Sunday, September 2, 2018

भारतीय युगल ..

भारतीय युगल

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रोहित ने बीकॉम किया था। 2 - 3 साल से यार दोस्तों के साथ यूँ ही घूमा फिरा करता। तमाम वह कृत्य किया करता जो ऐसे इकट्ठे नवयुवा करते। उसके पिता सुरेशचंद्र परेशान रहते कि रोहित उनकी छोटी सी किराना दुकान बढ़ाने और चलाने में मदद क्यों नहीं करता। मन होता तो कुछ समय के लिए तो आ जाता , लेकिन बाइक पर थोक दुकानों से सामग्री लाने से बचता , दुकान पर तेल आदि ग्राहकों को देने तैयार नहीं होता कि कपड़े गंदे हो जाएंगे. अंततः व्यथित सुरेशचंद्र ने रोहित की माँ सरिता से मंत्रणा कर उपाय निकाला कि रोहित की शादी कर दी जाए। योग्य लड़कियों की खोज आरम्भ हुई मगर रोहित लड़की देखने जाने तैयार नहीं होता। सुरेशचंद्र-सरिता खीजते रहते। एक दिन सरिता ने कहा - रोहित बेटा कम से कम यह फोटो तो देख लो , रोहित ने चिढ कर कहा ,   माँ मेरे किसी फ्रेंड की शादी नहीं हुई , अभी मुझे नहीं करनी शादी। सरिता ने जबरन फोटो उसके बेड पर छोड़ी , रोहित देख लो  - इतनी अच्छी लड़की तुम्हें शायद फिर मुश्किल है मिले।  यह कहते हुए उसके कमरे से माँ बाहर चली गई।  रोहित ने इसे अनसुना कर दिया। रोहित उस दिन रात घर वापिस आया और खाना खाकर , टीवी आदि देख लेने के बाद सोने कमरे में आया तो , बिस्तर पर माँ की छोड़ी फोटो अब तक पड़ी थी। सोने के लिए , हटा एक तरफ रखने की नीयत से फोटो उसने उठाई तो उस पर नज़र पड़ गई। जैसे ही दिखी - वह अपलक देखता रह गया।  वह तुरंत माँ के कमरे में गया , माँ को संकेत से अपने रूम में आने को कहा। माँ जब आई तो पूछा , यह लड़की कौन है ?, माँ को रोहित की जिज्ञासा ने प्रसन्न कर दिया। जबाब देने की जगह उल्टा सवाल कर दिया , तुम्हें अच्छी लगी ? रोहित खुद को रोक नहीं सका , कहा हाँ माँ - क्या यह देखने में भी ऐसी ही लगती है ? माँ ने कहा नागपुर की ही है , तुम तैयार हो तो एक - दो दिन में हम स्वयं चल कर देख लेते हैं। तीसरे दिन ही सब साक्षी का साक्षात्कार करने पहुँचे। रोहित को प्रत्यक्ष वह फोटो से भी अधिक सुंदर लगी। सब कुछ तय हुआ और। दो महीने में ही साक्षी - उसकी दुल्हन बन उसके घर आ गई। 
साक्षी का आना रोहित में संपूर्ण रूपान्तरण का कारण हो गया। रोहित यार दोस्तों से बच घर आने को उत्सुक रहने लगा। साक्षी को खुश देखने के लिए उसके कपड़े , आभूषण और अन्य वस्तुओं की गिफ्ट नित देने की उसकी कोशिश होने लगी। पापा , सुरेशचंद्र से पैसा माँगने में उसे झिझक होने लगी। इसलिए दुकान पर बैठने लगा। दुकान में होती आय , अब उसे अपर्याप्त लगने लगी तो दुकान बढ़ाने की जुगत में रहने लगा। कहाँ तो वह बाइक में एक दो झोलों में थोक से सामान लाने तैयार नहीं होता था , अब बाइक पर ऑटो रिक्शा सा सामान लाद एक बार तो क्या बार - बार लाने लगा। ग्राहकों से बोलचाल व्यवहार में आश्चर्य जनक रूप से बहुत मिठास घुल गई। दुकान का चलना और आय तेजी से बढ़ने लगी। सब देख सुरेशचंद्र - सरिता फूले नहीं समाते। रोहित अथक मेहनत कर थक के घर लौटता मगर , साक्षी का खूबसूरत मुखड़ा , उसकी सारी थकान काफूर कर दिया करता। साक्षी भी मन ही मन रोहित के प्रेमपाश में स्वयं के भाग्य की सराहना करती। 
दिन उड़ते से गुजरने लगे - दुकान बड़ी , आय बड़ी और चार वर्ष में रोहित-साक्षी एक बेटी और एक बेटे के माँ - पिता हो गए।  रोहित और साक्षी में  प्रेम अब दो नन्हें बच्चों में बँटने लगा . सहज आरंभ हुआ प्रेम का यूँ बँट जाना और होती आय की और बढ़ा लेने की युक्तियों में व्यस्तता ने  छह सात वर्ष और बीतने पर  वह समय ले आया , जब रोहित को साक्षी के मुखड़े को प्रेम से निहार लेने तक की फुर्सत नहीं होती। यूँ तो साक्षी समझदार थी उसे मालूम था कि  विवाह के 8 - 10 वर्षों बाद ऐसा फेज भी आता है। मगर तब भी रोहित की उपेक्षा उसे निराश करती , अपनी शक्ल-शरीर को आईने में निहारती स्वयं से प्रश्न करती , क्या फर्क आ गया मुझमें जो- रोहित जान देते  थे  , अब मुझे देखते तक नहीं।  
