भड़काऊ शब्द सिर्फ - नफरत को सीचेंगे
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भारत में रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम , हम और आप जैसे ही हैं जिनकी पूर्व पुश्तों ने मुगलकालीन बर्बरताओं में मजबूर होकर मज़हब बदल लिया था। इसलिए उनका डीएनए हमसे कोई अलग नहीं मिलेगा। मजहब बदलने के बाद , वे किसी भी मज़हब को निभाना चाहे उसकी उन्हें आज़ादी होनी चाहिए।
हमारी समस्या मजहब नहीं है - समस्या 'नफ़रत की अग्नि' है , जिसे भड़काने में आहुति सभी तरफ से दी जा रही है। हिंदू होना , मुस्लिम होना , अन्य मजहब का होना या बिना मजहब का होना गुनाह नहीं है। किंतु जिस भी मज़हब के हम हैं उसके आदर्शों पर अगर हम चलें तो नफ़रत उत्पन्न/व्याप्त होने की कोई संभावना ही नहीं होती है। किसी भी धर्म को उसके सच्चे स्वरूप से समझने/पालन करने वाले के दिल में मोहब्बत ही निवास करती है। वह समाज और दुनिया में सिर्फ मोहब्बत की राह प्रशस्त करता है। वह दुनिया में अमन और ख़ुशहाली का पैरोकार होता है। ईर्ष्या , द्वेष और व्याप्त आज की हिंसा उसके स्वभाव में नहीं होती।
"हमें वे शब्द प्रयोग नहीं करने चाहिए जो नफरत उगलते हैं
शब्द हमारे ऐसे होने चाहिए जो मोहब्बत के पौधे सींचते हैं"
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
17-06-2018
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भारत में रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम , हम और आप जैसे ही हैं जिनकी पूर्व पुश्तों ने मुगलकालीन बर्बरताओं में मजबूर होकर मज़हब बदल लिया था। इसलिए उनका डीएनए हमसे कोई अलग नहीं मिलेगा। मजहब बदलने के बाद , वे किसी भी मज़हब को निभाना चाहे उसकी उन्हें आज़ादी होनी चाहिए।
हमारी समस्या मजहब नहीं है - समस्या 'नफ़रत की अग्नि' है , जिसे भड़काने में आहुति सभी तरफ से दी जा रही है। हिंदू होना , मुस्लिम होना , अन्य मजहब का होना या बिना मजहब का होना गुनाह नहीं है। किंतु जिस भी मज़हब के हम हैं उसके आदर्शों पर अगर हम चलें तो नफ़रत उत्पन्न/व्याप्त होने की कोई संभावना ही नहीं होती है। किसी भी धर्म को उसके सच्चे स्वरूप से समझने/पालन करने वाले के दिल में मोहब्बत ही निवास करती है। वह समाज और दुनिया में सिर्फ मोहब्बत की राह प्रशस्त करता है। वह दुनिया में अमन और ख़ुशहाली का पैरोकार होता है। ईर्ष्या , द्वेष और व्याप्त आज की हिंसा उसके स्वभाव में नहीं होती।
"हमें वे शब्द प्रयोग नहीं करने चाहिए जो नफरत उगलते हैं
शब्द हमारे ऐसे होने चाहिए जो मोहब्बत के पौधे सींचते हैं"
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
17-06-2018
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