Friday, September 7, 2018

पीली साड़ी वाली लड़की

पीली साड़ी वाली लड़की 


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शफ्फाक चेहरा उस लड़की का दिखा , मंत्रमुग्ध हो रितिक सब भूल गया। अपनी बाइक से उसके पीछा करने लगा। वह पीली साड़ी में थी। उसने बाल खुले रखे थे जो पीठ से भी लंबे हो रहे थे . जिनके पीछे वह बैठी थी , वह उम्र से उसके पिता जैसे मालूम पड़ते थे। एक अंतर रखते हुए लगभग तीन किमी उसने पीछा किया । तब उसकी बाइक रुकी ,वह लड़की उतर कर वहाँ एक गेट के अंदर चली गई और जिन के साथ आई थी , वह व्यक्ति लौट अकेले वापिस चले गए । रितिक को तब याद आया उसे स्कूल जाना है। अपने 'लव एट फर्स्ट साइट' के बारे में मालूम इतनी जानकारी से अभी वह संतुष्ट हुआ । फिर वह स्कूल चला गया। अगले तीन दिन वह स्कूल के लिए पंद्रह मिनट पहले निकलता , जहाँ लड़की ने ड्राप लिया था वहाँ पहुँचता और लड़की के बारे में अपने तरीके से विवरण प्राप्त करता रहा । उसे मालूम हुआ वह इस प्रकार था -
अगले दिन वह लड़की स्कूल बस से उतरी थी। स्कूल यूनिफार्म में थी। स्कूल दिव्यांग का था। उसे अचरज हुआ कि यह सामान्य दिखती लड़की वहाँ क्यों पढ़ती है। स्कूल स्टॉफ से दोस्ती गाँठ , उसे पता चला कि लड़की परवीन है , मुस्लिम है , दसवीं क्लास में पढ़ती है, कहने सुनने में असमर्थ मगर इंटेलिजेंट है। पिछले दिन वह शिक्षक दिवस होने के कारण साड़ी पहनकर स्कूल आई थी .
रितिक , डॉक्टर पिता का इकलौता बेटा था , अभी बारहवीं में पढ़ता था। स्कूल के अलावा कोचिंग जाता था , पढ़ने में कुशाग्र था , लक्ष्य NEET में चयनित होकर  एम्स से डॉक्टर बनना था । पढ़ने और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित होने से कोई भी लड़की और प्रेम-व्रेम से उसे कोई सरोकार नहीं था। मगर उस दिन परवीन को देख कर उस पर जो असर हुआ वह जादुई सा कुछ था। रितिक पर यह प्रभाव उसके लिए वेदनाकारी हो गया जब उसे पता चला कि परवीन मुस्लिम थी एवं दिव्यांग थी।  प्रेम मुकम्मल होने की कोई संभावना ही नहीं बची थी। 
रितिक , पिछले तीन दिनों में ,देखा-जाना  सब , दिमाग से झटकना चाहता था , मगर परवीन का रूप उसके मनो-मस्तिष्क से निकल ही नहीं पा रहा था। ऐसे में अपनी पढ़ाई में वापिस ध्यान केंद्रित करने के लिए उसे लगा , उसका एक बार परवीन के मम्मी-पापा से मिलना चाहिए। परवीन के बारे में सहानुभूति की बात कर वह हमेशा के लिए सब भुला देगा।
जितना सोचने में आसान था उतना ही इस विचार को यथार्थ करना बहुत खतरनाक काम हो सकता था . परवीन के घर वाले यदि कट्टर हुए तो उसके जान पर आ सकती थी . मगर अनुभवहीन किशोरवय रितिक के ऊपर एकतरफा प्रेम का तूफान हावी था । संभावित खतरा भी उसे रोक नहीं सका। रितिक , एक शाम परवीन के घर पहुँच ही गया। बेल बजाऊँ या नहीं पशोपेश में था तभी गेट खुला। सामने सलवार कुर्ती में परवीन थी , उसे दरवाजे पर खड़े पाया तो प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा - रितिक ने पूछा पापा हैं , परवीन सुन नहीं सकती थी हाथ के इशारे से ठहरने कहा , कुछ देर में परवीन नहीं एक महिला सामने आईं - पूछा किससे मिलना है ? रितिक हकलाते सा बोला , पर र र...परवीन ....  