Tuesday, September 11, 2018

परवीन ..

परवीन ..

गतांक से आगे (पीली साड़ी ..... )

इधर रितिक मन में भरा सब , आबिदा को कह के चला गया। लेकिन आबिदा की दुखती रग को छेड़ गया। वह यादों में खो गईं . दो बच्चों (एक बेटी ,एक बेटा ) के बाद उनकी तीसरी बेटी जब जन्मी तो घर में खुशियों के ताँता लग गया। उन्हें बहुत अच्छा घर , अच्छे इलाके में काफी कम कीमत में मिल गया। उनके खाविंद बहुत खुश रहने लगे। उत्साहित हो व्यापार में लगे तो कमाई एकाएक बढ़ने लगी। 5 - 7 दिनों में ही नवजन्मी बेटी की शक़्ल , छवि निखर गई. दिखाई पड़ने लगा की वह निहायत खूबसूरत है। खाविंद और उन्होंने उसके लिए परवीन नाम तय किया। बड़ी बेटी नूरी , साढ़े तीन की थी। वह परवीन के पास से हटती ही नहीं थी। 15 - 20 दिन यूँ बीते कि उन्हें एक बात का खटका हो आया कि परवीन तेज होती आवाजों से भी चौंकती क्यों नहीं  है ? पहले इसे अपने तक रखा लेकिन चिंता बढ़ गई तो परवीन के पापा को बताया दो तीन दिनों उन्होंने भी परखा फिर डॉ. को दिखाया , जाँच से पता चला कि समस्या तो है मगर ऐसी कुछ तकलीफें खुद ठीक भी होतीं हैं। इस आशा से कि शायद ठीक हो जायेगी , दिन बीतने लगे परवीन डेढ़ वर्ष की हुई तो कानों की समस्या तो दूर नहीं हुई बल्कि आवाज भी साफ नहीं हुई। फिर डॉ. के चक्कर शुरू हुए . हैदराबाद - मुंबई तक दिखाया गया पता चला कि कोई नसें हैं आपस में चिपकीं हैं . जन्मजात समस्या है , जिसका इलाज अब तक नहीं निकाला जा सका है। आबिदा गहन दुःखी हो गईं। उनको ख्याल सताने लगा , इस खूबसूरत - मासूम बच्ची का पूरा जीवन ओंठों पर तरन्नुम और कानों में श्रवण शक्ति के बिना कितना चुनौतीपूर्ण होगा। उनका दिल कहता 
"या अल्लाह तूने - हमें खूबसूरत बेटी से तो नवाज दिया
सितम मगर उस पर तरन्नुम और श्रवण छीन लिया"
उसको मिली कमियों के अहसास आबिदा , उनके खाविंद को होने से परवीन , अतिरिक्त लाड़ दुलार से पलने लगी । बड़ी बेटी नूरी का तो पसंदीदा खिलौना सी थी। पास पड़ोस से भी उसे बहुत प्यार मिलता। पढ़ने के लिए इस तरह के बच्चों का एक अच्छा स्कूल पास ही था। पढ़ने में उसका मन अच्छा लगा करता। 12 -13 की हुई परवीन तो , लिखकर पूछती संगीत कैसा होता है , आप सब का बोलना क्या होता है। सभी के ओंठ हिलते दिखते शब्द नहीं सुनती , उसके लिए शब्द तो किताबों और कॉपियों में लिखे /छपे बस थे। नूरी , गानों और म्यूजिक पर नृत्य किया करती। परवीन के लिए थिरकन संगीत प्रेरित ना होकर अप्पी की नकल प्रेरित होता .
परवीन 15 की हुई तो अपनी अप्पी से भी ऊँची हो गई , अब आबिदा को उसका बाहर निकलना परेशान कर दिया करता। परवीन ज़माने की खराबियों से अनभिज्ञ , बिंदास पहले जैसे पास पड़ोस में जाना आना करती लेकिन आबिदा की फ़िक्र उसके बाहर जाते ही नूरी को उसके पीछे भेज देती। यूँ तो संकेतों और लिख कर उसे बहुत कुछ बताया समझाया जाता लेकिन बोलने और सुनने के बिना समझबूझ 100 % पर्याप्त कैसे होती। अब 17 की हुई परवीन ने मम्मी-पापा से बायोलॉजी पढ़ने एवं डॉक्टर बनने की एम्बिशन बताई  तो कम पढ़े लिखे वे , संवेदना से भावुक हो गये , वे उसके लिए लैपटॉप ले आये।
आबिदा , परवीन की फ़िक्र में ही अक्सर ग़मगीन सी रहतीं कि रितिक ने उनके घर इस तरह दस्तक दी। रितिक तो मनमानी कह चला गया , मगर उन्हें डर लगा कि परवीन के पापा को इस की भनक नहीं लगे , अन्यथा सब पर खतरा हो जाएगा। मुस्लिम औरतों को मर्दों की क्रूरताओं का ज्ञान होता है। अतः ऐसी बातें वे अपने सीने में ही दफन रखतीं हैं। रितिक के आने की भनक उन्हें न पड़े वे इस फ़िक्र में परेशान हो गईं , अन्यथा परवीन के बाहर - स्कूल आदि पर बंदिशों का डर हो जाएगा।
