Tuesday, June 26, 2018

बदलाव

बदलाव
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दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। मज़हब , जाति , नस्ल भेद मिट रहे हैं। अब जो जितना कट्टर बना रहेगा वह उतना पिछड़ता जाएगा। बदलाव को रोकने की कोशिश यदि परिवार के बड़े करेंगें , तो उस परिवार के बच्चे औरों से पिछड़े रहेंगे. जरूरत बदलाव के विरोध की नहीं है। जरूरत कौनसे बदलाव मंजूर कर लेना उचित है , उसकी पहचान करने की है। निश्चित ही आ रहे सभी बदलाव अच्छे नहीं हैं। निश्चित ही बहुत से बदलाव बच्चों को खराबी की और दुष्प्रेरित करते हैं।

लेकिन मजहबी कट्टरता , इससे उत्पन्न कौमी नफ़रत , नारी के पढ़ने लिखने और उसके जॉब (अर्निंग होने) पर रोक , उन पर परिधान विशेष पर पाबंदी , उनके मनचाहे पसंद के युवक/युवती से गैर जातीय आधार पर विवाह की बंदिशें और ज्यादा बच्चों वाला परिवार अब पिछड़ी सोच और दकियानूसी होने की सूचक हैं। इनमें बदलाव जितने जल्दी स्वीकार कर लेंगे , घर परिवार में कलह को कम कर सकेंगे। अपनी नई पीढ़ी की उन्नति के मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे। आज जो खुली सोच वाले कर रहे हैं , दस बीस साल बाद अधिकाँश लोग कर रहे होंगे। मगर आज हम उपरोक्त बदलाव स्वीकार करेंगे तो समय के साथ माने जाएंगे अन्यथा समय से पिछड़े , कोई दस-बीस और कोई पचास साल पीछे।

हो रहे बदलाव कोई रोक नहीं सकेगा क्योंकि नई पीढ़ियाँ अब सब्र से नहीं तेजी से बदलाव चाहती है , ताकि अपनी ज़िंदगी में वे बंदिशों , अवसाद और मन मसोस के जीने को मजबूर न हों

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-06-2018

 

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