Wednesday, June 20, 2018

#स्वाभाविक_है
 उस जैसा हम कर और सोच नहीं सकते तो
 वह भी हमारे जैसा कर और सोच नहीं सकता

#इंसानियत_है
करें आप और हम अपनी अपनी मर्जी का
बस
किसी की ज़िंदगी या ख्वाहिशें , हमारी मर्जी के नीचे न दब जायें

जो स्व-कर्मों से गौरवांवित न हुआ - उसे जीवन कैसे कहें
बेहतर तो वो पत्थर - जो शहीदों की समाधि में लगते हैं

खुदा ने गर बेवफाओं की दूसरी दुनिया बसाई होती
मेरे दोस्त इस दुनिया में बस हम ही रहे होते

मुश्किलों से दो चार हुई - उससे सहानुभूति होती है
चुनौतियों से लड़ती वो - ज़िंदगी अलग मज़ा देती है

यहाँ बेवफा हो या ना हो कोई मगर
इल्ज़ाम बेवफ़ाई का सब पर लगता है

मैं मान लूँ या ना मानूँ खुद को बेवफा - क्या महत्व है
जिन्हें मुझसे है वफ़ा की उम्मीद - बेवफ़ा वे तो ना कहें



 

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