Friday, June 22, 2018

नज़रिया

नज़रिया
-----------


ऊँची तालीम हासिल सफल मुस्लिम युवक , जब गैर मुस्लिम किसी युवती से शादी करता है तो एक मुस्लिम युवती की ख़ुशनसीबी और उसकी बीबी हो जाने के हक़ से उसे वंचित करता है। यूँ तो खुले ख्याल से देखा जाए तो इंसान या तो पुरुष या नारी (अपवाद छोड़ें) होता है। इसलिए ज़िंदगी में उच्च पदस्थ , सफलता पर पहुँचे किसी पुरुष के साथ किसी नारी का पत्नी बन जुड़ना (या उलट) उसकी खुशनसीबी होती है। फिर चाहे पुरुष या नारी किसी कौम के हों महत्वहीन होता है। किंतु मानव सभ्यता यात्रा आज जिस मुक़ाम पर है , वहाँ मज़हबी ठेकेदारों ने कई हदें आपस में बनाई हैं। ये हदें नरम भी नहीं , बेहद सख्त हैं। जब आजीविका प्राप्त करने की दृष्टि से बेहतर तालीम प्राप्त कर कोई मुस्लिम युवक जॉब में जाता है तो उसके आसपास की युवतियों से प्रेम संबंध होने की संभावना होती हैं  , जिसमें से कुछ उनकी शादी में तब्दील होते हैं। मुस्लिम युवतियों को शिक्षा के अवसर कम हैं अतः जाहिर है यह संबंध प्रायः गैर मुस्लिम युवती से होते हैं।

यहाँ एक रिश्ता जो एक पुरुष और नारी का पति-पत्नी होने का स्वाभाविक होता है , किंतु तथाकथित मज़हबी ठेकेदार इसे आपस में आन-बान-और शान के रूप में देखते हैं , एक को आपत्ति यह कि उनकी कौम की लड़की , गैर मजहब की बना ली गई , वे इसे कलंक की तरह देखते हैं और मुस्लिम , इसे लव ज़िहाद का नाम दे कर प्रचारित करके दूसरों के अवसाद की अग्नि को हवा देकर , आपसी नफरत को और मजबूती देते हैं। इस तरह किसी शादीशुदा जोड़े को ज़िंदगी के सहज खुशहाली के मंसूबे की राह में रोड़ा बनते हैं।
इसलिए बहाने देख देख नफ़रत पैदा कर देने वाले मजहबी ठेकेदार या सियासत करने वालों को कोई यह मौका नहीं दे। अगर दो गैर-संप्रदाय के युवक युवती की शादी मोहब्बत का नहीं नफरत का कारण बनती है तो अपनी कौम में ही शादी कर लें। इससे जो बात अच्छी होगी वह यह कि एक मुस्लिम युवती को वह तालीम प्राप्त योग्य युवक शौहर रूप में मिल सकेगा जिसका सपना , किशोरी से युवती होते हुए उसके दिल में बस रहा होता है।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23-06-2018


No comments:

Post a Comment