एक रात जब भव्या और दिव्य सो चुके तो , साक्षी ने रोहित से पूछ ही लिया - क्या मेरे आकर्षण में कमी , कारण है जो अब आप मुझसे उदासीन रहते हैं ? रोहित साक्षी से ऐसे प्रश्न को तैयार नहीं था , सकपका कर पहले उसने साक्षी के चेहरे को देखा , भाव समझने की कोशिश की फिर संयत स्वर में कहना आरंभ किया - क्षमा करना साक्षी , मेरे तरफ से कमी रह गई लगता है जो आपके विचार में ऐसे प्रश्न उभरे। जहाँ तक आकर्षण की बात है , समय जितना बीता है आप पर और मुझ पर भी बीता है , आपमें यौवनाकर्षण में कमी आई है तो मैं भी तो साथ प्रौढ़ सा होने लगा हूँ। आप , अपने रूप लावण्य के साथ ही इस घर में आईं थीं , इस घर और मेरे लिए समर्पित ही तो रहीं हैं तब से , ऐसे में यदि कोई जिम्मेदार है इसमें आई कमी के लिए तो वह मैं हूँ आप नहीं। अपितु आपने तो हमारे दो बच्चे पहले गर्भ में फिर प्रसव के समय की वेदना बाद जन्मे है। आप ऐसा कभी न सोचें कि मेरी चाहत में कमी है आपके लिए , यह पहले से अब बढ़ गई है। 
साक्षी , रोहित के चेहरे को अपलक निहारती रह गई उसे लगा कि रोहित सिर्फ व्यापार ही नहीं जानते , सुलझे विचारों के भी धनी हैं। रोहित से आगे अच्छा सुनने के लिए फिर उसने पूछा , फिर यह क्या है कि जो आप को कुछ दिखाई नहीं पड़ता मैंने क्या पहना है क्या श्रृंगार किया है ?  रोहित ने उसके चेहरे को दोनों हाथ में लिया , फिर सीधे उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा , नहीं साक्षी सब दिखाई पड़ता है , पर व्यापार और अपनी जिम्मेदारियों का ज्यादा ख़्याल रहता है , इसलिए आप पर कवितायें लिख देने की फुरसत नहीं। रहा प्रश्न श्रृंगार - वस्त्रों का , इनकी भूमिका तो शुरुआत में थी जब हम आपस में बँध रहे थे , अब तो आपसे मेरा जुड़ाव बदन से आगे निकल रूह से हो गया है। इतनी सुंदर रूह मलिका को मैंने अनुभव कर लिया है , कपड़े - आभूषण आप अपनी संतुष्टि के लिए पहनिये। इनका अब कोई महत्व नहीं मेरे आपसे प्यार के लिए। इस जीवन में आपके बिना मैं पूरा ही नहीं हूँ। 
साक्षी सुखद आश्चर्य में पड़ गई कि रोहित के विवेक विचार में जीवन की इतनी गहराई है। उसे मजा आ रहा था उसने रोहित को फिर छेड़ा , काश मैं भी अर्निंग होती , आप पर इतना दबाव नहीं रहता। रोहित ने फिर तनिक विचार किया , फिर कहा - साक्षी आप मेरे माँ-पापा की , 
भव्या-दिव्य की और मेरी जरूरतों को इतनी दक्षता से पूर्ति करती हो , बच्चों के लालन-पालन में , उनके स्कूल के गृह कार्यों में इतना संतुलन रखती हो , तब ही मैं निश्चिंत रह व्यापार को इतना समय दे पाता हूँ। आप जानती नहीं 10 वर्ष पूर्व दुकान से हम पच्चीस हजार ही कमाया करते थे , आज हम तीन लाख से ज्यादा कमा रहे हैं। यह कतई गलत नहीं होगा कि मैं कहूँ कि इसमें सैध्दांतिक रूप से - पचास हजार पापा की , पचास हजार मम्मी की 1 लाख मेरी और 1 लाख की कमाई आपकी है। आप और माँ भी अर्निंग ही हैं , जिनके अपने त्याग इतने महान हैं कि समस्त योग्यता होने पर भी , अपना व्यक्तित्व अपनी पहचान - माँ , पापा में और आप मुझमें विलोपित कर अपना जीवन जीतीं हैं। 
यह कहते हुए रोहित उबासियाँ लेने लगा था , उसकी आँखें निद्रा से बंद सी होने लगीं थीं। साक्षी ने यह देखा - पति पर उसका प्रेम , विश्वास और आदर इस थोड़ी सी चर्चा ने अत्यंत बड़ा दिया था। उसने रोहित के चेहरे को अनुराग से देखा , सर पर अपना हाथ फेरा। फिर यह सोचते हुए कि भारतीय परिवार में एक पत्नी ही नहीं , पति भी होता है जो अपनी योग्यता और व्यक्तित्व को , परिवार की जिम्मेदारी निभाने की तल्लीनता में पत्नी और परिवार में विलोपित कर देता है। इस तरह पिछले कुछ समय से चल रहे अंर्तमन के प्रश्नों का संतोषजनक जबाब पाकर साक्षी भी आज निश्चिंतता से पति के पीछे सट कर निद्रा की गोद में जा समाई। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
02-09-2018


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