आबिदा ऐसी तंद्रा में खोई सी थीं कि नूरी ने आकर उनकी तंद्रा भंग की , पूछने लगी कि - वह कह क्या रहा था , मम्मी? झूठ कह कर वह बात खत्म करना चाहतीं थीं . उन्होंने कहा - कुछ नहीं , किराये के कमरे हैं क्या , पूछने आया था। मगर नूरी ने पूछ लिया - मम्मी मगर वह तो परवीन के बारे में कुछ कह रहा था ,ना ? नूरी को उन्होंने समझाया कि पापा के सामने कोई चर्चा न करे - फिर सारा वाकिया उसे कह सुनाया। पापा - कैसा रियेक्ट कर सकते हैं , उसे भी अंदाजा था। इसलिए उसने भी कोई चर्चा नहीं करने की बात मान ली। मगर ....
 नूरी को , रितिक की अनोखी दीवानगी दिलचस्प लगी। मम्मी के सामने से हट अपनी पढ़ने की टेबल पर जा बैठी सोचने लगी - कितना अंतर है हमारे लड़कों (मुसलमान) में , कहाँ वे लव जिहाद के नाम पर बहुसँख्यकों की लड़कियों को प्रेमपाश में फँसाने में लगे हैं और कहाँ ये रितिक जो ऐसा इसलिए नहीं करता कि हमारी कौम क्या ख्यालात रखती है की फ़िक्र करता है . अपने (भले ही एकतरफा) प्यार को हासिल करने का इरादा नहीं करता।  कितना फर्क है संस्कारों में , कितना जिम्मेदारी बोध है इन्हें , कितना अपनापन है इस समाज से - कि जिन कार्यों से कौमों में नफ़रत बढ़ने का अंदेशा ऐसे कार्यों को ये नहीं करते। उसके मन में रितिक के लिए एक सम्मान पैदा हुआ। फिर उठी वह और उसने परवीन के पास जा कर उसके चेहरे को ध्यान से देखा - उसे सही लगा कि रितिक क्यूँ इस तरह दीवाना हुआ , अपनी बहन के सुंदर चेहरे को देखा , उसके माथे को चूम लिया , परवीन प्रश्न वाचक निगाहों से अप्पी को देख रही थी।  नूरी - उसे प्यार से देख सिर्फ हँसे जा रही थी।
दिन बीतने लगे परवीन अब ग्यारहवीं में आ गई थी , उसने बायोलॉजी सब्जेक्ट लिया था। एक दिन अखबार में नूरी को  रितिक के  NEET में टॉपर होने का समाचार पढ़ने मिला। वह मन ही मन रितिक की प्रशंसक हो गई। नूरी ने फेसबुक पर रितिक को खोज लिया। उसने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड की। जिसे एक्सेप्ट करने के पहले मैसेज से रितिक ने नूरी से उसमें इंट्रेस्ट की वजह पूछी. नूरी ने परवीन की बड़ी बहन होने की जानकारी दी तो रितिक ने ऐड कर लिया। पढ़ने में व्यस्त रितिक कभी कभी ही उससे मैसेंजर में चैट करता।
एक दिन , रितिक ने नूरी को लिंक भेजी , जिसमें दिव्यांग कोटे से एम्स में प्रवेश की जानकारी थी. भगवान को क्या मंजूर होता है , कोई जानता नहीं। प्रतीत होता है रितिक को परवीन के घर ईश्वरीय न्याय ने भेजा था। रितिक द्वारा , नूरी को मार्गदर्शन कराते हुए कोचिंग , प्रिपेरशन के तरीके आदि के मैसेज मिलते रहे। नूरी आबिदा को तो यह सब बताती मगर पापा से बिना रितिक की जानकारी दिए , परवीन के लिए वह सब बातों की व्यवस्था कराती रही। यह शायद रितिक का निच्छल , निःस्वार्थ एवं सच्चे प्रेम का परिणाम था कि रितिक के दो वर्ष बाद , इन सारे बैकग्रॉउण्ड से अनभिज्ञ परवीन को एम्स में दिव्यांग कोटे में प्रवेश मिल गया।
(कुशल कहानीकार के आदर्श कल्पनाओं की उड़ान अंतहीन होती है - फ़िलहाल ,हालाँकि  इस कहानी के विस्तार पर मैं यहीं विराम देता हूँ)
समाप्त 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
11-09-2018

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