Monday, June 18, 2018

मुसलमान बुरा नहीं होता

मुसलमान बुरा नहीं होता ..

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पास पड़ोस में गुजर करने पर कभी वह हालात आते हैं , जब मदद की गुहार एक दूसरे में होती है। कभी ऐसा भी होता है जब किसी की खूबियाँ मन मोहती हैं। ऐसे में ही हममें -उनमें पारिवारिक , वैचारिक करीबी बढ़ती है।

दो यह परिवार अलग कौमों से थे। दोनों के मज़हब कितने दूर थे , उन्हें मालूम न था , क्यूंकि एक दूसरे के मज़हब को दोनों ने ही समझने की कोशिश ही नहीं की थी। किंतु दोनों ही जानते थे कि देश / समाज में उनकी कौमों के बीच अविश्वास , बैर और साथ ही नफ़रत बहुत थी। ऐसे में कई वर्षों से नज़दीक ही रहते हुए , कई "ईद उल फितर" के फेस्टिवल आये और चले गए थे।

 ऐसे ही इस 'ईद उल फितर' का दिन भी गुजरने को था तब कुछ संकोच से उबरते हुए उन्होंने , सिंवई आप खायेंगे क्या? , पूछा। शायद हमें इस ईद उल फितर पर इसी पेशकश का इंतजार था , हमने देर किये बिना हाँ , कह दिया। उनके कुछ संकोच अब भी रहे - उन्होंने घर अपने नहीं बुलाया , सिंवई हमें भिजवाई। लेकिन हमें लगा कि सिर्फ सिंवई खा लेने से ईद कहाँ पूरी होगी। बाद में , हम सभी को ईद मुबारक कहने उनके घर पहुँचे।
जो पहले नहीं हुआ , उस दिन ऐसा सब होना हमारे लिए खुशगवार तो था। किंतु इस सबके साथ हम पर जिम्मेदारी थी। देश और समाज में व्याप्त दो कौमों के बीच की दूरी का अहसास रखते हुए हमें दोनों परिवारों में नज़दीकी रहे इस हेतु ज्यादा सोचना,समझना और करना था। हमें इस तरह चलना था कि उनके मन से हमारे प्रति और हमारे मन में उनके प्रति भरोसा बने रहे , उसमें इजाफा हो। इसे सुनिश्चित करने के लिए हमें मदद के सारे काम करने थे , बोलने एवं मिलने पर मधुरता की सावधानी रखनी थी। और जिस बात में तनिक भी खतरा हो कि भरोसा टूट सकता है , नफ़रत के कारण पैदा हो सकते हैं , उसे कतई बीच में नहीं लानी थी।
हम पर अब जिम्मेदारी थी कि ज़िंदगी भर कि मोहब्बत दो परिवारों में कायम रहे। वे कहीं और बातें करें और हम कहीं और बातें करें तो यह बात कह सकें कि

'हिंदू या इस देश के बाशिंदें अच्छे हैं , हम कह सकें कि मुसलमान बुरा नहीं होता है। '

 

"जैसा सुना था वैसा नेक है भारत
सब मुल्कों से भला एक है भारत"

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

19-06-2018

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