादी संपन्न हुई और पहली ही रात आशा के विपरीत यह कठिन स्थिति निर्मित हो गई थी। 

स्विट्जरलैंड पहुँच कर उन्होंने चारों दिन उनके बीच के इस मसले को डिसकस करने में लगाये। दोनों ही बात को सम्हाल लेना चाहते थे। किंतु अभिनव पर पुरुष सत्ता वाली धारणायें हावी थीं। अपनी अपनी सफाई पर वार्तालाप के दौर उनके बीच चले . विवाह उपरांत ऐसी यात्राओं जैसा प्यार - समर्पण वाला भाव दोनों में नदारद बना रहा। अभिनव में विद्यमान परंपरागत भारतीय पुरुष स्वीकार ही नहीं कर पाया कि उसकी पत्नी के अन्य पुरुषों से संबंध रहे हैं। अंततः किसी समझौते पर दोनों पहुँच नहीं सके। जिस सुबह दोनों को भारत लौटना था , उसके पूर्व रात्रि निसंकोच और दृढ शब्दों में दिव्या ने जो कहा उसका मर्म यह था - 

"अभिनव आज वह समय नहीं रहा जब आपकी और मेरी माँ , जब ब्याही गईं तो  वर्जिन थीं , उन्हें पति रूप में मिले आपके और मेरे पापा भी सुशील थे , जिनके विवाह पूर्व कोई संबंध नहीं थे। उस समय लड़कियों की शादी 18-20 में और लड़कों की 22-24 की उम्र में होती थी। आज जब लड़कियाँ 26-28 में ब्याही जातीं हैं तब वे जॉब कर रहीं होतीं हैं। उन्हें साथी पुरुष - कुँवारी  रहने देने में मुश्किलें खड़ी करते हैं। आप यह कैसे एक्सपेक्ट कर सकते हैं कि आप तो अनब्याही दस लड़कियों से संबंध कर लो किंतु पत्नी रूप में आप को वर्जिन लड़की मिले। अगर ऐसी उम्मीद आप करते हो तो ऐसा बिगाड़ लड़कियों में न हो यह कर्तव्य भी आपका होता है। मेरा मानना है कि - ' आप (पुरुष) - यह रोको अन्यथा इसे स्वीकार करो ' ."

 फिर रात वे सो गए थे। सुबह प्लेन में दिव्या के बगल में खामोश बैठे  दिखाई पड़ रहे अभिनव का मन गहन विचार मंथन में लीन था . उसे कई बार लगा कि हाँ वह गलत है . 10 लड़कियों के साथ सो चुका वह , दो लड़कों से संबंध में रही दिव्या को स्वीकार करने को क्यों  तैयार नहीं?  उनमें  सब भूल कर आगे एक दूसरे से कमिटेड रहने की शर्त क्या पर्याप्त नहीं होनी चाहिए ? लेकिन खेद - पुरुष की स्वार्थी धारणा - पत्नी का चरित्र सीता के चरित्र से कम नहीं होना चाहिए। 

इनके दाम्पत्य सूत्र की बुनियाद ही वैचारिक समन्वय के अभाव में रखी गई है - देखना यह है तनावपूर्ण साथ निभ पाता है या टूट जाता है ... 


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन13-09-2018

No comments:

Post a Comment