Saturday, June 23, 2018

जब मर जाना है इकदिन - फिर मौत से घबराना कैसा
है ज़िंदगी जब तक - सबसे रहे हमारा , दोस्ताना जैसा
 
 
उसकी मोहब्बत में ये करिश्मा हुआ हम पर
कि याद में बेकली-सुकून का फर्क मिट गया

यूँ मुहँ मोड़ लेने से - कोई ज़िंदगी से मायूस ना हो जाए
गुज़ारिश कि - मुहँ मोड़ने से पहले इतना ख़्याल कर लेना

औरों में - जिसकी शिकायत होती है
खुद में - वह बात बदलता कोई नहीं

 
 
 

No comments:

Post a Comment