परवीन के पापा से . वह बोलीं , वह अभी घर पर नहीं हैं . साथ ही , वह पीछे हट कर दरवाजा लगाने लगीं . यह देख रितिक तत्परता से बोल पड़ा  , मैं आप से बात करना चाहता हूँ . उन्होंने पूछा किस बारे में , मैं आपको नहीं पहचानती , कहते हुए उन्होंने उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देखा। रितिक बोला - बैठ कर बता सकूँगा। मालूम नहीं कैसे उन्होंने मंजूर किया , उनके संकेत पर वह उनके पीछे दरवाजे से दाखिल हुआ , सामने बीच में खुला आँगन था , चार फाइबर चेयर थीं , एक में उसे बैठने का इशारा किया सामने खुद बैठीं  . फिर पूछा , कहो क्या बात है। रितिक ने आसपास नजरें दौड़ाई , कोई नहीं था , बस दो मुर्गियाँ यहाँ वहाँ घूम रहीं थीं. फिर पूरी हिम्मत बटोरकर कहना आरंभ किया - मैं रितिक हूँ , डॉ अनूप जोशी का बेटा हूँ , उन्होंने टोका - गेस्ट्रोलॉजिस्ट ? उसने हामी में सर हिलाया , आप जानतीं हैं उन्हें ? आप परवीन की माँ हैं?  उन्होंने दोनों प्रश्न के जबाब हामी में सर हिलाकर दिया , और कहा मैंने  उनसे ट्रीटमेंट लिया है. थोड़ा विश्वास रितिक का बढ़ गया। कहने लगा - 
"हफ्ते भर पहले परवीन दिखी थी , देखते ही उससे मेरे हृदय में प्यार का सागर , लहरें उछाल लेने लगा . बाद में मुझे पता चला , वह मुस्लिम है साथ ही दिव्यांग भी। मुझे समझ आ गया - मेरा प्यार एकतरफा रह जाने वाला है। फिर भी मेरा ध्यान पढ़ाई से उचट गया है। मैं डॉ होने के लिए पढ़ रहा हूँ , वापिस पढ़ाई में दिल लगाना चाहता हूँ। इसलिए आज एक बार और अंतिम बार आपके दरवाजे पर आया हूँ। यह कहना है कि उसके प्रति मुझे , मेरे मन में जन्मी उससे प्यार की असीम अनुभूति के कारण  , उसकी कमीं को लेकर उससे सहानुभूति है , उसे लेकर मन दुखी है। मैं भली-भाँति इस सच्चाई से परिचित हूँ कि यदि मैंने कोशिशें कर परवीन के दिल में भी अपने लिए प्यार की कोंपलें जगा दीं तब भी मुस्लिम संप्रदाय को कदापि हमारा साथ पसंद नहीं होगा। इससे एक अनावश्यक दबाव उस बेचारी लड़की के हृदय पर पड़ेगा , जिसके साथ पहले ही ईश्वर ने अन्याय किया हुआ है, उसे वाणी और श्रवण शक्ति से वंचित रखा है।अपनी स्वार्थ सिध्दि के लिए मैं अन्याय करने की भूल नहीं करूँगा।  अतः अब मैं कभी उसका पीछा नहीं करूँगा। हालाँकि ज़िंदगी में उसकी कभी कोई सहायता कर सका तो अपने जीवन को सफल मानूँगा। बस इतना कहना था मुझे , अब चलूँगा।"
 परवीन की माँ कम उम्र में ही रितिक की इतनी बुध्दिमत्ता , उसकी स्पष्टवादिता तथा हिम्मत पर चकित थी। हैरानी से उसे देख रही थी। वह उठने लगा तो उसे बैठने का इशारा किया फिर बोलीं - तुम मशहूर पिता की संतान हो - क्या कहने आये हो उसके खतरे से अनजान हो। अच्छा हुआ कि परवीन के पापा अभी घर पर नहीं अन्यथा ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं करते , मालूम नहीं क्या कर डालते। ऐसी बातों के लिए कभी तुम किसी मुसलमान घर जाना नहीं , यह कसम खा लो। मैं एक दिव्यांग बेटी की माँ हूँ , संतान के प्रति ममता से अतिरिक्त वाकिफ हूँ। तुम्हें माफ़ करतीं हूँ , तुम परवीन की कोई सहायता या परेशान करने का कोई दुस्साहस नहीं करना। मेरी दुआ है तुम अपने पापा जैसे सफल डॉ. बनना। यह कहते हुए उन्होंने उसे उठने का इशारा किया और कहा - अब जाओ . रितिक एक तरह से अपमानित , परवीन के घर से लौटा था लेकिन उसने इसका मलाल नहीं किया। वह उसका सच्चा प्यार था , सब आसानी से उसने पचा लिया।
समय बीता , परवीन के लिए अनुभूत सच्चा प्यार रितिक की अच्छाई की प्रेरणा बना .  फिर कभी परवीन की तरफ मुहँ नहीं करेगा संकल्प के साथ अपने लक्ष्यों को हासिल करने में लग गया। बुध्दिमान वह था ही उस वर्ष की NEET में उसने देश में टॉप किया। एम्स दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई हेतु उसने प्रवेश ले लिया।

(शेष अगले भाग में )

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
07-09-2018




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