Thursday, June 28, 2018

स्वयं को अच्छी तरह जान लेना

स्वयं को अच्छी तरह जान लेना ...
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ख़ुद अपने को और औरों को यदि समझना/जानना है तो हमारे आसपास खिंचे या औरों ने खींच रखे मानसिक दायरे से हमें बाहर आना होगा। अर्थात हमें अपने किसी भी सुपेरियरटी(उच्चता) या इन्फेरियरटी(हीनता) कॉम्प्लेक्स(बोध) से बाहर निकलना होगा।
मैं जैनी , मैं हिंदू , मैं मुस्लिम या मैं सिक्ख आदि भेद दूर रखना होगा। मैं अमीर या गरीब के विचार को तजना होगा। मैं पुरुष या नारी के बजाय मैं मनुष्य हूँ यह भाव शिरोधार्य करना होगा। मैं भारतीय या मैं अमेरिकन इसे भुला कर सोचना होगा। ऐसे ही अपने इर्द गिर्द की बहुत सी सीमाओं से बाहर निकलना होगा।
वास्तव में हम हैं तो मनुष्य किंतु अपना जीवन हम अपने को मनुष्य से कम दर्जे में रख कर जी रहे हैं. मनुष्य के जन्मने और मरने के तरीके एक जैसे हैं। मरने और जन्मने के कारण सभी के एक हैं। तात्पर्य यह है कि सभी मनुष्य जन्मते और मरते बिना किसी दायरे (भेदभाव) में हैं । मगर ज़िंदगी को सब अपने भीतर मानसिक रूप से स्थापित दायरों में रखकर जीते हैं। अपने को अच्छा औरों को कम अच्छा या बुरा इन्हीं मानसिक कसौटी पर परखते हैं। यही वजह है हम ना तो स्वयं को समझ पाते हैं और इसलिए ही औरों को नहीं समझ पाते हैं। अगर सभी दायरों से निकल कर विचार करें तो हम जानेंगे कि सभी जीवित शरीर में एक आत्मा (या रूह) विद्यमान होती है। जो अरुपी यानि न तो रूपवान है , न ही बदसूरत। इसका कोई जेंडर नहीं। यह अमीर या गरीब नहीं , बूढी-जवान या बालक नहीं। मनुष्य शरीर के भीतर विद्यमान जब तक यह है इसकी हरेक में चाहत एक सी होती है। इसे सुख अच्छा लगता है और दुःख बुरा।
किसी एक-आध घंटे के विचार में जब हम इतना जान लेते हैं तब समझिये कि हमने खुद को जाना और इस तरह और सभी को जान लिया है। ऐसे ही जब हम इस विचार को अपने अभ्यास या अपने आचरण में ले आते हैं तो कह सकते हैं कि हम इंसान होकर ज़िंदगी जीते हैं अन्यथा जो ज़िंदगी हम जीते हैं वह एक इंसान से कमतर क्षमता से जीते हैं।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
29-06-2018

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